Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 248
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक हुए उन श्रमणोपासकों में परस्पर इस प्रकार का वार्तालाप हुआ। हे आर्यो ! देवलोकों में देवों की स्थिति कितने काल की है ? ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक ने उन श्रमणो-पासकों से कहा-आर्यो ! देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, उसके उपरांत एक समय अधिक, दो समय अधिक, यावत् दस समय अधिक, संख्यात समय अधिक और असंख्यात समय अधिक, उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है । इसके उपरांत अधिक स्थिति वाले देव और देवलोक नहीं हैं । तदनन्तर उन श्रमणोपासकों ने ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक के द्वारा इस प्रकार कही हुई यावत् प्ररूपित की हुई इस बात पर श्रद्धा न की, न प्रतीति की और न रुचि ही की; वे श्रमणोपासक जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में चले गए। सूत्र - ५२६ उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर यावत् (आलभिका नगरी में) पधारे, यावत परीषद ने उनकी पर्युपासना की। तुंगिका नगरी के श्रमणोपासकों के समान आलभिका नगरी के वे श्रमणोपासक इस बात को सूनकर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए, यावत् भगवान की पर्युपासना करने लगे । तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों को तथा उस बड़ी परीषद् को धर्मकथा कही, यावत् वे आज्ञा के आराधक हुए। वे श्रमणोपासक भगवान महावीर के पास से धर्म-श्रवण कर एवं अवधारण करके हृष्ट-तुष्ट हए। फिर वे स्वयं उठे और खड़े होकर उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और पूछा-भगवन् ! ऋषिभद्र-पुत्र श्रमणोपासक ने हमें इस प्रकार कहा, यावत् प्ररूपणा की-हे आर्यो ! देवलोकों में देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष है । उसके आगे एक-एक समय अधिक यावत् इसके बाद देव और देवलोक विच्छिन्न नहीं हैं । तो क्या भगवन् ! यह बात ऐसी ही है ? भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों को तथा उस बड़ी परीषद् को कहा-हे आर्यो! ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक ने जो तुमसे इस प्रकार कहा था, यावत् प्ररूपणा की थी कि देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति १०००० वर्ष की है, उसके आगे एक समय अधिक, यावत् इसके आगे देव और देवलोक विच्छिन्न है-यह अर्थ सत्य है । हे आर्यो ! मैं भी इसी प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करत स्थिति तैंतीस सागरोपम है, यावत् इससे आगे देव और देवलोक विच्छिन्न हो जाते हैं । आर्यो ! यह बात सर्वथा सत्य है तदनन्तर उन श्रमणोपासकों ने श्रमण भगवान महावीर से यह समाधान सूनकर और हृदय में अवधारण कर उन्हें वन्दन-नमस्कार किया; फिर जहाँ ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक था, वे वहाँ आए । ऋषिभद्रपुत्र श्रमणो-पासक के पास आकर उन्होंने उसे वन्दन-नमस्कार किया और उसकी बात को सत्य न मानने के लिए विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना की। फिर उन श्रमणोपासकों ने भगवान से कईं प्रश्न पूछे तथा उनके अर्थ ग्रहण किए और भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार करके जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में चले गए। सूत्र- ५२७ तदनन्तर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करके पूछा-भगवन् ! क्या ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक आप देवानुप्रिय के समीप मुण्डित होकर आगारवास से अनगारधर्म में प्रव्रजित होने में समर्थ हैं? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं किन्तु यह ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक बहुत-से शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान और पौषधोपवासों से तथा यथोचित गृहीत तपःकर्मों द्वारा अपनी आत्मा को भावित करता हुआ, वर्षों तक श्रमणोपासक-पर्याय का पालन करेगा। फिर मासिक संलेखना द्वारा साठ भक्त का अनशन द्वारा छेदन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर तथा समाधि प्राप्त कर, काल के अवसर पर काल करके सौधर्मकल्प के अरुणाभ नामक विमान में देवरूप से उत्पन्न होगा । वहाँ ऋषिभद्रपुत्र-देव की भी चार पल्योपम की स्थिति होगी । भगवन् ! वह ऋषिभद्रपुत्र-देव उन देवलोक से आयुक्षय, स्थितिक्षय और भवक्षय करके यावत् कहाँ उत्पन्न होगा ? वह महाविदेहक्षेत्र में सिद्ध होगा, यावत् सभी दुःखों का अन्त करेगा। सूत्र -५२८ पश्चात् किसी समय श्रमण भगवान महावीर भी आलभिका नगरी के शंखवन उद्यान से नीकलकर बाहर मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 248

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