Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 246
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक बाजबन्दों की जोड़ी, आठ श्रेष्ठ रेशमी वस्त्रयुगल, आठ टसर के वस्त्रयुगल, आठ पट्ट-युगल, आठ दुकूलयुगल, आठ श्री, आठ ह्री, आठ धी, आठ कीर्ति, आठ बुद्धि एवं आठ लक्ष्मी देवियाँ, आठ नन्द, आठ भद्र, आठ उत्तम तल वृक्ष, ये सब रत्नमय जानना। अपने भवन में केतु रूप आठ उत्तम ध्वज, दस-दस हजार गायों के प्रत्येक व्रज वाले आठ उत्तम व्रज, बत्तीस मनुष्यों द्वारा किया जाने वाला एक नाटक होता है, ऐसे आठ उत्तम नाटक, श्रीगृहरूप आठ उत्तम अश्व, ये सब रत्नमय जानने चाहिए। भाण्डागार के समान आठ रत्नमय उत्तमोत्तम हाथी, आठ उत्तम यान, आठ उत्तम युग्य, आठ शिबिकाएं, आठ स्यन्दमानिका इस प्रकार आठ गिल्ली, आठ थिल्ली, आठ श्रेष्ठ विकट यान, आठ पारियानिक रथ, आठ संग्रामिक रथ, आठ उत्तम अश्व, आठ उत्तम हाथी, दस हजार कुलों-परिवारों का एक ग्राम होता है, ऐ आठ उत्तम ग्राम; आठ उत्तम दास, एवं आठ उत्तम दासियाँ, आठ उत्तम किंकर, आठ उत्तम कंचूकी, आठ वर्षधर, आठ महत्तरक, आठ सोने के, आठ चाँदी के और आठ सोने-चाँदी के अवलम्बन दीपक, आठ सोने के, आठ चाँदी के और आठ सोनेचाँदी के उत्कंचन दीपक, इसी प्रकार सोना, चाँदी और सोना-चाँदी इन तीनों प्रकार के आठ पंजरदीपक, सोना, चाँदी और सोने-चाँदी के आठ थाल, आठ थालियाँ, आठ स्थासक, आठ मल्लक, आठ तलिका, आठ कलाचिका, आठ तापिकाहस्तक, आठ तवे, आठ पादपीठ, आठ भीषिका, आठ करोटिका, आठ पलंग, आठ प्रतिशय्याएं, आठ हंसासन, आठ क्रौंचासन, आठ गरुड़ासन, आठ उन्नतासन, आठ अवनतासन, आठ दीर्घासन, आठ भद्रासन, आठ पक्षासन, आठ मकरासन, आठ पद्मासन, आठ दिक्स्वस्तिकासन आठ तेल के डिब्बे, इत्यादि यावत् आठ सर्षप के डिब्बे, आठ कुब्जा दासियाँ आदि यावत् आठ पारस देश की दासियाँ, आठ छत्र, आठ छत्रधारिणी दासियाँ, आठ चामर, आठ चामरधारिणी दासियाँ, आठ पंखे, आठ पंख-धारिणी दासियाँ, आठ करोटिका, आठ करोटिकाधारिणी दासियाँ, आठ क्षीरधात्रियाँ, यावत् आठ अंकधात्रियाँ, आठ अंगमर्दिका, आठ उन्मर्दिका, आठ स्नान कराने वाली दासियाँ, आठ अलंकार पहनाने वाली दासियाँ, आठ चन्दन घिसने वाली दासियाँ, आठ ताम्बूल वर्ण पीसने वाली, आठ कोष्ठागार की रक्षा करने वाली, आठ परिहास करने वाली, आठ सभा में पास रहने वाली, आठ नाटक करने वाली, आठ कौटुम्बिक, आठ रसोई बनाने वाली, आठ भण्डार की रक्षा करने वाली, आठ तरुणियाँ, आठ पुष्प धारण करने वाली, आठ पानी भरने वाली, आठ बलि करने वाली, आठ शय्या बिछाने वाली, आठ आभ्यन्तर और बाह्य प्रतिहारियाँ, आठ माला बनाने वाली और आठ-आठ आटा आदि पीसने वाली दासियाँ दीं। बहुत-सा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वस्त्र एवं विपुल धन, कनक, यावत् सारभूत द्रव्य दिया । जो सात कुल-वंशों तक ईच्छापूर्वक दान देने, उपभोग करने और बाँटने के लिए पर्याप्त था। इसी प्रकार महाबल कुमार ने भी प्रत्येक भार्या को एक-एक हिरण्यकोटि, एक-एक स्वर्णकोटि, एक-एक उत्तम मुकुट, इत्यादि पूर्वोक्त सभी वस्तुएं दी यावत् सभी को एक-एक पेषणकारी दासी दी तथा बहुत-सा हिरण्य, सुवर्ण आदि दिया, जो यावत् विभाजन करने के लिए पर्याप्त था । तत्पश्चात् वह महाबल कुमार जमालि कुमार के वर्णन के अनुसार उन्नत श्रेष्ठ प्रासाद में अपूर्व भोग भोगता हुआ जीवनयापन करने लगा। सूत्र-५२३ उस काल और उस समय में तेरहवे तीर्थंकर अरहंत विमलनाथ के धर्मघोष अनगार थे । वे जातिसम्पन्न इत्यादि केशी स्वामी के समान थे, यावत् पाँच सौ अनगारों के परिवार के साथ अनुक्रम से विहार करते हुए हस्तिनापुर नगर में सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे और यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे । हस्तिनापुर नगर के शृंगाटक, त्रिक यावत् राजमार्गों पर बहुत-से लोग मुनिआगमन की परस्पर चर्चा करने लगे यावत् जनता पर्युपासना करने लगी। बहुत-से मनुष्यों का कोलाहल एवं चर्चा सूनकर जमालिकुमार के समान महाबल कुमार को भी विचार हुआ उसने अपने कंचूकी पुरुष को बुलाकर कारण पूछा । कंचुकी पुरुष ने भी निवेदन किया-देवानुप्रिय ! विमलनाथ तीर्थंकर के प्रशिष्य श्री धर्मघोष अनगार यहाँ पधारे हैं । इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् यावत् महाबल कुमार भी मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 246

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