Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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लोग आते थे उनके लिए नाटक दिखाने की भी व्यवस्था की गई थी। चिकित्सालय का भी निर्माण कराया था। वहाँ पर कुशल चिकित्सक नियुक्त थे, उन्हें वेतन भी मिलता था। उस युग में सोलह महारोग प्रचलित थे. (१) श्वास (२) कास-खाँसी (३) ज्वर (४) कुक्षिशूल (५) भगंदर (७) अर्श-बवासीर (८) अजीर्ण (९) नेत्रशूल (१०) मस्तकशूल (११) भोजन विषयक अरुचि (१२) नेत्रवेदना (१३) कर्णवेदना (१४) कंडूखाज (१५) दकोदर-जलोदर (१६) कोढ । आचारांग' में १६ महारोगों के नाम. दूसरे प्रकार से मिलते हैं। विपाक' निशीथ भाष्य' आदि में भी १६ प्रकार की व्याधियों के उल्लेख हैं, पर नामों में भिन्नता है। चरकसंहिता में आठ महारोगों का वर्णन है।
इस प्रकार इस अध्ययन में सांस्कृतिक दृष्टि से विपुल सामग्री है, जिसका ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है।
___ चौदहवें अध्ययन में तेतलीपुत्र का वर्णन है। मानव जिस समय सुख के सागर पर तैरता हो उस समय उसे धार्मिक साधना करना पसन्द नहीं होता पर जिस समय दुःख की दावाग्नि में झुलस रहा हो, उस समय धर्मक्रिया करने के लिए भावना उद्बुद्ध होती है। जब तेतली प्रधान का जीवन बहुत ही सुखी था, उस समय उसे धर्म-क्रिया करने की भावना ही नहीं जागृत हुई। पर पोट्टिल देव, जो पूर्वभव में पोट्टिला नामक उसकी धर्मपत्नी थी, उसने वचनबद्ध होने से तेतलीपुत्र को समझाने का प्रयास किया, पर जब वह नहीं समझा तो राजा कनकध्वज के अन्तर्मानस के विचार परिवर्तित कर दिये और प्रजा के भी। वह अपमान को सहन न कर सका। फाँसी डालकर मरना चाहा, पर मर न सका। गर्दन में बड़ी शिला बाँधकर जल में कूद कर, सूखी घास के ढेर में आग लगाकर मरने का प्रयास किया, पर मर न सका। अन्त में देव ने प्रतिबोध देकर उसे संयममार्ग ग्रहण करने के लिए उत्प्रेरित किया। संयम ग्रहण कर उसने उत्कृष्ट संयम साधना की।
इस अध्ययन में राजा कनकरथ की अत्यन्त निष्ठुरता का वर्णन है । वह स्वयं ही राज्य का उपभोग करना चाहता है और उसके मानस में यह क्रूर विचार उबुद्ध होता है कि कहीं मेरे पुत्र मुझसे राज्य छीन न लें।
लए वह अपने पत्रों को विकलांग कर देता था। एक पिता राज्य के लोभ में इतना अमानवीय कृत्य कर सकता है-यह इतिहास का एक काला पृष्ठ है और इस पृष्ठ की एक बार नहीं अनेक बार पुनरावृत्ति होती रही है। कभी पिता के द्वारा तो कभी पुत्र के द्वारा, कभी भाई के द्वारा। वस्तुतः लोभ का दानव जिसके सिर पर सवार हो जाता है वह उचित अनुचित के विवेक से विहीन हो जाता है।
___ पन्द्रहवें अध्ययन में नंदीफल का उदाहरण है। नंदीफल विषैले फल थे जो देखने में सुन्दर, मधुर और सुवासित, पर उनकी छाया भी बहुत जहरीली थी। धन्य सार्थवाह ने अपने सभी व्यक्तियों को सूचित किया कि वे नंदीफल से बचें, पर जिन्होंने सूचना की अवहेलना की, अपने जीवन से हाथ धो बैठे। धन्य सार्थवाह की तरह तीर्थंकर हैं। विषय-भोग रूपी नंदीफल हैं जो तीर्थंकरों की आज्ञा की अवहेलना कर उन्हें ग्रहण करते हैं, वे
१. आचारांग-६-१-१-१७३ २. विपाक-१, पृ.७ ३. निशीथभाष्य-११/३६-४६ ४. वातव्याधिरपस्मारी, कुष्ठी शोफी तथोदरी।
गुल्मी च मधुमेही च, राजयक्ष्मी च यो नरः । -चरकसंहिता इन्द्रियस्थान-९