Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 217
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक भगवत् ! तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विविषक देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! ब्रह्मलोककल्प के ऊपर तथा लान्तककल्प के नीचे तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव रहते हैं। भगवन् ! किन कर्मों के आदान से किल्विषिकदेव, किल्विषिकदेव के रूप में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जो जीव आचार्य और उपाध्याय क अशय करने वाले, अवर्णवाद बोलने वाले और अकीर्ति करने वाले हैं तथा बहुत से असत्य भावों को प्रकट करने से, मिथ्यात्व के अभिनिवेशों से अपनी आत्मा को, दूसरों को और स्व-पर दोनो को भ्रान्त और दुर्बोध करने वाले बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन करके उस अकार्य स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना काल करके तीन में से किन्हीं किल्विषिकदेवों में किल्विषिकदेव रूप में उत्पन्न होते हैं। तीन पल्योपम की स्थीत वालों में, तीन सागरोपम की स्थिति वालों में, अथवा तेरह सागरोपम की स्थिति वालों में | भगवन! किल्विषिक देव उन देवलोकों से आय का क्षय होने पर, भवक्षय होने पर और स्थिति का क्षय होने के बाद च्यवकर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ?, गौतम ! कुछ किल्विषिकदेव, नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव के चारपांच भव करके और इतना संसार-परिभ्रमण करके तत्पश्चात सिद्धबद्ध होते हैं, यावत सर्वदःखो का अन्त करते हैं और कितने ही किल्विषिकदेव अनादि, अनन्त और दीर्घ मार्ग वाले चार गतिरूपसंसार-कान्तार में परिभ्रमण करते हैं भगवन् ! क्या जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी, अन्ताहारी, प्रान्ताहारी, रूक्षाहारी, तुच्छाहारी, अरसजीवी, विरसजीवी यावत् तुच्छजीवी, उपशान्तजीवी, प्रशान्तजीवी और विविक्तजीवो था ? हाँ, गौतम ! जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावत् विविक्तजीवी था । भगवन् ! यदि जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावत् विकिक्तजीवी था, तो काल के समय काल करके वह लान्तककल्प में तेरह सागरोपम की स्थीत वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देव के रूप में क्यों उत्पान्न हुआ ? गौतम ! जमालि अनगार आचार्य का प्रत्यनीक, उपाध्याय का प्रत्यनीक तथा आचार्य और उपाध्याय का अपयश करने वाला और उनका अवर्णवाद करने वाला था, यावत् वह मिथ्याभिनिवेश द्वारा अपने आपको, दूसरों को और उभय को भ्रान्ति में डालने वाला और दुर्विदग्ध बनाने वाला था, यावत् बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन कर, अर्द्धमासिक संलेखना से शरीर को कृश करके तथा तीस भक्त का अनशन द्वारा छेदन कर उस अकृत्यस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही, उसने काल के समय काल किया, जिससे वह लान्तक देवलोक में तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देवरूप में उत्पन्न हुआ। सूत्र-४७० भगवन् ! वह जमालि देव उस देवलोक से आयु क्षय होते पर यावत् कहाँ उत्पान्न होगा ? गौतम ! तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव के पांच भव ग्रहण करके और इतना संसार-परिभ्रमण करके तत्पश्चात् वह सिद्ध होगा, बुद्ध होगा यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।। शतक-९, उद्देशक-३४ सूत्र-४७१ उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । वहाँ भगवान् गौतम ने यावत् भगवान् से पूछा-भगवन् ! कोई पुरुष पुरुष की घात करता हुआ क्या पुरुष की ही घात करता है अथवा नोपुरुष की भी घात करता है ? गौतम ! वह पुरुष का भी घात करता है और नोपुरुष का । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं एक ही पुरुष को मारता हूँ; किन्तु वह एक पुरुष को मारता हुआ अन्य अनेक जीवों को भी मरता है । इसी दृष्टि से ऐसा कहा जाता है। भगवन् ! अश्व को मारता हुआ कोई पुरुष क्या अश्व को ही मारता है या नो अश्व मारता है ? गौतम ! वह अश्व को मारता है और नोअश्व को भी मारता है । भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? गौतम ! इसका उत्तर पूर्ववत् समझना चाहिए । इसी प्रकार हाथी, सिंह, व्याघ्र चित्रल तक समझना चाहिए। भगवन् ! कोई पुरुष किसी एक त्रस प्राणी को मारता हुआ क्या उसी त्रसप्राणी को मारता है, अथवा उसके मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 217

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