Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान श्री धरसेनाचार्यदेव
महावीर भगवानकी वाणीके प्रथम श्रुतस्कंधके संस्थापक भगवान धरसेनाचार्य हैं। धवलाके आधारसे सौराष्ट्र देशके गिरिनगर नामके नगर (हालका नाम गिरनार)की चन्द्रगुफामें रहनेवाले अष्टांग महानिमित्तके पारगामी, प्रवचनवत्सल और अङ्गश्रुतके विच्छेदकी आशंकासे चिन्तित धरसेनाचार्यने किसी धर्मोत्सव आदिके निमित्तसे महिमानामकी नगरीमें सम्मिलित हुए दक्षिणपथके आचार्योंके पास एक समाचार भेजा, जिसमें उन्होंने यह इच्छा व्यक्त की, कि योग्य शिष्य उनके पास आकर षखंडागमका अध्ययन करे।
___दक्षिण देशके आचार्य प्रमुख अर्हदबलिने शास्त्रके अर्थग्रहण और धारणमें समर्थ देश, कुल, शील और जातिसे उत्तम, समस्त कलाओंमें पारंगत दो मुनियोंको वेणा नदीके तटसे आचार्यवर धरसेनजीके पास भेजा। रात्रिको आचार्यवर धरसेनजीको एक स्वप्न आया, जिसमें दो सुंदर पुष्ट वृषभ दिखाई दिये। जिससे धरसेन आचार्य समर्थ मुनिओंका आगमन जान
आचार्य धरसेनको रात्रिमें 'भार वहन कर सके' ऐसे दो वृषभका स्वप्न
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