Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे मनोवाकायलक्षणेन प्रकारत्रणेय बालग्लानादीन् , नानुकम्पते न ददाति स न भिक्षुरिति शेषः । उक्तं च
“असंविभागी न हु तस्स मोक्खो" इति । किन्तु यः साधु मनोवाकायसुसंवृतः मनोवाकायैः सुष्टु संवृतः-त्रिविधकारणेन बालग्लानादीननुकम्पते इति शेषः स भिक्षुरुच्यते । यद्वा-तम्-आहारादिकं नानुकम्पते-न प्रशंसति-मनोऽनुकूलस्याहारादेः प्रशंसां न करोति, उपलक्षणात्-मनः पतिकूलस्य निन्दामपि न करोति किन्तु मनोवाकाय सुसंवृतःवशीकृतमनोवाकायो भवति स भिक्षुरुच्यते । अनेनार्थतो गृद्धयभावादङ्गारदोषपरिहार उक्तः ॥१२॥ मन वचन एवं काय से (नाणुकंपे-नानुकम्पते) बाल ग्लान आदि मुनियों पर दया नहीं करता है-अर्थात् उस प्राप्त आहार को जो विभक्त कर उनको प्रदान नहीं करता है-वह भिक्षु नहीं है। क्यों कि "असंविभागी न हु तस्स मोक्खो”। 'जो संभोगी का विभाग नहीं करे उसको मोक्ष नहीं है किन्तु जो साधु (मण-वयण-काय-सुसंवुडे मनोवाकायसुसंवृतः) मन वचन एवं काय से सुसंवृत होकर उन बाल ग्लान आदि साधुजनों पर अनुकंपा करता है-अर्थात् अल्प भी प्राप्त आहार आदि को विभक्तकर उनको देता है (स भिक्खूस भिक्षु) वही भिक्षु है । अथवा उस आहारादि की प्रशंसा नही करता है और उपलक्षण से निन्दा भी कहीं करता है अर्थात् मनके अनुकूल आहार आदि की प्रशंसा जौर मनके प्रतिकूल आहार आदिकी निन्दा नहीं करता है किन्तु मनवचन काया से सुसंवृत होकर रहता है वही भिक्षु कहलाता है। गृद्धि के अभाव से अंगार दोष का परिहार कहा है ॥१२॥ भन, वयन मने आयाथी नाणुकंपे-नानुकम्पते मारी मान माहि भुनिया ५२ દયા કરતા નથી–અર્થાત્ પ્રાપ્ત થયેલા એ આહારને વિભક્ત કરી એને પ્રદાન નથી ७२ता ते भिक्षु नथी. भो, “असंविभागी न हु तस्स मोक्खो" "०२ सामान विमा नयी ४२ता ते भाक्ष भेगवी शता नथी" तेभ ले साधु मण-बयणकाय-सुसंवुडे-मनोवाकायसुसंवृतः मन क्यन मने याथी सुसवृत धन से माल ગ્લાન આદિ સાધુજનો ઉપર અનુકંપા રાખે છે અર્થાત પિતાને પ્રાપ્ત થયેલ શેડા આહાર माहिने पर विमत शन तेमने मापे छ स भिक्ख-स भिक्षुः ते मि छ. અથવા તે આહારાદિકની પ્રશંસા કરતા નથી અને ઉપલક્ષણથી નિંદા પણ કરતા નથી. અર્થાત મનને અનુકૂળ આહાર આદિની પ્રશંસા અને મનના પ્રતિકૂલ-આહાર આદિની નિંદા કરતા નથી. મનવચન અને કાયાથી સુસંવૃત થઈને રહે તેજ ભિક્ષુ કહેવાય છે. ગૃદ્ધિના અભાવમાં અંગાર દોષને પરિહાર કહેલ છે. ૧૨ા
उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3