Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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જયદેવ
भद्रबाहुके माता-पिता के वहाँ आहारके समय माता-पिताके निवेदन पर आचार्य गोवर्धनस्वामी द्वारा भद्रबाहुके भावी श्रुतकेवलीत्वकी घोषणा ।
उसी समय चातुर्मास शुरू होता जानकर, भगवान श्री गोवर्धनस्वामीआचार्य ससंघ उसी गाँवमें पधारे हुए थे। उनकी नजर कुमारके इस कौतुक पर पड़ी। उन्होंने यह कौतुक देख ज्ञानकी विशेष निर्मलतासे जाना, कि यह कुमार १४ पूर्वका ज्ञाता अंतिम श्रुतवली होगा। दूसरे दिन गोवर्धनस्वामी आहार हेतु शहरमें पधारे। भाग्योदयसे यह आहार भद्रबाहु घर पर ही हुआ, पश्चात् माता-पिताके नम्र निवेदन करने पर आचार्य गोवर्धनस्वामीने बतायाकि 'भद्रबाहु होनहार श्रुतकेवली होगा' । नम्र भद्रबाहु चातुर्मास होनेसे रोजाना मुनिभगवंत पास जंगलमें जाता व चंद दिनोंमें वह व्याकरण, गणित, न्याय व स्याद्वाद विद्यामें ऐसा तो पारंगत हो गया कि उसकी कीर्ति राजदरबार तक पहुँच गई। इतनी छोटी उम्र में इतना ज्ञान जानकर राजाने भी प्रसन्न होकर उन्हें रोजाना राजदरबार में आनेका निवेदन किया । एकबार राजदरबारमें जिनधर्म विरोधी कोई वादी वाद करने आया, उसको भद्रबाहुने चंद ठोस न्यायोंसे जिनधर्मकी यथार्थ प्रतीत करा दी।
युवावयमें माता-पिताने भद्रबाहुके विवाहकी बात रखी तब चतुर्गति भ्रमणसे भयभीत भद्रबाहु श्रुतकेवली गोवर्धनस्वामीसे भगवती दीक्षा धारण करके, निज आत्महितमें लग गए व द्वादशांगके ज्ञाता हो गए।
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