Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक सूत्र-४४९
भगवन् ! वे असोच्चा कवली ऊर्ध्वलोक में होते है, अधोलोक में होते हैं या तिर्यक्लोक में होते हैं ? गौतम ! वे तीनो लोक में भी होते हैं । यदि ऊर्ध्वलोक में होते हैं तो शब्दापाती, विकटापाती, गन्धापाती और माल्यवन्त नामक वृत (वैताढ्य) पर्वतों में होते हैं तथा संहरण की अपेक्षा सौमनसवन में अथवा पाण्डुकवन में होते हैं । यदि अधोलोक में होते हैं तो गर्ता में अथवा गुफ़ा में होते है तथा संहरण की अपेक्षा पातालकलशों में अथवा भवनवासी देवों के भवनों में होते हैं । यदि तिर्यग्लोक में होते हैं तो पन्द्रह कर्मभूमि में होते हैं तथा संहरण की अपेक्षा अढाई द्वीप और समुद्रों के एक भाग में होते हैं।
भगवन् ! वे असोच्चा केवली एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट दस होते हैं । इसलिए हे गौतम ! मैं एसा कहता हुँ कि केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से धर्मश्रवण किये बिना ही किसी जीव को केवलिप्ररूपित धर्म-श्रवण प्राप्त होता है और किसी को नहीं होता; यावत् कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न कर लेता है और कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न नहीं कर पाता। सूत्र-४५०
भगवन ! केवली यावत केवलि-पाक्षिक की उपासिका से श्रवण कर क्या कोई जीव केवलिप्ररूपित धर्मबोध प्राप्त करता है ? गौतम ! कोई जीव प्राप्त करता है और कोई जीव प्राप्त नहीं करता । इस विषय में असोच्चा के समान सोच्चा की वक्तव्यता कहना । विशेष यह कि सर्वत्र सोच्चा ऐसा पाठ कहना । शेष पूर्ववत् यावत् जिसने मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है तथा जिसने केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय किया है, वह यावत् धर्मवचन सुनकर केवलिप्ररूपित धर्म-बोध प्राप्त करता है, शुद्ध बोधि का अनुभव करता है, यावत् केवलज्ञान प्राप्त करता है।
निरन्तर तेले-तेले तपःकर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए प्रकृतिभद्रता आदि गुणों से यावत् ईहा, अपोह, मार्गण एवं ग्वेषण करते हुए अवधिज्ञान समुत्पन्न होता है । वह उस उत्पन्न अवधिज्ञान के प्रभाव से जघन्य अंगुल के असंख्याततवें भाग और उत्कृष्ट अलोक में भी लोकप्रमाण असंख्य खण्डों को जानता और देखता है।
___ भगवन् ! वह (अवधिज्ञानी जीव)कितनी लेश्याओं में होता है ? गौतम ! वह छहों लेश्याओं में होता हे यथाकष्णलेश्या यावत शक्ललेश्या । भंते ! वह कितने ज्ञानों में होता है गौतम ! तीन या चार ज्ञानों में । यदि तीन ज्ञानों में होता है, तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रतज्ञान और अवधिज्ञान में होता है । यद चार ज्ञान में होता है तो आभिनिबीधकज्ञान, यावत् मनःपर्यवज्ञान में होता है । भगवन् ! वह सयोगी होता है अथवा अयोगी ? गौतम जैसे
चा के योग, उपयोग, संहनन, संस्थान, ऊंचाइ और आयुष्य के विषय में कहा, उसी प्रकार यहाँ भी योगादि के विषय में कहना।
भगवन् ! वह अवधिज्ञानी सवेदी होता है अथवा अवेदी ? गौतम ! वह सवेदी भी होता है अवेदी भी होता है। भगवन् ! यदि वह अवेदी होता है तो क्या उपशान्तवेदी होता है अथवा क्षीणवेदी होता है ? गौतम ! वह उपशान्तवेदी नहीं होता, क्षीणवेदी होता है। भगवन् ! यदि वह सवेदी होता है तो क्या स्त्रीवेदी होता है इत्यादि पृच्छा गौतम ! वह स्त्रीवेदी भी होता है, पुरुषवेदी भी होता है अथवा पुरुष नपुंसकवेदी होता है।
____ भगवन् ! वह अवधिज्ञानी सकषायी होता है अथवा अकषायी ? गौतम ! वह सकषायी भी होता है , अकषायी भी होता है । भगवन् ! यदि वह अकषायी होता है तो क्या उपशान्तकषायी होता है या क्षीणकषायी ? गौतम ! वह उपशान्तकषायी होता हे या क्षीणकषायी ? गौतम ! वह उपशान्तकषायी नहीं होता, किन्तु क्षीणकषायी होता है। भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है । यदि वह चार कषायों में होता है, तो संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ में होता है । यदि तीन कषायों में होता है तो संज्वलन मान, माया और लोभ में, यदि दो कषायों में होता है तो संज्वलन माया और लोभ में और यदि एक कषाय में होता है तो एक संज्वलन लोभ में होता है।
भंते ! उस अवधिज्ञानी के कितने अध्यवसाय बताए गए हैं? गौतम ! उसके असंख्यात अध्यवसाय होते हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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