Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक अग्रकेशों को ग्रहण किया । फिर उन्हें सुगन्धित गन्धोदक से धोया, फिर प्रधान वं श्रेष्ठ गन्ध एवं माला द्वारा उनका अर्चन किया और शुद्ध वस्त्र में उन्हें बांध कर रत्नकरण्डक में रखा । इसके बाद जमालिकुमार की माता हार, जलधारा, सिन्दुवार के पुष्पों एवं टूटी हुई मोतियों की माला के समान पुत्र के दुःसह वियोग के कारण आंसू बहाती हुई इस प्रकार कहने लगी- ये हमारे लिए बहुत-सी तिथियो, पर्वो, उत्सवों और नागपूजादिरूप यज्ञों तथा महोत्सवादिरूप क्षणों में क्षत्रियकुमार जमालि के अन्तिम दर्शनरूप होंगे ऐसा विचार कर उन्हें अपने तकिये के नीचे रख दिया।
इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता ने दुसरी बार भी उत्तरदिशाभिमुख सिंहासन रखवाया और क्षत्रियकुमार जमालि को चांदी और सोने के कलशों से स्नान करवाया । फिर रुएँदार सुकोमल गन्धकाषायित सुगन्धियुक्त वस्त्र से उसके अंग पोछे । उसके बाद सरस गोशीर्षचन्दन का अंग प्रत्यंग पर लेपन किया । तदनन्तर नाक के निःश्वास की वायु से उड़ जाए, ऐसा बारीक, नेत्रों को आह्लादक लगने वाला, सुन्दर वर्ण और कोमल स्पर्श से युक्त, घोड़े के मुख की लार से भी अधिक कोमल, श्येत और सोने के तारों से जुड़ा हुआ, महामूल्यवान् एवं हंस के चिह्न से युक्त पटशाटक पहिनाया । हार एवं अर्द्धहार पहिनाया । सूर्याभदेव के अलंकारों का वर्णन अनुसार समझना चाहिए, यावत् विचित्र रत्नों से जटिल मुकुट पहानया । ग्रन्थिम, वेष्टिम, पूष्टिम, पूरिम और संघातिम रूप से तैयार की हुई चारों प्रकार की मालाओं से कल्पवृक्ष के समान ।स जमालिकुमार को अलंकृत एवं विभूषित किया।
तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बालुया और उनसे इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही अनेक सैकड़ौं खंभों से युक्त, लीलापूर्वक खड़ी हुई पुतलियों वाली, इत्यादि, राजप्रश्नीयसूत्र में वर्णित विमान के समान यावत्-मणि-रत्नों की घंटियों के सहूह से चारों ओर से घिरी हुई, हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने योग्य शिविका उपस्थित करो और मेरी इस आज्ञा का पालन करके मुझे सूचित करो । इस आदेश को सुन कर कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार की शिविका तैयार करके यावत् निवेदन किया । तत्पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि केशालंकार, वस्त्रालंकार, माल्यालंकार आभरणालंकार से अलंकृत होकर तथा प्रतिपूर्ण अलंकारों से सुसञ्जित हो कर सिंहासन से उठा । दक्षिण की ओर से शिविका पर चढा, श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व की ओर मुंह करके आसीन हुआ।
फिर क्षत्रियकुमार जमालि की माता स्नानादि करके यावत् शरीर को अलंकृत करके हंस के चिह्न वाला श्रेष्ठ भद्रासन पर बैठी । तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि की धायमाता ने स्नानादि किया, यावत् शरीर की अलंकृत करके
पात्र ले कर दाहिनी ओर से शिविका पर चढीस और क्षत्रियकुमार जमालि के बाई ओर श्रेष्ठ । किर क्षत्रियकुमार जमालि के पृष्ठभाग में श्रृंगार के घर के समान, सुन्दर वेष वाली, सुन्दर गतिवाली, यावत् रूप और यौवन के विलास से युक्त तथा सुन्दर स्तन, जघन, वदन, कर, चरण, लावण्य, रूप एवं यौवन के गुणों से युक्त एक उत्तम तरुणी हिम, रजत, कुमुद, कुन्द पुष्प एवं चन्द्रमा के समान, कोरण्टक पुष्प की माला से युक्त, श्वेत छत्र हाथ में लेकर लीला-पूर्वक धारण करती हुई खड़ी हुई । तदन्तर जमालिकुमार के दोनों ओर श्रृंगार के घर के समान, सुन्दर वेश वाली यावत् रूप-यौवन के विलास से युक्त दो उत्तम तरुणियां हाथ में चामर लिए हुए लीलासहित ढुलाती हुई खड़ी हो गई। वे चामर अनेक प्रकार की मणियों, कनक, रत्नों तथा विशुद्ध एवं महामूल्यवान् तपनीय से निर्मित उज्ज्वल एवं विचित्र दण्ड वाले तथा चमचमाते हए थे और शंख, अंकरत्न, कुन्द-पुष्प, चन्द्र, जलबिन्दु, मथे हुए अमृत के फेन के पुंज समान श्वेत थे।
और फिर क्षत्रियकुमार जमालि के ईशानकोण में श्रृंगार के गृह के समान, उत्तम वेष वाली यावत् रूप, यौवन और विलास से युक्त एक श्रेष्ठ तरुणी पवित्र जल से परिपूर्ण, उन्मत्त हाथी के महामुख के आकार के समान श्वेत रजतनिर्मित कलश (भंगार) (हाथ में) लेकर खड़ी हो गई । उसके बाद क्षत्रियकुमार जमालि के आग्नेय कोण में शृंगार गृह के तुल्य यावत् रूप यौवन और विलास से युक्त एक श्रेष्ठ युवती विचित्र स्वर्णमय दण्ड वाले एक ताड़पत्र के पंखे को लेकर खड़ी हो गई। इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाय और उन्हें इस प्रकार कहा- हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही एक सरीखे, समान त्वचा वाले, समान वय वाले समान लावण्य, रूप और
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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