Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 18
________________ सूर्यक्षप्तिप्रकाशिका टीका सू० ५५ दशमप्राभृतस्य विंशतितम प्राभृतप्राभृतम् श्रावणभाद्रपदादि नामानः सन्ति तेऽपि अवयवे समुदायोपचारात् नक्षत्रसंवत्सरे प्रयोज्यमानास्सन्ति । अतएव सावयव श्रावणभाद्रपदादि भेदपूर्णों द्वादशविधो नक्षत्रसंवत्सरो भवतीति तात्पर्यः । अथवा पक्षान्तरं प्रतिपादयति नक्षत्रसंवत्सरस्य लक्षणे-'जं वा वहस्सती महग्गहे दुवालसहि संवच्छरेहिं सव्वं णक्खमंडलं समाणेइ' यत् वा बृहस्पतिर्महाग्रहो द्वादशभिः संवत्सरैः सर्वे नक्षत्रमण्डलं समानयति । अत्र वा शब्दः पक्षान्तरसूचने अवसेयः, वा-अथवा यत्-यस्मात् कारणात् अथवा आकाशसृष्टौ भ्रमतामनेकेषां ग्रहनक्षत्रतारादीनां मध्ये महान् प्रतापीतेजस्वी विद्वान् शक्तिशाली सर्वमण्डलानां गुरुस्थानमलं कुर्वन् कश्चित् तेजःपुनः प्रकाशवान् बृहस्पतिनामा महाग्रहो नवग्रहेषु वर्तमानोऽस्ति । स च बृहस्पतिनामामहाग्रहो यदा स्त्रकक्षायां भ्रमन् सर्वा नक्षत्रमण्डलीं पूरयति-भगणपूर्ति करोति, तदा तद्भगणपूर्तिकालविशेषस्य समयस्य नाम बार्हस्पत्यं संतत्सरमिति द्वादशवर्षात्मकं प्रतिपादितं पूरक बारह भेद रूप श्रावण, भाद्रपदादि मास है वे समस्त नक्षत्र मण्डली योग पर्याय रूप श्रावण भाद्रपदादि नामवाले होते हैं-वे भी अवयव में समुदाय के उपचार से नक्षत्र संवत्सर में प्रयुज्यमान होते हैं । अतएव सावयव श्रावण भाद्रपदादि भेदवाला बारह प्रकार का नक्षत्र संवत्सर होता है। अथवा नक्षत्र संवत्सर विषयक लक्षण पक्षान्तर से कहते हैं-(जं वा बहस्सती महग्गहे दुवालसहिं संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेइ) अथवा आकाश सृष्टि में भ्रमण करते हुवे अनेक ग्रह नक्षत्र तारादिकों में महान् प्रतापी तेजस्वी विद्वान् सर्व नक्षत्रमंडलों के गुरुस्थान को शोभित करनेवाले तेज के पुंज रूप नव ग्रहों में बृहस्पति नाम का महान् गृह वर्तमान होता है । वह बृहस्पति नाम का महा गृह जब अपनी कक्षा में भ्रमण कर के सभी नक्षत्र मंडली को भगण से पूरित करता है, तब वह भगण पूर्ति काल विशेष समय का नाम बार्हस्पत्य संवत्सर बारह वर्ष का प्रतिपादित किया है, परंतु यहां पर મા છે, એ સઘળું નક્ષવમંડળ ગ પર્યાયરૂપ શ્રાવણ ભાદ્રપદ વિગેરે નામવાળા હોય છે, તે પણ અવયવમાં સમુદાયના ઉપચારથી નક્ષત્ર સંવત્સરમાં પ્રયુજ્યમાન થાય છે. તેથી જ સાવયવ શ્રાવણ ભાદરવા વિગેરે ભેદવાળા બાર પ્રકારના નક્ષત્ર સંવત્સર થાય છે. अथवा नक्षत्र संवत्स२ सधीक्ष! पक्षान्तरथी ७. छ. (जं वा बहस्सत्तो महगहे दुवालसहिं संवच्छरेहिं णक्खत्तमंडलं समाणेइ) अथवा मा सष्टिमा श्रम ४२ता मन ગ્રહ નક્ષત્ર તારા વિગેરેમાં મહાન પ્રતાપી તેજસ્વી વિદ્વાન સર્વ નક્ષત્ર મંડળના ગુરૂસ્થાનને ભાવનાર તેજના પંજરૂપ નવગ્રહો માં બૃહસ્પતિ નામને મહાનગૃહ પ્રવર્તમાન હોય છે. એ બૃહસ્પતિ નામને મહાગ્રહ જ્યારે પિતાની કક્ષામાં ભ્રમણ કરીને બધા નક્ષત્રમંડળના ભગણને પૂર્ણ કરે છે, ત્યારે એ ભગણુપૂર્તિ કાળ વિશેષ સમયનું નામ બાહસ્પત્ય સંવત્સર બાર વર્ષનું પ્રતિપાદિત કરેલ છે, પરંતુ અહીંયાં નક્ષત્રના સંબંધી ગથી એ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૨

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