Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक
शतक-११ - उद्देशक-३ सूत्र - ५००
भगवन् ! पलासवृक्ष के एक पत्ते वाला (होता है, तब वह) एक जीव वाला होता है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! उत्पल-उद्देशक की सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष इतना है कि पलाश के शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग हैं और उत्कृष्ट गव्यूति-पृथक्त्व है । देव च्यव कर पलाशवृक्ष में से उत्पन्न नहीं होते । भगवन् ! वे जीव क्या कृष्णलेश्या वाले होते हैं, नीललेश्या वाले होते हैं या कापोतलेश्या वाले होते हैं ? गौतम ! वे तीनों लेश्या वाले होते हैं । इस प्रकार यहाँ उच्छ्वासक द्वार के समान २६ भंग होते हैं। शेष सब पूर्ववत् है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-११ - उद्देशक-४ सूत्र-५०१
भगवन् ! एक पत्ते वाला कुम्भिक एक जीव वाला होता है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! पलाश (जीव) के समान कहना । इतना विशेष है कि कुम्भिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट वर्ष-पृथक्त्व की है । शेष पूर्ववत् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-११ - उद्देशक-५ सूत्र- ५०२
___ भगवन् ! एक पत्ते वाला नालिक, एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! कुभ्भिक उद्देशक अनुसार कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-११ - उद्देशक-६ सूत्र- ५०३
भगवन् ! एक पत्र वाला पद्म, एक जीव वाला होता है या अनेक जीव वाला होता है ? गौतम ! उत्पल-उद्देशक के अनुसार इसकी सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-११ - उद्देशक-७ सूत्र-५०४
भगवन् ! एक पत्ते वाली कर्णिका एक जीव वाली है या अनेक जीव वाली है ? गौतम ! इसका समग्र वर्णन उत्पल-उद्देशक के समान करना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-११ - उद्देशक-८ सूत्र-५०५
भगवन् ! एक पत्ते वाला नलिन एक जीव वाला होता है, या अनेक जीव वाला ? गौतम ! इसका समग्र वर्णन उत्पल उद्देशक के समान करना चाहिए और सभी जीव अनन्त बार उत्पन्न हो चूके हैं, यहाँ तक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-११ - उद्देशक-९ सूत्र- ५०६, ५०७
उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नाम का नगर था । उस हस्तिनापुर नगर के बाहर ईशानकोण में सहस्राम्रवन नामक उद्यान था । वह सभी ऋतुओं के पुष्पों और फलों से समृद्ध था । रम्य था, नन्दनवन के समान सुशोभित था । उसकी छाया सुखद और शीतल थी । वह मनोरम, स्वादिष्ट फलयुक्त, कण्टकरहित प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् प्रतिरूप था । उस हस्तिनापुर नगर में शिव राजा था । वह महाहिमवान् पर्वत के समान श्रेष्ठ था, इत्यादि । शिव राजा की धारिणी देवी थी । उसके हाथ-पैर अतिसुकुमाल थे, इत्यादि । शिव राजा का पुत्र और धारिणी रानी का अंगजात शिवभद्र कुमार था । उसके हाथ-पैर अत्यन्त सुकुमाल थे । कुमार का वर्णन राज-प्रश्नीय
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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