Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 228
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूभाग से अनेक कोटाकोटि योजन दूर ऊंचाई में सौधर्म नामक देवलोक में सुधर्मासभा है; इस प्रकार सारा वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र के अनुसार जानना, यावत् पाँच अवतंसक विमान कहे गए हैं; यथा-असोकावतंसक यावत् मध्य में सौधर्मावतंसक विमान है । वह सौधर्मावतंसक महाविमान लम्बाई और चौड़ाई में साढ़े बारह लाख योजन है। सूत्र - ४९१ सूर्याभविमान के समान विमान-प्रमाण तथा उपपात अभिषेक, अलंकार तथा अर्चनिका, यावत् आत्म-रक्षक इत्यादि सारा वर्णन सूर्याभदेव के समान जानना चाहिए । उसकी स्थिति (आयु) दो सागरोपम की है। सूत्र -४९२ ___भगवन् ! देवेन्द्र शक्र कितनी महती ऋद्धि वाला यावत् कितने महान् सुख वाला है ? गौतम ! वह महाऋद्धिशाली यावत् महासुखसम्पन्न है । वह वहाँ बत्तीस लाख विमानों का स्वामी है; यावत् विचरता है । देवेन्द्र देवराज शक्र इस प्रकार की महाऋद्धि से सम्पन्न और महासुखी है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है शतक-१०- उद्देशक-७ सूत्र - ४९३ भगवन् ! उत्तरदिशा में रहने वाले एकोरुक मनुष्यों का एकोरुकद्वीप नामक द्वीप कहाँ है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप से लेकर यावत् शुद्धदन्तद्वीप तक का समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र अनुसार जानना चाहिए । इस प्रकार अट्ठाईस द्वीपों के ये अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-१० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 228

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