Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 211
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक कहते हैं कि यह निर्ग्रन्थ-प्रवचन सत्य है, अनुत्तर है, अद्वितीय है, यावत् तू समर्थ नहीं है इत्यादि यावत् बाद में प्रव्रजित होना; किन्तु हे माता-पिता ! यह निश्चित्त है कि नामर्दो, कायरों, कापुरुषों तथा इस लोक में आसक्त और परलोक से पराङ्मुख एवं विषयभोगों की तृष्णा वाले पुरुषों के लिए तथा प्राकृतजन के लिए इस निर्ग्रन्थ-प्रवचन का आचरण करना दुष्कर है; परन्तु धीर, कृतनिश्चय एवं उपाय में प्रवृत्त पुरुष के लिए इसका आचरण करना कुछ भी दुष्कर नहीं है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप मुझे आज्ञा दे दें तो मैं श्रमण भगवान् महावीर के पास दीक्षा ले लूं । जब क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता विषय के अनुकूल और विषय के प्रतिकूल बहुत-सी उक्तियों, प्रज्ञप्तियों, संज्ञप्तियों, संज्ञप्तियों और विणप्तियों द्वारा उसे समझा-बुझा न सके, तब अनिच्छा से उन्होंने क्षत्रियकुमार जमालि को दीक्षाभिनिष्क्रमण की अनमति दे दी। सूत्र-४६५ तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा-शीघ्र ही क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के अन्दर और बाहर पानी का छिड़काव करो, झाड़ कर जमीन की सफाई करके उसे लिपाओ, इत्यादि औपपातिक सूत्र अनुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञा वापस सौंपी। क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने दुबारा उन कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही जमालि क्षत्रियकुमार के महार्थ महामूल्य, महार्ह और विपुल निष्क्रमणाभिषेक की तैयारी करो । इस पर कौटुम्बिक पुरुषों ने उनकी आज्ञानुसार कार्य करके आज्ञा वापस सौंपी। इसके पश्चात् जमालि क्षत्रिकुमार के माता-पिता ने उसे उत्तम सिंहासन पर पूर्व की ओर मुख करके बिठाया। फर एक सौ आठ सोने के कलशों से इत्यादि राजप्रश्नीयसूत्र अनुसार यावत् एक सौ आठ मिट्टी के कलशों से सर्वऋद्धि के साथ यावत् महाशब्द के साथ नष्क्रमणीभषेक किया । नष्क्रमणाभिषेक पूर्ण होने के बाद (जमालिकुमार के माता-पिता ने) हाथ जोड़ कर जय-विजय-शब्दों से उसे बधाया । फिर उन्होंने उससे कहा-पुत्र ! बताओ, हम तुम्हें क्या दें ? तुम्हारे कस कार्य में क्या, दें ? तुम्हारा क्या प्रयोजन है ? इस पर क्षत्रियकुमार जमालि ने माता-पिता से इस प्रकार कहा-हे माता-पिता ! मैं कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र मंगवाना चाहता हूँ और नापित को बुलाना चाहता हूँ। तब क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही श्रीघर से तीन लाख स्वर्णमुद्राएँ निकाल कर उदमें से एक-एक लाख सोनैया दे कर कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र ले आओ तथा एक लाख सोनैया देकर नापित को बुलो । क्षत्रियकुमार जमालि के पिता की उपर्युक्त आज्ञा सुन कर वे कौटुम्बिक पुरुष बहुत ही हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए । उन्होंने हाथ जोड़ कर यावत् स्वामी के वचन स्वीकार किए और शीघ्र ही श्रीघर से तीन लाख स्वर्णमुद्राएँ निकाल कर कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाए तथा नापित को बुलाया। फिर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के आदेश से कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा नाई को बुलाए जाने पर वह बहुत ही प्रसन्न और तुष्ट हुआ । उसने स्नानादि किया, यावत् शरीर को अलंकृत किया, फिर जहाँ क्षत्रियकुमार जमालि के पिता थे. वहाँ आया और उन्हें जय-विजय शब्दों से बधाया, फिर इस प्रकार कहा- हे देवानुप्रिय! मुझे करने योग्य कार्य का आदेश दीजिये। इस पर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने उस नापित से कहा-हे देवानुप्रिय ! क्षत्रियकुमार जमालि के निष्क्रमण के योग्य अग्रकेश चार अंगुल छोड़ कर अत्यन्त यत्न-पूर्वक काट दो । क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के द्वारा यह आदेश दिये जाने पर वह नापित अत्यन्त हर्षित एवं तुष्ट हुआ और हाथ जोड़ कर यावत् बोला- स्वामिन् ! आपकी जैसी आज्ञा है, वैसा ही होगा, इस प्रकार उसने विनयपूर्वक उनके वचनों को स्वीकार किया। फिर सुगन्धित गन्धोदक से हाथ-पैर धोए, आठ पट वाले शुद्ध वस्त्र से मुहं बांधा और अत्यन्त यत्नपूर्वक क्षत्रियकुमार जमालि के निष्क्रमणयोग्य अग्रकेशों को चार अंगुल छोड़ कर काटा । ___ इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि की माता नेशुक्लवर्ण केया हंस-चिह्न वाले वस्त्र की चादर में उन मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 211

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