Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक और अर्थ के ज्ञाता, विविध शास्त्रों में कुशल स्वप्न-शास्त्र के पाठकों को बुला लाओ। इस पर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् राजा का आदेश स्वीकार किया और राजा के पास से नीकले । फिर वे शीघ्र, चपलता युक्त, त्वरित, उग्र एवं वेगवाली तीव्र गति से हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर जहाँ उन स्वप्न-लक्षण पाठकों के घर थे, वहाँ पहुँचे और उन्हें राजाज्ञा सूनाई । इस प्रकार स्वप्नलक्षणपाठकों को उन्होंने बुलाया।
वे स्वप्नलक्षण-पाठक भी बलराजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाए जाने पर अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने स्नानादि करके यावत् शरीर को अलंकृत किया । फिर वे अपने मस्तक पर सरसों और हरी दूब से मंगल करके अपने-अपने घर से नीकले, और जहाँ बलराजा का उत्तम शिखररूप राज्य-प्रासाद था, वहाँ आए । उस उत्तम राजभवन के द्वार पर एकत्रित होकर मिले और जहाँ राजा की बाहरी उपस्थानशाला थी, वहाँ सभी मिलकर आए। बलराजा के पास आकर, उन्होंने हाथ जोड़कर बलराजा को जय हो, विजय हो आदि शब्दों से बधाया । बलराजा द्वारा वन्दित, पूजित, सत्कारित एवं सम्मानित किए गए वे स्वप्नलक्षण-पाठक प्रत्येक के लिए पहले से बिछाए हुए उन भद्रासनों पर बैठे। तत्पश्चात् बल राजा ने प्रभावती देवी को यवनिका की आड़ में बिठाया। फिर पुष्प और फल हाथों में भरकर बल राजा ने अत्यन्त विनयपूर्वक उन स्वप्नलक्षणपाठकों से कहा- देवानुप्रियो ! आज प्रभावती देवी तथारूप उस वासगृह में शयन करते हुए यावत् स्वप्न में सिंह देखकर जागृत हुई है । इस उदार यावत् कल्याणकारक स्वप्न का क्या फलविशेष होगा?
इस पर बल राजा से इस प्रश्न को सूनकर एवं हृदय में अवधारण कर वे स्वप्नलक्षणपाठक प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने उस स्वप्न के विषय में सामान्य विचार किया, फिर विशेष विचार में प्रविष्ट हुए, तत्पश्चात् उस स्वप्न के अर्थ का निश्चय किया । फिर परस्पर एक-दूसरे के साथ विचार-चर्चा की, फिर उस स्वप्न का अर्थ स्वयं जाना, दूसरे से ग्रहण किया, एक दूसरे से पूछकर शंका-समाधान किया, अर्थ का निश्चय किया और अर्थ पूर्णतया मस्तिष्क में जमाया। फिर बल राजा के समक्ष स्वप्नशास्त्रों का उच्चारण करते हुए इस प्रकार बोले- हे देवानुप्रिय ! हमारे स्वप्न शास्त्र में बयालीस सामान्य स्वप्न और तीस महास्वप्न, इस प्रकार कुल बहत्तर स्वप्न बताये हैं। तीर्थंकर की माताएं या चक्रवर्ती की माताएं, जब तीर्थंकर या चक्रवर्ती गर्भ में आते हैं, तब इन तीस महास्वप्नों में से ये १४ महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं । जैसे- (१) गज, (२) वृषभ, (३) सिंह, (४) अभिषिक्त लक्ष्मी, (५) पुष्पमाला, (६) चन्द्रमा, (७) सूर्य, (८) ध्वजा, (९) कुम्भ (कलश), (१०) पद्म-सरोवर, (११) सागर, (१२) विमान या भवन, (१३) रत्नराशि और (१४) निर्धूम अग्नि । सूत्र - ५२०
हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने इनमें से एक महास्वप्न देखा है । अतः हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने उदार स्वप्न देखा है, सचमुच प्रभावती देवी ने यावत् आरोग्य, तुष्टि यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है । हे देवानुप्रिय ! इस स्वप्न
लरूप आपको अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ एवं राज्यलाभ होगा। अतः हे देवानुप्रिय ! यह निश्चित है कि प्रभावती देवी नौ मास और साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर यावत् पुत्र को जन्म देगी । वह बालक भी बाल्यावस्था पार करने पर यावत् राज्याधिपति राजा होगा अथवा वह भावितात्मा अनगार होगा । इसलिए हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने उदार, यावत् आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु एवं कल्याणकारक यावत् स्वप्न देखा है।
तत्पश्चात् स्वप्नलक्षणपाठकों से इस स्वप्नफल को सूनकर एवं हृदय में अवधारण कर बल राजा अत्यन्त प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुआ । उसने हाथ जोड़कर यावत् उन स्वप्नलक्षणपाठकों से कहा- हे देवानुप्रियो ! आपने जैसा स्वप्नफल बताया, यावत् वह उसी प्रकार है । इस प्रकार कहकर स्वप्न का अर्थ सम्यक् प्रकार से स्वीकार किया । फिर उन स्वप्नलक्षणपाठकों को विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकारों से सत्कारित-सम्मानित किया, जीविका के योग्य प्रीतिदान दिया एवं सबको बिदा किया । तत्पश्चात् बल राजा अपने सिंहासन से उठा और जहाँ प्रभावती देवी बैठी थी, वहाँ आया और प्रभावती देवी को इष्ट, कान्त यावत् मधुर वचनों से वार्तालाप करता हुआ कहने लगा- देवानुप्रिये ! स्वप्नशास्त्र में ४२ सामान्य स्वप्न और ३० महास्वप्न, इस प्रकार ७२ स्वप्न बताएं हैं । इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् कहना, यावत् माण्डलिकों की माताएं इनमें से किसी एक महास्वप्न को
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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