Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक चौड़ा है, इत्यादि सारा वर्णन सोम महाराज के विमान की तरह, यावत् अभिषेक तक कहना । इसी प्रकार राजधानी और यावत् प्रासादों की पंक्तियों के विषय में कहना।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज की आज्ञा, सेवा, वचनपालन और निर्देश में रहते हैं, यथायमकायिक, यमदेवकायिक, प्रेतकायिक, प्रेतदेवकायिक, असुरकुमार-असुरकुमारियाँ, कन्दर्प, निरयपाल, आभियोग; ये और इसी प्रकार के वे सब देव, जो उसकी भक्ति में तत्पर हैं, उसके पक्ष के तथा उससे भरण-पोषण पाने वाले तदधीन भृत्य या उसके कार्यभारवाहक हैं । ये सब यम महाराज की आज्ञा में यावत् रहते हैं।
जम्बूद्वीप में मेरूपर्वत से दक्षिण में जो कार्य समुत्पन्न होते हैं । यथा-विघ्न, डमर, कलह, बोल, खार, महा युद्ध, महासंग्राम, महाशस्त्रनिपात अथवा इसी प्रकार महापुरुषों की मृत्यु, महारक्तपात, दुर्भूत, कुलरोग, ग्राम-रोग, मण्डलरोग, नगररोग, शिरोवेदना, नेत्रपीडा, कान, नख और दाँत की पीडा, इन्द्रग्रह, स्कन्दग्रह, कुमारग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह, एकान्तर ज्वर, द्वि-अन्तर तिजारा, चौथिया, उद्वेजक, श्वास, दमा, बलनाशक ज्वर, जरा, दाहज्वर, कच्छकोह, अजीर्ण, पाण्डरोग, अर्शरोग, भगंदर, हृदयशूल, मस्तकपीडा, योनिशूल, पार्श्वशुल, कुक्षि शूल, ग्राममारी, नगरमारी, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, मडम्ब, पट्टण, आश्रम, सम्बाध और सन्निवेश, इन सबकी मारी, प्राणक्षय जनक्षय, कुलक्षय, व्यसनभूत अनार्य, ये और इसी प्रकार के दूसरे सब कार्य देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-यम महाराज से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, अविस्मृत और अविज्ञात नहीं हैं।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-यम महाराज के देव अपत्यरूप से अभिमत है। सूत्र-१९६,१९७
'अम्ब, अम्बरिष, श्याम, शबल, रुद्र, उपरुद्र, काल, महाकाल । तथा-असिपत्र, धनुष, कुम्भ, वालू, वैतरणी, खरस्वर और महाघोष ये पन्द्रह विख्यात हैं। सूत्र-१९८
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-यम महाराज की स्थिति तीन भाग सहित एक पल्योपम की है और उसके अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम है। ऐसी महाऋद्धि वाला यावत् यममहाराज है। सूत्र - १९९
भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-वरुण महाराज का स्वयंज्वल नामक महाविमान कहाँ है? गौतम! उस सौधर्मावतंसक महाविमान से पश्चिम में सौधर्मकल्प से असंख्येय हजार योजन पार करने के बाद, स्वयंज्वल नाम का महाविमान आता है; इसका सारा वर्णन सोममहाराज के महाविमान की तरह जान लेना, राजधानी यावत् प्रासादावतंसकों के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार समझना । केवल नामों में अन्तर है।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वरुण महाराज के ये देव आज्ञा में यावत् रहते हैं-वरुणकायिक, वरुणदेवकायिक, नागकुमार-नागकुमारियाँ; उदधिकुमार-उदधिकुमारियाँ, स्तनितकुमार-स्तनितकुमारियाँ; ये और दूसरे सब इस प्रकार के देव, उनकी भक्ति वाले यावत् रहते हैं।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत से दक्षिण दिशा में जो कार्य समुत्पन्न होते हैं, वे इस प्रकार हैं-अति-वर्षा, मन्दरवर्षा, सुवृष्टि, दुर्तुष्टि, पर्वत आदि से नीकलने वाला झरना, सरोवर आदि में जमा हुई जलराशि, पानी का अल्प प्रवाह, प्रवाह, ग्राम का बह जाना, यावत् सन्निवेशवाह, प्राणक्षय यावत् इसी प्रकार के दूसरे सभी कार्य वरुण महाराज से अथवा वरुणकायिक देवों से अज्ञात आदि नहीं हैं।
देवेन्द्र देवराज शक्र के (तृतीय) लोकपाल-वरुण महाराज के ये देव अपत्यरूप से अभिमत हैं । यथाकर्कोटक, कर्दमक, अंजन, शंखपाल, पुण्ड, पलाश, मोद, जय, दधिमुख, अयंपुल और कातरिक।
देवेन्द्र देवराज शक्र के तृतीय लोकपाल वरुण महाराज की स्थिति देशोन दो पल्योपम की कही गई है और वरुण महाराज के अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है। वरुण महाराज ऐसी महा ऋद्धि यावत् महाप्रभाव वाला है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 83