Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक
तदनन्तर दस देवानन्दा ब्राह्मणी के स्तनो में दुध आया । उसके नेत्र हर्षाश्रुओ से भीग गए । हर्ष से प्रफुल्लित होती हई उसकी बाहों को बलयों ने रोक लिया । हर्षातिरेक से उसकी कञ्चुकी विस्तीर्ण हो गई । मेघ की धारा से विकसित कदम्बपुष्प के समान उसका शरीर रोमाञ्चित हो गया। फिर वह श्रमण भगवान् महावीर को अनिमेष दृष्टि से देखती रही । भगवान् गौतम ने, श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन नमस्कार किया और पूछा-भन्ते ! इस देवानन्दा ब्राह्मणी के स्तनो से दुध कैसे निकल आया ? यावत् इसे रोमांच क्यों हो आया ? और यह आप देवानुप्रिये को अनिमेष दृष्टि से देखती हुई क्यो खड़ी है ? श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने भगवान् गौतम से कहा है गौतम ! देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है । मैं देवानन्दा का अत्मज हूं । इसलिए देवानन्दा को पूर्व-पुत्रसन्हनुरागवश दूध आ गया, यावत् रोमाञ्च हुआ और यह मुझे अनिमेष दृष्टि से देख रही है। सूत्र -४६२
तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने ऋषभदत्तब्राह्मण और देवानन्दा तथ उस अत्यन्त बड़ी ऋषिपरिषद् को धर्मकथा कही; यावत् परिषद् वापर चली गई।
इसके पश्चात वह ऋषभदत्त ब्राह्मण, श्रमण भगवान महावीर के पास धर्म-श्रमण कर और उसे हदय में धारण करके हर्षित और सन्तुष्ट होकर खड़ा हुआ । उसने श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा की, यावत् वन्दन-नमन करके इस प्रकार निवेदन किया- भगवन् ! आपने कहा, वैसा ही है, आपका कथन यर्थाथ है भगवन्!' इत्यादि स्कन्दक तापस-प्रकरण में कहे अनुसार; यावत्- 'जो आप कहते है, वह उसी प्रकार है। इस प्रकार कह कर वह ईशानकोण में गया । वहाँ जा कर उसने स्वयमेव आभूषण, माला और अलंकचार उतार दिये । फिर स्वयमेव पंचमुष्टि केशलोच किया और श्रमण भगवान् महावीर के पास आया । भगवान् की तीन बार प्रदक्षिणा की, यावत् नमस्कार करके इस प्रकार कहा- भगवन् ! यह लोक चारों ओर से प्रज्वलित हो रहा है, भगवन् ! यह लोक चारों ओर से अत्यन्त जल रहा है, इत्यादि कह कर स्कन्दक तापस के अनुसार प्रव्रज्या ग्रहण की, यावत् सामायिक आदि ग्यारह अंगो का अध्ययन किया, यावत् बहुत-से उपवास, बेला, तेला, चौला इत्यादि विचित्र तपःकर्मो से आत्मा को भावित करते हुए, बहुत वर्षों तक श्रामण्यपर्याय का पालन किया और एक मास की संल्लेखना से आत्मा को संलिखित करके साठ भक्तों का अनशन से छेदन किया ओर ऐसा करके जिस उद्देश्य से नग्रभाव स्वीकार किया, यावत् आराधना कर ली, यावत् वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त एवं सर्वदुःखों से रहित हुए।
तदन्तर श्रमण भगवान महावीरस्वामी से धर्म सुनकर एवं हृदयंगम करके वह देवानन्दा ब्राह्मणी अत्यन्त हृष्टं एवं तष्ट हई और श्रमण भगवान महावीर की तीन चार आदक्षिण-प्रदक्षिणा करके यावत् नमस्कार करके इस प्रकार बोली-भगवन् ! आपने जैसा कहा है, वैसा ही है, भगवन् । आपका कथन यर्थाथ है। इस प्रकार ऋषभदत्त के समान देवानन्दा ने भी निवेदन किया; और-धर्म कहा; यहाँ तक कहना चाहिए । तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने देवानन्दा ब्राह्मणी को स्वयमेव प्रव्रजित कराया, स्वयमेव मुण्डित कराया और स्वयमेव चन्दना आर्या को शिष्यारुप में सौंप दिया।
तत्पश्चात् चन्दना आर्या ने देवानन्दा ब्राह्मणी को स्वयं प्रव्रजित किया, स्वयमेव मुण्डित किया और स्वयमेद उसे शिक्षा दी । देवानन्दा ने भी ऋषभदत्त के समान इस प्रकार के धार्मिक उपदेश को सम्यक रूप से स्वीकार किया
और वह उनकी आज्ञानुसार चलने लगी, यावत् संयम में सम्यक् प्रवृत्ति करने लगी। तदनन्तर आर्या देवानन्दा ने आर्य चन्दना से सामायिक आदि ग्यारह अंगो का अध्ययन किया । शेष वर्णन पूर्ववत्, यावत् समस्त दुःखों से रहित हुई। सूत्र - ४६३
उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर से पश्चिम दिशा में क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर था । (वर्णन) उस क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में जमालि नाम का क्षत्रियकुमार रहता था । वह आढ्य, दीप्त यावत् अपरिभूत था । वह जिसमें मृदंग वाद्य की स्पष्ट ध्वनि हो रही थी, बत्तीस प्रकार के नाटको के अभिनय और नृत्य हो रहे थे, अनेक प्रकार की सुन्दर तरुणियों द्वारा सम्प्रयुक्त नृत्य और गुणगान बार-बार किये जा रहे थे, उसकी प्रशंसा से भवन गुंजाया जा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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