Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक एक रत्नप्रभा में, एक धूमप्रभा में एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक शर्कराप्रभा में एक बालुकाप्रभा में एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है। जिस प्रकार रत्नप्रभा का उससे आगे की पृथ्वीयों के साथ संचार किया उसी प्रकार शर्कराप्रभा का उससे आगे की पृथ्वीयों के साथ योग करना चाहिए यावत् अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक धुमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वीमें होता है अथवा एक पंकप्रभामें एक धूमप्रभामें, एक तमःप्रभामें, एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है
भगवन ! पांच नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते है ? इत्यादि पृच्छा । गांगेय ! रत्नप्रभा में होते है, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते है।
(द्विकसंयोगी ८४ भंग-) अथवा एक रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा में होते है; यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और चार अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में, इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तमपृथ्वी में अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में । २-६ इसी प्रकार यावत् अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा चार रत्नप्रभा में और शर्कराप्रभा में यावत् अथवा चार रत्नप्रभामें और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक शर्कराप्रभामें, और बालुकाप्रभा में होते है। जिस प्रकार रत्नप्रभा के साथ आगे की पृथ्वीयों का संयोग किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभा के साथ संयोग करने पर बीस भंग होते है । यावत् अथवा चार शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। इसी प्रकार बालुकाप्रभा आदि एक-एक पृथ्वी के साथ आगे की पृथ्वीयों का योग करना; यावत् चार तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
(त्रिकसंयोगी २१० भंग-) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में होते है । इसी प्रकार यावत्-अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और तीन अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में होते है; इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते है। अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में होते है । इस प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते है। इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा दो रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है। इसी प्रकार यावत् दो रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है । इस प्रकार यावत् तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा मे, एक बालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते है, इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा मे, एक शर्कराप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में । इसी प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्व में । अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में । इस प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा दो रत्नप्रभ में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में । इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा मे, और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और दो धूमप्रभा में | जिस प्रकार चार नैरयिक जीवो के चतुःसंयोगी भंग कहे है, उसी प्रकार पांच नैरयिक जीवो के चतुःसंयोगी भंग कहना चाहिए, किन्तु यहाँ एक अधिक का संचार करना । इस प्रकार यावत् दो पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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