Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । (३३) अथवा एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। अथवा एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
भगवन् ! नैरयिकप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए चार नैरयिक जीव क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न । गांगेय ! वे चार नैरयिक जीव रत्नप्रभा में होता है, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं।
(द्विकसंयोगी तिरसेठ भंग)-अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते है; अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में होते है; इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तमपृथ्वी में होते है। अथवा दो रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में होते है; इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तमपथ्वी में होते है। अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है। इसी प्रकार यावत अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमपथ्वी में होता है। अथवा एक शर्कराप्रभा में और तीन बालकाप्रभा में होते है। जिस प्रकार रत्नप्रभा का आगे की नरकपृथ्वीयो के साथ संचार किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभा का भी उसके आगे की नरको के साथ संचार करना चाहिए। इसी प्रकार आगे की एक-एक नरकपृथ्वीयों के साथ योग करना चाहिए।
(त्रिकसंयोगी १०५ भंग) - अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते है। इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में, इसी प्रकार यावत् अथवा रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में । इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में । इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में । इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में
और दो अधःसप्तमपृथ्वी में । इसी प्रकार के अभिलाप द्वारा जैसे तीन नैरयिको के त्रिकसंयोगी भंग कहे, उसी प्रकार चार नैरयिको के भी त्रिकसंयोगी भंग जानना, यावत् दो धूमप्रभामें, एक तमःप्रभामें और एक तमस्तमःप्रभामें होता है
(चतुःसंयोगी ३५ भंग-) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्करप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है, अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में एक धूमप्रभा में और तमःप्रभा में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में एक पंकप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। अथवा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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