Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक इस विषय में जरा भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। तब कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक मुनि ने पूर्वोक्त धार्मिक उपदेश को भलीभाँति स्वीकार किया और जिस प्रकार की भगवान महावीर की आज्ञा अनुसार श्री स्कन्दकमुनि चलने लगे, वैसे ही खड़े रहने लगे, वैसे ही बैठने, सोने, खाने, बोलने आदि क्रियाएं करने लगे; तथा तदनुसार ही प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों के प्रति संयमपूर्वक बर्ताव करने लगे। इस विषय में वे जरा-सा प्रमाद नहीं करते थे।
___ अब वह कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक अनगार हो गए । वह अब ईर्यासमिति, भाषासमिति, एकणासमिति, आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति, उच्चार-प्रस्रवण-खेल-जल्ल-सिंघाणपरिष्ठापनिका समिति, एवं मनःसमिति, वचनसमिति और कायसमिति, इन आठ समितियों का सम्यक् रूप से सावधानतापूर्वक पालन करने लगे । मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति से गुप्त रहने लगे, वे सबको वश में रखने वाले, इन्द्रियों को गुप्त रखने वाले, गप्तब्रह्मचारी, त्यागी, लज्जावान, धन्य, क्षमावान, जितेन्द्रिय, व्रतों आदि के शद्धिपर्वक आचरणकर्ता, नियाणा न करने वाले, आकांक्षारहित, उतावल से दूर, संयम से बाहर चित्त न रखने वाले, श्रेष्ठ साधुव्रतों में लीन, दान्त स्कन्दक मुनि इसी निर्ग्रन्थ प्रवचन को सम्मुख रखकर विचरण करने लगे। सूत्र-११४
तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी कृतंगला नगरी के छत्रपलाशक उद्यान से नीकले और बाहर (अन्य) जनपदों में विचरण करने लगे।
इसके बाद स्कन्दक अनगार ने श्रमण भगवान महावीर के तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । शास्त्र अध्ययन करने के बाद श्रमण भगवान महावीर के पास आकर वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार बोले-भगवन् ! आपकी आज्ञा हो तो मैं मासिकी भिक्षुप्रतिमा अंगीकार करके विचरना चाहता हूँ। (भगवान-) हे देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसा करो । शुभ कार्य में प्रतिबन्ध न करो । तत्पश्चात् स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त करके अतीव हर्षित हुए और यावत् भगवान महावीर को नमस्कार करके मासिक भिक्षुप्रतिमा अंगीकार करके विचरण करने लगे । तदनन्तर स्कन्दक अनगार ने सूत्र के अनुसार, यथातत्त्व, सम्यक् प्रकार से स्वीकृत मासिक भिक्षुप्रतिमा का काया से स्पर्श किया, पालन किया, उसे शोभित किया, पार लगाया, पूर्ण किया, उसका कीर्तन किया, अनुपालन किया, और आज्ञापूर्वक आराधन किया।
उक्त प्रतिमा का काया से सम्यक् स्पर्श करके यावत् उसका आज्ञापूर्वक आराधन करके श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ आए यावत वन्दन-नमस्कार करके यों बोले भगवन! आपकी आज्ञा हो तो भिक्षप्रतिमा स्वीकार करके विचरण करना चाहता हूँ। इस पर भगवान ने कहा-हे देवानप्रिय ! तम्हें जैसा सुख हो वैसा करो, शुभकार्य में विलम्ब न करो । तत्पश्चात् स्कन्दक अनगार ने द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा को स्वीकार किया। यावत् सम्यक् प्रकार से आज्ञापूर्वक आराधन किया । इसी प्रकार त्रैमासिकी, चातुर्मासिकी, पंच-मासिकी, षाण्मासिकी एवं सप्तमासिकी भिक्षुप्रतिमा की यथावत् आराधना की । तत्पश्चात् प्रथम सप्तरात्रि-दिवस की, द्वीतिय सप्तरात्रि-दिवस की एवं तृतीय सप्तरात्रि-दिवस की फिर एक अहोरात्रि की, तथा एकरात्रि की, इस तरह बारह भिक्षुप्रतिमाओं का सूत्रानुसार यावत् आज्ञापूर्वक सम्यक् आराधन किया।
__ फिर स्कन्दक अनगार अन्तिम एकरात्रि की भिक्षुप्रतिमा का यथासूत्र यावत् आज्ञापूर्वक सम्यक् आराधन करके जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ आकर उन्हें वन्दना-नमस्कार करके यावत् इस प्रकार बोलेभगवन् ! आपकी आज्ञा हो तो मैं गुणरत्नसंवत्सर नामक तपश्चरण अंगीकार करके विचरण करना चाहता हूँ | भगवान ने फरमाया- तुम्हें जैसा सुख हो, वैसा करो; धर्मकार्य में विलम्ब न करो। स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त करके यावत् उन्हें वन्दना-नमस्कार करके गुणरत्नसंवत्सर नामक तपश्चरण स्वीकार करके विचरण करने लगे । जैसे कि-पहले महीने में निरन्तर उपवास करना, दिन में सूर्य के सम्मुख दृष्टि रखकर आतापनाभूमि में उत्कटुक आसन से बैठकर सूर्य की आतापना लेना और रात्रि में अपावृत (निर्वस्त्र) होकर वीरासन से बैठना एवं शीत सहन करना । इसी तरह निरन्तर बेले-बेले पारणा करना । दिन में उत्कटुक आसन से बैठकर सूर्य
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 44