Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वहाँ जीव नहीं है, जीवों के देश नहीं है, इत्यादि पूर्ववत्; यावत् अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणों से संयुक्त है और सर्वाकाश के अनन्तवे भाग न्यून है।
द्रव्य से-अधोलोक-क्षेत्रलोक में अनन्त जीवद्रव्य हैं, अनन्त अजीवद्रव्य हैं और अनन्त जीवाजीवद्रव्य हैं । इसी प्रकार तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक में भी जानना । इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक में भी जानना । द्रव्य से अलोक में जीवद्रव्य नहीं, अजीवद्रव्य नहीं और जीवाजीवद्रव्य भी नहीं, किन्तु अजीवद्रव्य का एक देश है, यावत् सर्वाकाश के अनन्तवे भाग न्यून है । काल से-अधोलोक-क्षेत्रलोक किसी समय नहीं था-ऐसा नहीं; यावत् वह नित्य है । इसी प्रकार यावत् अलोक के विषय में भी कहना । भाव से-अधोलोक-क्षेत्रलोक में अनन्तवर्णपर्याय है, इत्यादि, द्वीतिय शतक में वर्णित स्कन्दक-प्रकरण अनुसार जानना, यावत् अनन्त अगुरुलघु-पर्याय हैं । इसी प्रकार यावत् लोक तक जानना भाव से अलोक में वर्ण-पर्याय नहीं, यावत् अगुरुलघु-पर्याय नहीं है, परन्तु एक अजीवद्रव्य का देश है, यावत् वह सर्वाकाश के अनन्तवे भाग कम है। सूत्र-५११
भगवन् ! लोक कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, समस्त द्वीप-समुद्रों के मध्य में है; यावत् इसकी परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। किसी काल और किसी समय महर्द्धिक यावत् महासुख-सम्पन्न छह देव, मन्दर पर्वत पर मन्दर की चूलिका के चारों ओर खड़े रहें और नीचे चार दिशाकुमारी देवियाँ चार बलि-पिण्ड लेकर जम्बूद्वीप नामक द्वीप की चारों दिशाओं में बाहर की ओर मुख करके खड़ी रहें। फिर वे चारों देवियाँ एक साथ चारों बलिपिण्डों को बाहर की ओर फैके । हे गौतम ! उसी समय उन देवो में से एक-एक देव, चारों बलिपिण्डों को पृथ्वीतल पर पहुँचने से पहले ही, शीघ्र ग्रहण करने में समर्थ हों ऐसे उन देवों में से एक देव, हे गौतम ! उस उत्कृष्ट यावत् दिव्य देवगति से पूर्व में जाए, एक देव दक्षिण दिशा की ओर जाए, इसी प्रकार एक देव पश्चिम की ओर, एक उत्तर की ओर, एक देव ऊर्ध्वदिशा में और एक देव अधोदिशा में जाए । उसी दिन और उसी समय एक हजार वर्ष की आयु वाले एक बालक ने जन्म लिया । तदनन्तर उस बालक के माता-पिता चल बसे । वे देव, लोक का अन्त प्राप्त नहीं कर सकते । उसके बाद वह बालक आयुष्य पूर्ण होने पर कालधर्म को प्राप्त हो गया। उतने समय में भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त न कर सके । उस बालक के हड्डी, मज्जा भी नष्ट हो गई, तब भी वे देव, लोक का अन्त नहीं पा सके। फिर उस बालक की सात पीढ़ी तक का कुलवंश नष्ट हो गया तब भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त न कर सके । तत्पश्चात् उस बालक के नाम-गोत्र भी नष्ट हो गए, उतने समय तक भी देव, लोक का अन्त प्राप्त न कर सके।
भगवन् ! उन देवों का गत क्षेत्र अधिक है या अगत क्षेत्र ? हे गौतम ! गतक्षेत्र अधिक है, अगतक्षेत्र गतक्षेत्र के असंख्यातवे भाग है । अगतक्षेत्र से गतक्षेत्र असंख्यातगुणा है । हे गौतम ! लोक इतना बड़ा है । भगवन् ! अलोक कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! यह जो समयक्षेत्र है, वह ४५ लाख योजन लम्बा-चौड़ा है इत्यादि सब स्कन्दक प्रकरण के अनुसार जानना, यावत् वह (पूर्वोक्त) परिधियुक्त है । किसी काल और किसी समय में, दस महर्द्धिक देव, इस मनुष्यलोक को चारों ओर से घेर कर खड़े हों । उनकी नीचे आठ दिशाकुमारियाँ, आठ बलि-पिण्ड लेकर मनुषोत्तर पर्वत की चारों दिशाओं और चारों विदिशाओं में बाह्याभिमुख होकर खडी रहें । तत्पश्चात वे उन आठों बलिपिण्डों को एक समय मनुष्योत्तर पर्वत के बाहर की ओर फेके । तब उन खड़े हुए देवों में से प्रत्येक देव उन बलिपिण्डों को धरती पर पहुँचने से पूर्व शीघ्र ही ग्रहण करने में समर्थ हों, ऐसी शीघ्र, उत्कृष्ट यावत् दिव्य देवगति द्वारा वे दसों देव, लोक के अन्त में खड़े रहकर उनमें से एक पूर्व दिशा की ओर जाए, एक देव दक्षिणपूर्व की ओर जाए, इसी प्रकार यावत् एक देव उत्तरपूर्व की ओर जाए, एक देव ऊर्ध्वदिशा की ओर जाए और एक देव अधोदिशा में जाए । उस काल और उसी समय में एक गृहपति के घर में एक बालक का जन्म हुआ हो, जो कि एक लाख वर्ष की आयु वाला हो । तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता का देहावसान हुआ, इतने समय में भी देव अलोक का अन्त नहीं प्राप्त कर सके । तत्पश्चात् उस बालक का भी देहान्त हो गया । उसकी अस्थि और मज्जा भी विनष्ट हो गई और उसकी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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