Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 194
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक असोच्चा कवली कि तरह सोच्चा कवली के लिए उसे केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न होता है, तक कहना चाहिए। भंते ! वह सोच्चा केवली केवलि-प्ररूपित धर्म कहते है, बतलाते है या प्ररूपित करते हैं? हाँ, गौतम ! करते हैं। भगवन् ! वे सोच्चा केवली किसी को प्रव्रजित करते हैं या मुण्डित करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं । भगवन् ! उन सोच्चा केवली के शिष्य किसी को प्रव्रजित करते हैं या मुण्डित करते हैं ? हाँ गौतम ! उनके शिष्य भी करते हैं। भगवन् ! क्या उन सोच्चा केवली के प्रशिष्य भी किसी को प्रव्रजित और मुण्डित करते हैं? हाँ गौतम ! वे भी करते हैं। भगवन् ! वे सोच्चा केवली सिद्ध होते है, बुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? हाँ गौतम ! वे सिद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं । भंते ! क्या उन सोच्चा केवली के शिष्य भी, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं? हाँ, गौतम ! करते हैं । भगवन् ! क्या उनके प्रशिष्य भी, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? हाँ, करते हैं। भंते ! वे सोच्चा केवली ऊर्ध्वलोक में होते हैं, इत्यादि प्रश्न । हे गौतम ! असोच्चाकेवली के समान यहाँ भी अढाई द्वीप-समद्र के एक भाग में होते हैं. तक कहना। भगवन् ! वे सोच्चा कवली एक सयम में कितने होते हैं ? गौतम ! वे एक समय में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट एक सौ आठ होते हैं ? इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि केवली-पाक्षिक की उपासिका से यावत् कोई जीव केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त करता है और कोई नहीं करता । हे भगवन ! यह इसी प्रकार है। शतक-९- उद्देशक-३२ सूत्र -४५१ उस काल, उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था । वहाँ द्युतिपलाश नाम का चैत्य था । महावीर स्वामी पधारे, समवसरण लगा । परिषद् निकली। (भगवान ने) धर्मोपदेश दिया। परिषद् वापिस लौट गई। उस काल उस समय में पापित्य गांगेय नामक अनगार थे । जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ वे आए और श्रमण भगवान् महावीर के न अतिनिकट और न अतिदूर खड़े रह कर उन्होंने, श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछा भगवन् ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते हैं, या निरन्तर ? हे गांगेय ! सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी। भगवन् ! असुरकुमार सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर? गांगेय ! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते किन्तु निरन्तर उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना चाहिए। द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर वैमानिक देवों तक की उत्पत्ति के विषय में नैरयिकों के समान जानना चाहिए। सूत्र - ४५२ भगवन् ! नैरयिक जीव सान्तर उद्वर्तित होते हैं या निरन्तर? गांगेय ! सान्तर भी उद्वर्तित होते हैं और निरन्तर भी । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना। भगवन् ! पृथ्वीकायिका जीव सान्तर उद्वर्तित होते हैं या निरन्तर ? गांगेय ! पृथ्वीकायिका जीवो का उद्वर्तन सान्तर नही होता, निरन्तर होता है । इसी प्रकार वनस्पतिकायिका जीवो तक जानना । ये सान्तर नहीं, निरन्तर उद्वर्तित होते है । भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों का उद्वर्त्तन सान्तर होता है या निरन्तर ? गांगेय ! द्विन्द्रिय जीवों का उद्वर्त्तन सान्तर भी होता है और निरन्तर भी होता है। इसी प्रकार वाणव्यन्तरो तक जानना। भगवन ! ज्योतिष्क देवों का च्यवन सान्तर होता है या निरन्तर ? गांगेय ! उनका च्यवन सान्तर भी और निरन्तर भी । इसी प्रकाश के वैमानिकों के जानना। सूत्र -४५३ भगवन् ! प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार का-नैरयिक प्रवेशनक, तिर्यग्योनिकप्रवेशनक, मनुष्य-प्रवेशनक और देव-प्रवेशनक। भगवन् ! नैरयिक-प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! सात प्रकार का-रत्नप्रभा यावत् मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 194

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