Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1
शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक उल्लसित हुआ और जहाँ देवानन्दा ब्राह्मणी थी, वहाँ आया और उसके पास आकर इस प्रकार बोला- हे देवानुप्रिये ! धर्म की आदि करने वाले यावत् सर्वज्ञ सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर आकाश में रहे हुए चक्र से युक्त यावत् सुखपूर्ववक विहार करते हुए यहाँ पधारे है, यावत् बहुशालक नामक चैत्य में योग्य अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरण करते है । हे देवानुप्रिये ! उन तथारूप अरिहन्त भगवान् के नाम-गौत्र के श्रवण से भी महाफल प्राप्त होता है, तो उनके सम्मुख जाने, वन्दन-नमस्कार करने, प्रश्न पूछने और पर्युपासना करने आदि से होने वाले फल के विषय में
हना ही क्या ! एक भी आर्य और धार्मिक सुवचन के श्रवण से महान फल होता है, तो फिर विपुल अर्थ को ग्रहण करने से महाफल हो, इसमें तो कहना ही क्या हे ! इसलिए हे देवानुप्रिये ! हम चलें और श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमन करें यावत् उनकी पर्युपासना करें । यह कार्य हमारे लिए इस भव में तथा परभव में हित के लिए, सुख के लिए,क्षमता के लिए, निःश्रेयस, के लिए और आनुगामकिता के लिए होगा।
तत्पश्चात ऋषभदत्त ब्राह्मण से इस प्रकार का कथन सन कर देवानन्दा ब्राह्मणी हृदय में अत्यन्त हर्षित यावत उल्लसित हुई और उसने दोनो हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजलि करके ऋषभदत्त ब्राह्मण के कथन को विनयपूर्वक स्वीकार किया । तत्पश्चात उस ऋषभदत्त ब्राह्मण ने अपने कौटम्बिक पुरुषो को बुलाया और इस प्रकार कहादेवानुप्रियो ! शीघ्र चलने वाले, प्रशस्त, सदशरूप वाले, समान खुर और पूंछ वाले, एक समान सींग वाले, स्वर्णनिर्मित कलापों से युक्त, उत्तम गति वाले, चांदी की घंटियो से युक्त, स्वर्णमय नाथ द्वारा नाथे हए, नील कमल की कलंगी वाले दो उत्तम युवा बैलों से युक्त, अनेक प्रकार की मणिमय घंटियो के समूह से व्याप्त, उत्तम काष्ठस्य जुए और जीत की उत्तम दो डोरियों से युक्त, प्रवर लक्षणों से युक्त धार्मिक श्रेष्ठ यान शीघ्र तैयार करके यहाँ उपस्थित करो और इस आज्ञा को वापिस करो अर्थात् इस आज्ञा का पालन करके मुझे सूचना करो।
जब ऋषभदत्त ब्राह्मण ने उन कौटुम्बिक पुरुषों को इस प्रकार कहा, तब वे उसे सुनकर अत्यन्त हर्षित यावत् हृदय में आनन्दित हुए और मस्तक पर अंजलि करके कहा-स्वामिन ! आपकी यह आज्ञा हमें मान्य है - । इस प्रकार कह कर विनयपूर्वक उनके वचनों को स्वीकार किया और शीघ्र ही द्रुतगामी दो बैलों से युक्त यावत् श्रेष्ठ धार्मिक रथ को तैयार करके उपस्थित किया, यावत् उनकी आज्ञा के पालन की सूचना दी। तदनन्तर वह ऋषभदत्त ब्राह्मण स्नान यावत् अल्पभार और महामूल्य वाले आभूषणो से अपने शरीर को अलंकृत किये हुए अपने घर से बाहर निकला । जहाँ बाहरी उपस्थापनशाला थी और जहाँ श्रेष्ठ धार्मिक रथ था, वहाँ आया । उस रथ पर आरूढ हुआ। तब देवा ब्राह्मणी ने भी स्नान किया, यावत् अल्पभार वाले महामूल्य आभूषणों से शरीर को सुशोभित किया। फिर बहुत सी कब्जा दासियो तथा चिलात देश की दासियो के साथ यावत् अन्तःपुर से निकली । जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी
और जहाँ श्रेष्ठ धार्मिक रथ खडा था, वहाँ आई । उस श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर आरूढ हई। वह ऋषभदत्त ब्राह्म देवानन्दा ब्राह्मणी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर आरूढ हो अपने परिवार से परिवृत्त होकर ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर के मध्य में होता हुआ निकला और बहुशालक नामक उद्यान में आया । वहाँ तीर्थकर भगवान् के छत्र आदि अतिशयों को देखा । देखते ही उसने श्रेष्ठ धार्मिक रथ को ठहराया और उस श्रेष्ठ-धर्म रथ से नीचे उतरा । वह श्रमण भगवान् महावीर के पास पांच प्रकार के अभिगमपूर्वक गया । वे पाँच अभिगम है (१) सचित द्रव्यों का त्याग करना इत्यादि; द्वितीय शतक में कहे अनुसार यावत् तीन प्रकार की पर्युपासना से उपासना करने लगा। सूत्र - ४६९
देवानन्दा ब्राह्मणी भी धार्मिक उत्तम रथ से नीचे उतरी और अपनी बहुत-सी दासियों आदि यावत् महत्तरिका-वृन्द से परिवृत्त हो कर श्रमण भगवान् महावीर के सम्मुख पंचविध अभिगमपूर्वक गमन किया । वे पाँच अभिगम है-सचित द्रव्यों का त्याग करना, अचित द्रव्यों का त्याग न करता, विनय से शरीर को अवनत करना, भगवान् के दृष्टिगोचर होते ही दोनो हाथ जोड़ना, मन को एकाग्र करना । जहाँ श्रमण महावीर थे, वहाँ आई और तीन वार आदक्षिण प्रदशिणा की, फिर वन्दन-नमस्कार के बाद ऋषभदत्त ब्राह्मण को आगे करके अपने परिवार सहित शुश्रूषा करती हुई, नमन करती हुई, सम्मुख खड़ी रह कर विनयपूर्वक हाथ जोड़ कर उपासना करने लगी।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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