Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ५५ दशमप्राभृतस्य विंशतितम प्राभृतप्राभृतम् चतुर्थः । शनैश्चरसंवत्सरः पञ्चमः । तदेवं पश्चापि शनैश्चरसंवत्सरा एव भवेयुः । यतोहि अग्रिमसूत्रेषु एषामेव भेदान् प्रतिपादयिष्यते ॥ सू० ५४ ॥ ___ मूलम्-ता णक्खत्तसंवच्छरे कइविहे आहिएत्ति वएजा ! ता णक्खत्तसंवच्छरेणं दुवालसविहे पण्णत्ते, तं जहा-सावणे भदवए जाव आसाढे ज वा बहस्पती महगहे दुवालसहिं संवच्छरेहिं सव्यं णक्खत्तमंडलं समाणेइ ॥सू० ५५॥ । छाया-तावत नक्षत्रसम्वत्सरः कतिविधः आख्यात इति वदेत् । तावत् नक्षत्रसम्वत्सरः खलु द्वादशविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-श्रावणो भाद्रपदः यावत् आषाढः यद् वा बृहस्पति महाग्रहो द्वादशभिः संवत्सरैः सर्व नक्षत्रमण्डलं समानयति ॥ सू० ५५ ॥ टीका-चतुःपञ्चाशत् ५४ सूत्रे प्रतिपादितानां पश्च शनैश्चरसंवत्सराणां यथाक्रमं भेदानभिधित्सुस्तद्विषयकं प्रश्नोत्तरसूत्रं कथयति-ता णक्खत्तसंवच्छरे' इत्यादिना 'ता णक्खत्तसंवच्छरे कइविहे आहिएति वएन्जा' तावत् नक्षत्रसंवत्सरः कतिविधः आख्यात इति वदेत् । तावदिति पूर्ववत् नक्षत्रसंवत्सरः-अनन्तरोदितलक्षणविशिष्टो नक्षत्रसंवत्सरः कतिविधः कतिप्रकारकः कतिभेदात्मकः आख्यातः प्रतिपादितोऽस्तीति वदेत्-कथयेदिति गौतमस्य प्रश्नं श्रुत्वा भगवानाह-'त णक्खत्तसंवच्छरे णं दुवालसविहे पण्णत्ते, तं जहाहै तथा ।५। पांचवां शनैश्चरसंवत्सर कहा है, इस प्रकार ये पांचों शनैश्चर संवत्सर ही होते हैं, कारण की आगे के सूत्र में इनके ही भेद का प्रतिपादन किया जायगा ।सू० ५४॥ टीकार्थ-५४ चोपनवें सूत्र में प्रतिपादित पांच शनैश्चर संवत्सरों के यथाक्रम भेद को जानने के हेतु से उस विषय का प्रश्नोत्तर सूत्र कहते हैं-(ता णक्खत्तसंवच्छरे) इत्यादि श्री गौतमस्वामी पूछते है-(ता णक्खत्त संवच्छरे काविहे आहिएति वएजा) पूर्वोक्त लक्षण विशिष्ट नक्षत्र संवत्सर कितने प्रकार का अर्थात् कितने भेदवाला प्रतिपादित किया है ? सो आप कहिए । इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी का प्रश्न को सुनकर श्रीभगवान् સંવત્સર છે, ૫ તથા પાંચમું શનૈશ્ચર સંવત્સર કહેલ છે, કારણ કે આગળના સૂત્રમાં આનાજ ભેદોનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવશે. જે સૂ૦ ૫૪ છે ટીકાર્ય-ચેપનમાં સૂત્રમાં પ્રતિપાદન કરેલા સંવત્સરોના ક્રમાનુસાર ભેદ જાણવા માટે से विषय संधी प्रश्नोत्त२ सूत्र ४ छ-(ता णक्खत्तसंवच्छरे) इत्यादि श्री गौतम पाभी पूछे छ-(ता णक्खत्तसंवच्छरे कइविहे आहिएति वएज्जा) पूर्वात सक्ष] युत નક્ષત્ર સંવત્સર કેટલા પ્રકારના અર્થાત કેટલા ભેદવાળા પ્રતિપાદિત કરેલ છે? તે આપ કહે. આ પ્રમાણે શ્રી ગૌતમસ્વામીને પ્રશ્નને સાંભળીને શ્રી ભગવાન કહે છે શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 1111