Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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अपनी होनहार भली होनेसे, किसी भांति विद्युत्प्रभ चोरने इस बातको स्वीकार किया। माँ ने पुत्रके कक्षका दरवाजा खटखटाया। अनायास माँको आया जान 'स्वामी' आश्चर्यान्वित हुए, उन्होंने माँको कहा, कि 'आनेके बजाय मुझे बुला लिया होता तो मैं स्वयम् आ जाता!!' ऐसा कहते माँने विद्युत्प्रभका परिचय उसके 'दूरके मामा'के रूपमें देकर, तेरी भगवती जिनदीक्षाके समाचार सुन, तुझसे मिलने आये हैं, यदि स्वीकृति हो तो उन्हें भेज दूं। माँके विनित शब्द समझकर 'स्वामी'ने माँको ढाढ़स बंधाते हुए बड़े विनयसे माँ व मामाके चरणस्पर्श किये। रानीयोंने भी उसी भाँति चरणस्पर्श किये।
चारों रानीयों सह विद्युत्प्रभने कई कथायें कहकर 'स्वामी'का मन हरनेका प्रयत्न किया। पर उलटा 'स्वामी'ने उन्हें विविध अन्य कथाओं द्वारा चारों पत्नीयों व विद्युत्प्रभके हृदयको ज्ञान-वैराग्यसे भर दिया।
इतनेमें सुबह हो गई। 'स्वामी'ने चारों पत्नीयाँ, विद्युत्प्रभ व उसके अनेक साथी तथा माता-पिता संग दीक्षा हेतु जंगलकी ओर प्रयाण किया। नगरवासी राजा श्रेणिक आदि सभी हृदयमें भगवती जिनदीक्षाकी अद्भुत महिमा सह 'स्वामी'को अश्रुसह विदा दी। कई तो उनके साथ मुनिदीक्षा लेने भी चल दिये।
सभी गौतमस्वामीके शिष्य सुधर्मास्वामीके पास पहुँचे व 'स्वामी' सहित विद्युत्प्रभ व उसके ५०० साथी तथा पिता आदि कुछ लोगोंने मुनिदीक्षा ग्रहण की। चारों पत्नीयाँ व माताने अर्जिका व्रत अंगीकार किया तथा कई नगरजनोंने श्रावकके व्रत अंगीकार किये।
जिस दिन गौतमस्वामीका निर्वाण हुआ। उसी दिन सुधर्मास्वामी केवली हुए। जम्बूस्वामी उनके प्रमुख शिष्य हुए। १२ वर्ष पश्चात् सुधर्मास्वामीने निर्वाण प्राप्त किया व जम्बूस्वामीको उसी दिन केवलज्ञान हुआ। अन्दाजित ४० वर्ष तक केवलीके रूपमें 'भव'नामके शिष्यको उपदेश देते हुए सम्मेदशिखरसे मथुरा तक विहार कर उन्होंने सत्यमार्गका प्रकाश किया। तत्पश्चात् वे मथुरासे मोक्ष पधारे।
आपका काल वी.नि. २४-६२ वर्ष (ई.स. पूर्व ५०३ से ई.स. पूर्व ४६५) तक माना जाता हैं, क्योंकि भगवान महावीरस्वामी पश्चात् ६२ वर्ष तक केवली भगवंत विद्यमान थे तथा आप अन्तिम केवली भगवंत थे।
अन्तिम केवली श्री जम्बूस्वामीको कोटि कोटि वंदन।
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