Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवानकी सभामें गौतम जिसका वे रसपान करने लगे अर्थात् 'श्रावण कृष्णा-१को समवसरणमें सभी भगवानकी दिव्यध्वनिका रसपान करने लगे।
इस तरह गौतमस्वामी, भगवान महावीरस्वामीके प्रमुख गणधर बने, बारह अंगोंकी रचना करके समस्तश्रुतको आगम निबद्ध किया तथा कार्तिक कृष्णा (गुज. आश्विन कृष्णा) अमावस्याके दिन-ही-जिस दिन भगवानका निर्वाण हुआ उस ही दिन–आपको केवलज्ञान हुआ। आपने गुणावानगरसे निर्वाण प्राप्त किया।
इस तरह गौतमस्वामी अपने परिणामोंके फलसे दुर्गतिमें भ्रमण करती नेत्र-विशाला कुलटा स्त्रीसे, अपने विशुद्ध भावोंसे उच्चगतिको पाकर, भगवान महावीरके प्रमुख गणधर बनकर, निर्वाणको प्राप्त कर, सिद्ध भगवान बन गए। यह ही बताता है, कि जीव कालके आधारित नहीं, वरन् अपने बुरे भावोंसे दुर्गति व भले भावोंसे सुगति प्राप्त करता है व आत्मशुद्धिके भावोंसे मोक्षको पाता है। अतः हमें भी अपने भावोंके फल विचारकर हितरूप भावमें लगना चाहिए।
आपका काल वी.नि. ०-१२ अर्थात् ई.स. पूर्व ५२७-५१५ है। गणधरभगवान गौतमप्रभुको श्रद्धा व भक्तिभावसे कोटि-कोटि वंदन करते हैं। १. यह घटना श्रावण कृष्णा-१ को घटी होनेसे उस दिन भगवान महावीरका प्रथम उपदेश प्राप्त होनेके
कारण, उस दिनको 'वीरशासन जयंती के रूपमें मनाया जाता है।
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