Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar SamitiPage 14
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ५४ दशमप्राभृतस्य विंशतितमं प्राभृतप्राभृतम् ३ नाम नक्षत्रमासस्तथा-"रवीन्द्रोयुतेः संयुतिर्यावदन्या विधोर्मासः' इति नाक्षत्रचान्द्रमासयोः पृथक् परिभाषा प्रवर्त्तते तेन यावताकालेन अष्टाविंशत्यपि नक्षत्रैः सह यथाक्रमेण योगपरिसमाप्तिः स्यात् तावान् कालविशेषो नाक्षत्रमासो नक्षत्रमासो वा भवति, स च द्वादशभिगुणितो नक्षत्रसंवत्सरो भवति । उक्तं चान्यत्रापि यथा-'णक्खत्तचंदजोगो बारस गुणिओ यणक्खत्तो' नक्षत्रचन्द्रयोगो द्वादशगुणितश्च नक्षत्रः । अत्र नक्षत्र:-नक्षत्रसम्वत्सरः एतेनेत्थं सिद्धयति यत् एकोनित नक्षत्रपर्याययोग एको नक्षत्रमासो भवति, तत्र नक्षत्रमासे सप्तविंशतिरहोरात्रा एकविंशतिश्च सप्तषष्टिभागा अहोरात्रस्य-२७+ एतत्तुल्यो नाक्षत्रमासो भवति, एषराशियदि द्वादशभिर्गुण्यते तदा गणितप्रकियया अङ्कोत्पादनं यथा(२७+)x १२=३२४ + =३२७+जातानि त्रीण्यहोरात्रशतानि सप्तविंशत्यधिनक्षत्र मास कहा जाता है। कारण की नक्षत्र मंडल की समाप्ति पर्यन्त के भोगकाल का नाम नाक्षत्रमास कहा जाता है कहा भी है-(रवीन्द्रोयुते संयुतिर्यावदन्या विधोर्मासः) नाक्षत्र एवं चान्द्रमास को पृथक परिभाषा प्रवर्तित है । अतः जितने काल से अठाईस नक्षत्रों के साथ यथाक्रम योग की परि समाप्ति हो इतना काल विशेष नाक्षत्रमास या नक्षत्रमास होता है। उसको बारह से गुणित करने से नक्षत्र संवत्सर होता है । कहा भी है-(णक्खत्त चंदजोगो बारस गुणिओ य णक्खत्तो) यहां नक्षत्र कहने से नक्षत्र संवत्सर समझना चाहिए। नक्षत्र एवं चंद्रयोग को बारह से गुणा करने से नक्षत्र संवत्सर होता है। इससे यह सिद्ध होताहै कि-एक नक्षत्र पर्याय योग से एक नक्षत्र मास होता है, उस नक्षत्र मासमें सताईस अहोरात्र तथा एक अहोरात्र का सडसठिया इक्कीस भाग होते हैं २७४ इतना प्रमाण नक्षत्र मास का होता है, इस राशि को जो बारह से गुणा करे तो गणित प्रक्रिया से इस અર્થાત્ નક્ષત્ર માસ કહેવાય છે. કારણકે નક્ષત્ર મંડળની સમાપ્તિ પર્યન્તના ભાગકાળનું नाम नक्षत्रमास उपाय छे. ज्युं पर छ-(रवीन्द्रोयुते संयुतिर्यावदन्या विधो र्मासः) नक्षत्र અને ચંદ્રમાસની પરિભાષા અલગ અલગ છે, તેથી જેટલા કાળમાં અઠયાવીસ નક્ષત્રોની સાથે યથાક્રમ યેગની સમાપ્તિ થાય એટલા કાળ વિશેષને નાક્ષત્રમાસ અગર નક્ષત્ર માસ सेवामां आवे छे. तेने साथी गुणवाया नक्षत्र संवत्स२ थाय छे. ४थु ५ -(णवत्तचंदजोगो बारसगुणिये य णक्खत्ते) मडीया नक्षत्र ४३वाथी नक्षत्र सवत्स२ सभा જોઈએ. નક્ષત્ર અને ચંદ્રગને બારથી ગુણવાથી નક્ષત્ર સંવત્સર થાય છે. આથી એ સિદ્ધ થાય છે કે એક નક્ષત્ર પર્યાયના વેગથી એક નક્ષત્ર માસ થાય છે. એ નક્ષત્ર માસમાં સત્યાવીસ અહોરાત્ર તથા એક અહેરાત્રીને સડસઠિયા એકવીસ ભાગ થાય છે, ૨૭૪: આટલા પ્રમાણુવાળ નક્ષત્રમાસ હોય છે, આ સંખ્યાને જે બારથી ગણવામાં આવે તે ગણિત પ્રક્રિયાથી અંકોત્પત્તિ આ રીતે થાય છે,–જેમ કે શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૨Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 1111