Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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उन्हीं दिनोंमें नन्दवंशका नाश होनेसे नन्दका अन्य सुबुद्धि मंत्री चाणक्यकी कुटनीतिज्ञताके कारण चाणक्य पर बहुत ही क्रोधित था। वह क्रौञ्चपुरके राजाके यहाँ मंत्री बना। कौञ्चपुरके राजाको ज्ञात हुआ, कि अपने राज्यके वनमें मुनिराज चाणक्य पधारे हैं
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જયદેવ
क्रौञ्चपुरमें सुबुद्धि मंत्री द्वारा मुनिराज चाणक्य सह मुनिसंघको आग लगाना । व उसने मन्त्री सहित उनके दर्शनार्थ जानेका निर्णय किया। सुबुद्धि मन्त्रीने चाणक्यसे बदलेकी भावनासे कायोत्सर्गधारी मुनिराजको ससंघ घेर लिया व आग लगा दी। जिससे सभी मुनि-पुंगवका समाधिमरणयुक्त स्वर्गवास हो गया।
दिव्य कौञ्चपुरकी पश्चिम-दिशामें आज भी चाणक्य मुनिकी एक निषधा बनी हुई है। जहाँ कवि हरिषेणके समयमें साधुजन दर्शनार्थ जाते रहते थे।
आपने 'अर्थशास्त्र' नामक अपनेमें अद्भुत लौकिक सिद्धान्तोंकी रचना की। उस कालमें अध्यात्मविद्याका ज्ञान मौखिक ही होता था, लिखित नहीं। अतः आपने कोई ग्रंथ रचना नहीं की; फिर भी, जैन इतिहासमें वे पूर्वाश्रममें कुटिल राजनीतिज्ञ होनेपर भी, अन्तरसे इतने अलिप्त थे, कि कार्य समाप्त होने पर, तुरंत भावलिंगी संत बनकर घोर तपश्चर्या कर, समाधि-मरणयुक्त आत्म-साधनाका सुन्दर सन्मार्ग योतित कर मुमुक्षुओंके आदर्श बन गये।
आपका काल आचार्य चन्द्रगुप्तके समकालिन मान आप ई.स. पूर्व ३५५से ई.स. पूर्व ३३६ के मुनिपुंगव होने चाहिए। आपको कोटि कोटि वंदन ।
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