Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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पञ्चमकालके प्रारंभमें हुए अन्तिम केवली भगवंत
श्री जम्बूस्वामी
बहुत वर्षों पूर्व, जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रके मगधदेशमें वृद्ध नामक गाँव था। वहाँ राष्ट्रकूट नामक एक वैश्य व उसकी पत्नी रेवती रहती थी। उनके दो पुत्र थे; बड़ा भगदत्त अपरनाम भावदेव व छोटा भवदेव। किसी कारणवश भगदत्त, सुस्थित मुनिराजसे भगवती जिनदीक्षा अंगीकार कर, गाँव-गाँव ससंघ विहार करते-करते कई वर्ष पश्चात् उसी गाँवमें पधारे।
___ भवदेवने नागश्री नामक सुंदर कन्यासे पाणिग्रहण कर लिया था। वह उसमें मोहित था। नागश्री उसे बहुत प्रिय थी। भवदेवको जब पता चला, कि उसके बड़े भाई भगदत्त मुनिराज इसी जंगलमें पधारे हैं। तब उसने मुनिराजकी पूजा, प्रदक्षिणा करके उनका उपदेश सुना। उनके उपदेशसे आर्द्र हुए परिणाम देख, मुनिराजने उसे मुनिधर्म अंगीकार करनेका उपदेश दिया। भवदेवका जीव नागश्रीमें अटका हुआ था, फिर भी भाईके उपदेशवश उन्होंने मुनिदीक्षा अंगीकार की, परंतु मनमें नागश्री बसी होनेसे वे भावलिंगरूप सम्यक् मुनि न बन सके। वे सभी मुनि भगवंत वर्षों पश्चात् उसी गाँवमें ससंघ पधारे। उस गाँवमें भवदेव मुनिने एक जिनमंदिरमें 'सुव्रता आर्यिकासे जाकर नागश्रीके बारेमें जानना चाहा। सुव्रता अर्जिका उनके अन्तरके परिणाम समझकर, उनको उत्तम मुनिधर्म व उसकी गरिमा समझाने लगी। भवदेवने आदरसे सुव्रता आर्यिकासे सब धर्मचर्चा सुनी, अतः उन्होंने आर्द्र परिणामी हो, नागश्रीका मोह छोड़ वापस मुनिराजके पास आकर नई दीक्षा ग्रहण की।
तत्पश्चात् विशुद्ध परिणामी चारों प्रकारकी आराधना द्वारा भवदेवका जीव महेन्द्र स्वर्गमें सामानिक देव हुआ। भवदेवका जीव महेन्द्र स्वर्गसे चयकर वीतशोक नगरमें राजा महापद्म व उसकी पत्नी वनमालासे सम्यग्दृष्टि शिवकुमार नामक राजकुमार हुआ। अच्छे परिणामोंके फलस्वरूप वह कुमार साथीयोंके साथ क्रीड़ा करने नगरमें आ रहा था, वहाँ उसे मंत्रीसे ज्ञात हुआ, कि उपवनमें सागरदत्त मुनिराज पधारे हैं। यह सुन शिवकुमार उनके दर्शनार्थ गये।
१. भवदेवने दीक्षा ग्रहण कर ली है, ऐसा जान उसकी पत्नी नागश्री अर्जिकाके पास जाकर आर्यिका
बन गई। दीक्षा पश्चात् अर्जिकाका नाम सुव्रता रखा गया।
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