Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान मुनिवर
श्री 'चाणक्य' अपरनाम 'कौटिल्य'
विश्वके इतिहासमें भारतीय संस्कृतिके कूटनीतिज्ञ मंत्री चाणक्य एक महान अर्थशास्त्री थे। वे जन्मसे ब्राह्मण होनेके कारण वैदिक संस्कृतिमें जितनी ख्याति पा सके, उतनी ख्याति जैन संस्कृतिमें नहीं पा सके ।
यद्यपि आप मूलतः कुलसे ब्राह्मण होने पर भी, माता-पिता जिनधर्मके संस्कारी होनेसे व वे मुनिवरोंका आदर - सन्मान देते होनेसे चाणक्यके अन्तरमें जैन मुनियोंके प्रति आदरकी भावना रही थी।' इतना ही नहीं उनके पिताको उसे जैन मुनि बनानेकी भावना थी। आपके समय तक श्वेताम्बर मत या अर्धफालक या यापनीय किसी भी मतकी उत्पत्ति नहीं हुई थी; मात्र एक ही सनातन दिगम्बर जिनधर्म ही जैनधर्मके रूपमें था ।
कुटिल गोत्रीय होनेसे 'कौटिल्य' अथवा 'कौटिभ्व' व चणकका पुत्र होनेसे 'चाणक्य' नामसे आप प्रसिद्ध हुए। आपका जन्म चणक गांवमें हुआ था। आपके पिताका नाम चणक ब्राह्मण व माताका नाम चणेश्वरी था। आर्थिक दृष्टिसे आप गरीब परिवारके थे।
उनके क्षेत्रमें नन्दवंशका राज्य था। उस वंशका अन्तिम शासक धननंद था। उसके तीन मंत्रीयोंमेंसे उत्तम प्रबुद्ध मंत्री व उसके पारिवारिक लोगों पर भारी एवम् क्रूर अन्याय हुआ होनेसे, उस मंत्रीने किसी भी प्रकारसे नन्दवंशके नाशकी ठानी थी। उसके लिए योग्य व्यक्तिकी तलाशमें था । उस मन्त्रीने ब्राह्मण चाणक्यको निर्जन स्थानमें 'दर्भके घासको जड़मूल से काटते देख व चाणक्यके पाससे उसका कारण जानकर उसको ज्ञात हुआ, कि यह ब्राह्मण नन्दवंशको नाश करनेमें बहुत ही अच्छा सहायक होगा। अतः उस मन्त्रीने चाणक्यकी गरीबीका लाभ उठाकर, राजा नन्द द्वारा स्वयंके हुए घोर अपमानका बदला लेने हेतु एक युक्ति रची। मंत्रीका पूर्वमें जो भारी अपमान हुआ, उसका बदला नन्दवंशके नाशसे ही होगा ऐसा निर्णय कर उसने नन्द राजाके यहाँ चल रही गरीब ब्राह्मणोंको आहारदानकी सुविधाके सम्बन्धमें चाणक्यको बताया । चाणक्य वहाँ रोजाना आहार लेने जाने लगा ।
मंत्रीने धीमे-धीमे स्वयंके गुप्त निर्णयसे बनाई हुई योजनाके अनुसार, पूर्वकी अपेक्षा
एक ऐसा कोमल घास उसके ऊपरका भाग शूलकी भांति पाँव आदिमें लगने पर दर्द करता है ।
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