Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक प्रवेशनक से अल्प, यावत् विशेषाधिक है ? गांगेय ! सबसे थोड़े वैमानिकदेव-प्रवेशनक है, उनसे भवनवासीदेवप्रवेशनक असंख्यातगुणे है, उनसे वाणव्यन्तरदेव-प्रवेशनक असंख्यातगुणे है, और उनसे ज्योतिष्कदेव-प्रवेशनक संख्यतागुणे हैं।
भगवन् ! इन नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव-प्रवेशनक, इन चारो में से कौन किससे अल्प, यावत विशेषाधिक है। गांगेय ! सबसे। अल्प मनुष्य-प्रवेशनक है, उससे नैरयिक-प्रवेशनक असंख्यतागुणा है, और उससे देव-प्रवेशनक असंख्यतागुणा है, और उससे तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है। सूत्र-४५८
भगवन ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते है या निरन्तर उत्पन्न होते है ? असुरकुमार सान्तर उत्पन्न होते है अथवा निरन्तर ? यावत वैमानिक देव सान्तर उत्पन्न होते है या निरन्तर उत्पन्न होते है ? (इसी तरह) नैरयिक का उद्वर्तन सान्तर होता है अथवा निरन्तर ? यावत वाणव्यन्तर देवो का उद्वर्त्तन सान्तर होता है या निरन्तर ? ज्योतिष्क देवो का सान्तर च्यवन होता है या निरन्तर ? वैमानिक देवों का सान्तर च्यवन होता है या निरन्तर होता है?
हे गांगेय ! नैरयिक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी, यावत् स्तनितकुमार सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । पृथ्वीकायिकजीव सान्तर उत्पन्न नही होते, किन्तु निरन्तर ही उत्पन्न होते है । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीव सान्तर उत्पन्न नही होते, किन्तु निरन्तर उत्पन्न होते है। शेष सभी जीव नैरयिक जीवों के समान सान्तर भी उत्पन्न होते है, निरन्तर भी, यावत् वैमानिक देव सान्तर भी उत्पन्न होते है, और निरन्तर भी । नैरयिक जीव सान्तर भी उद्वर्तन करते है, निरन्तर भी । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना । पृथ्वीकायिकजीव सान्तर नहीं उद्ववर्तते, निरन्तर उद्ववर्तित होते है। इसी प्रकार वनस्पतिकायिको तक कहना । शेष सभी जीवों का कथन नैरयिको के समान जानना । इतना विशेष है कि ज्योतिष्क देव और वैमानिक देव च्यवते, ऐसा पाठ कहना चाहिए चावत् वैमानिक देव सान्तर भी च्यवते है और निरन्तर भी।
भगवन् ! सत् नैरयिक जीव उत्पन्न होते है या असत् ? गांगेय ! सत् नैरयिक उत्पन्न होते है, असत् नैरयिक उत्पन्न नही होते । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना । भगवन् ! सत् नैरयिक उद्वर्तते है या असत् ? गांगेय ! सत् नैरयिक उद्वर्तते है किन्तु असत् नैरयिक उद्वर्तित नही होते । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना । विशेष इतना है कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवो के लिए च्यवते है, ऐसा कहना । भगवन् ! नैरयिक जीव सत् नैरयिको में उत्पन्न होते हे या असत नैरयिको में ? असुरकुमार देव, सत असुरकुमार देवों में उत्पन्न होते है या असत् असुरकुमार देवो में? इसी प्रकार यावत् सत् वैमानिकों मे उत्पन्न होते है या असत् वैमानिको में ? तथा सत् नैरयिकों में से उद्वर्तते है या असत् नैरयिको में से ? सत् असुरकुमारो में से उद्वर्तते है यावत् सत् वैमानिक में से च्यवते है या असत् वैमानिक में से ? गांगेय ! नैरयिक जीव सत् नैरयिको में उत्पन्न होते है, किन्तु असत् नैरयिको में उत्पन्न नही होते । सत् असुरकुमारों में उत्पन्न होते है, असत् असुरकुमारों मे नही । इसी प्रकार यावत् सत् वैमानिको में उत्पन्न होते है, असत् वैमानिको में नही । सत् नैरयिको में से उद्वर्तते है, असत् नैरयिकों में से नहीं । यावत् सत् वैमानिकों मे से च्यवते है असत् वैमानिको में से नहीं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि नैरयिक सत् नारयिकों में उत्पन्न होते है, असत् नैरयिको में नहीं । इसी प्रकार यावत् सत् वैमानिकों में से च्यवते है, असत् वैमानिकों में से नही ? गांगेय ! निश्चित ही पुरुषादानीय अर्हत् श्रीपार्श्वनाथ ने लोक को शाश्वत, अनादि और अनन्त कहा है इत्यादि, पंचम शतक के नौवे उद्देशक में कहे अनुसार जानना, यावत्-जो अवलोकन किया जाए, उसे लोक कहते है । इस कारण हे गांगेय ! ऐसा कहा जाता है कि यावत् असत् वैमानिकों में से नहीं।
भगवन् ! आप स्वयं इसे प्रकार जानते है, अथवा अस्वयं जानते है ? तथा बिना सुने ही इसे इस प्रकार जानते है, अथवा सुनकर जानते है कि सत् नैरयिक उत्पन्न होते है, असत् नैरयिक नहीं । यावत् सत् वैमानिकों मे से च्यवन होता है, असत् वैमानिको से नही ?' गांगेय ! यह सब इस रूप में मै स्वयं जानता हूं, अस्वयं नहीं तथा बिना सुने ही मै इसे इस प्रकार जानता हूं, सुनकर ऐसा नही जानता कि सत् नैरयिक उत्पन्न होते है, असत नैरयिक नही, यावत् सत्
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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