Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक आलोचना करूंगा यावत् तपरूप प्रायश्चित स्वीकार करुंगा; परन्तु वह उस अकृत्यस्थान की आलोचना और प्रतिक्रिमण किये बिना ही काल करे तो उसके आराधना नहीं होती। यदि वह आलोचन और प्रतिक्रमण करके काल करे, तो उसके आराधना होती है।
कदाचित् किसी भिक्षु ने किसी अकृत्यस्थान का सेवन कर लिया हो ओर उसके बाद उसके मन में यह विचार उत्पन्न हो कि श्रमणोपासक भी काल के अवसर पर काल करके किन्ही देवलोकों में उत्पन्न हो जाते हैं, तो क्या मैं अणपन्निक देवत्व भी प्राप्त नहीं कर सकूगा ?, यह सोच कर यदि वह उस अकृत्य स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल करे तो उसके आराधना नहीं होती । यदि वह आलोचना और प्रतिक्रमण करके करके काल करता है, तो उसके आराधना होती है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१०, उद्देशक-३ सूत्र-४८२
राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवद् ! देव क्या आत्मऋद्धि द्वारा यावत् चार-पांच देवावासान्तरों का उल्लंघन करताहै और इसके पश्चात् दूसरी शक्ति द्वारा उल्लंघन करता है? हाँ, गौतम ! देव आत्मशक्ति से यावत् चार-पांच देवासों का उल्लंघन करता है और उसके उपरान्त (वैक्रिय) शक्ति द्वारा उल्लंघन करता है । इसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में भी समझना । विशेष यह कि वे असरकमारों के आवासों का उल्लंघन करते हैं । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार स्तनितकमारपर्यन्त जानना । इसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवपर्यन्त जानना यावत वे आत्मशक्ति से चार-पांच अन्य देवावासों का उल्लंघन करते है; इसके उपरान्त परऋद्धि से उल्लंघन करते हैं।
भगवन ! अल्पऋद्धिकदेव, महर्द्धिकदेव के बीच में हो कर जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! समर्द्धिक देव समर्द्धिक देव के बीच में से हो कर जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; परन्तु यदि वह प्रमत्त हो तो जा सकता है। भगवन् ! क्या वह देव, उस को विमोहित करके जा सकता है, या विमोहित किये विना ? गौतम ! वह देव, विमोहित करके जा सकता है, विमोहित किये विना नहीं । भगवन् ! वह देव, उस देव को पहले विमोहित करके बाद में जाता है, या पहले जा कर बाद में विमोहित करता है ? गौतम ! पहले उसे विमोहित करता है और बाद में जाता है, परन्तु पहले जा कर बाद में विमोहित नहीं करता।
भगवन् ! क्या महर्द्धिक देव, अल्पऋद्धिक देव के बीचोंबीच में से हो कर जा सकता है ? हाँ, गौतम ! जा सकता है। भगवन् ! वह महर्द्धिक देव, उस अल्पऋद्धिक देव को विमोहित करके जाता है, अथवा विमोहित किये बिना जाता है ? गौतम ! वह विमोहित करके भी जा सकता है और विमोहित किये बिना भी जा सकता है। भगवन् ! वह महर्द्धिक देव, उसे पहले विमोहित करके बाद में जाता है, अथवा पहले जा कर बाद में विमोहित करता है ? गौतम! वह महर्द्धिक देव, पहले उसे विमोहित करके बाद में भी जा सकता है और पहले जा कर बाद में भी विमोहित कर सकता है।
भगवन् ! अल्प-ऋद्धिक असुरकुमार देव, महर्द्धिक असुरकुमार देव के बीचोंबीच में से हो कर जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । इसी प्रकार सामान्य देव की तरह असुरकुमार के भी तीन आलापक कहना । इस प्रकार स्तनितकुमार तक तीन-तीन आलापक कहना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में भी ऐसे भी जानना।
भगवन् ! क्या अल्प-ऋद्धिक देव, महर्द्धिक देवी के मध्य में से हो कर जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । भगवन् ! क्या समर्द्धिक देव, समर्द्धिक देवी के बीचोंबीच में से कर जा सकता है ? गौतमम ! पूर्वोक्त प्रकार से देव के साथ देवी का भी दण्डक वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए।
भगवन् ! अल्प-ऋद्धिक देवी, महर्द्धिक देव के मध्य में से हो कर जा सकती है? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। इस प्रकार यहाँ भी यह तीसरा दण्डक कहना चाहिए यावत्-भगवन् ! महर्द्धिक वैमानिक देवी, अल्प-ऋद्धिक वैमानिक देव के बीच में से होकर जा सकती है ? हाँ, गौतम ! जा सकती है । भगवन् ! अल्प-ऋद्धिक देवी महर्द्धिक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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