Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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उनका बहुत अविनय किया। मुनि भगवंत अन्तराय जान जंगलमें चले गए। वहाँ रात्रिको तीनोंने मुनि भगवन्त पर विविध प्रकारके उपसर्ग किए। पर करुणामयी मुनिराज आत्मध्यान में अचल रहे ।
वे तीनों इस बुरे व अति घिनावने भावोंके फलमें गलित कुष्ट रोगी होती हुई पाँचवी नरक में गई । १७ सागर तक वहाँ दुःखी होती हुई, वहाँसे निकलकर उन पापोंके फलमें अनुक्रमसे तीनोंने बिल्ली, शूकर (सुअरी), कूकर ( कुत्ती ), कुर्कट आदि भवोंको धारण किया। अतः ज्ञानी कहते हैं, कि जिनदेव, जिनशासन, जिनधर्म व जिनगुरुकी निंदा, उन पर उपसर्ग, परिषह आदिके भावोंका फल अत्यंत दुर्गति होनेसे उसे नहीं करना चाहिए । करना तो दूर रहा, पर ऐसा कराना या उसका मन, वचन या कायासे अनुमोदन तक भी नहीं करना चाहिए।
उन तीनों कुर्कटने अवन्ति देशके उज्जैयनी नगरीके एक गाँवमें किसानके घर कन्याके रूपमें जन्म लिया। उनके जन्म होते ही किसानका धन-धान्य नाश हो गया। माता मर गई। पड़ोसी सब मर गए । ज्यों-ज्यों वे बड़ी होती गईं, त्यों-त्यों जहाँ वे जाती वहाँ सब गाँव ऊजड़ होते गए। कोई उन्हें रखना नहीं चाहता था । इस तरह वे भूखी, प्यासी भ्रमण करती पहुपपुर नगर पहुँची । वहाँ किसी विशुद्ध परिणामके फल स्वरूप उनको अवधिज्ञानी महा चारित्र धारक मुनि भगवंतके दर्शन हुए। उन्हें उनका सत् - उपदेश सुननेको मिला । वहाँ अपने पूर्व भवोंका वृतांत सुनकर किए पापोंके पश्चातापस्वरूप आँखोंसे अश्रु बह निकले। उन्होंने मुनि भगवन्तसे अपने भवदुःखसे मुक्तिका उपाय पूछा। मुनि भगवंतने द्रव्यगुण-पर्याय, सात तत्त्व सहित सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान व एकदेश - सकलदेश चारित्रका स्वरूप समझाया। बड़े रुचिपूर्वक मुनिभगवंतका उपदेश सुन उन्होंने अणुव्रत अंगीकार किए। अन्तमें समाधिमरण पूर्वक तीनों जीव पंचम स्वर्ग में गए।
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वहाँ अवधिज्ञान द्वारा धर्मसे यह संपदा पाई जानकर देवगतिके भोगोंको भोगते हुए वहाँ देव-शास्त्र-गुरुके भक्तिमय जीवनको पूर्ण करके, मगध देशके द्विजपुर गांव काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण पंडित शाडिल्लकी दो पत्नीयोंकी कोखसे तीनोंने पुत्रके रुपमें जन्म लिया । एकका नाम 'गौतम, दूसरेका नाम गर्ग व तीसरेका नाम भार्गव रखा गया। तीनोंने अति 9. कहीं कहीं काश्यप गोत्रीयकी जगह गौतम गोत्रीय भी आता है ।
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कहीं कहीं गर्गकी जगह अग्निभूति नाम ४. कहीं कहीं भार्गवकी जगह वायुभूति नाम
कहीं कहीं गौतमकी जगह इन्द्रभूति नाम आता है ।
आता है।
आता है।
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