Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 165
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक विषयभूत द्रव्यों का कथन करता है, बतलाता है, प्ररूपणा करता है । इसी प्रकार क्षेत्र से और काल से भी जान लेना। भाव की अपेक्षा श्रुत-अज्ञानी श्रुत-अज्ञान के विषयभूत भावों को कहता है, बतलाता है, प्ररूपित करता है । भगवन् ! विभंगज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य की अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत द्रव्यों को जानता और देखता है । इसी प्रकार यावत् भाव की अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत भावों को जानता और देखता है। सूत्र-३९६ भगवन् ! ज्ञानी ज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं । -सादिअपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । इनमें से जो सादि-सपर्यवसित ज्ञानी हैं, वे जघन्यतः अन्तमुहूर्त तक और उत्कष्टतः कछ अधिक छियासठ सागरोपम तक ज्ञानीरूप में रहते हैं । भगवन ! आभिनिबोधिकज्ञानी आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी यावत् केवलज्ञानी, अज्ञानी, मति-अज्ञानी यावत् विभंगज्ञानी, इन दस का अवस्थितिकाल कायस्थितिपद अनुसार जानना । इन सब का अन्तर जीवाभिगमसूत्र अनुसार जानना । इन सबका अल्पबहुत्व बहुवक्तव्यता पद अनुसार जानना। भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञान के पर्याय कितने हैं ? गौतम ! अनन्त पर्याय हैं । भगवन् ! श्रुतज्ञान के पर्याय कितने हैं ? गौतम ! अनन्त पर्याय हैं । इसी प्रकार यावत्, केवलज्ञान के भी अनन्त पर्याय हैं । इसी प्रकार मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान के भी अनन्त पर्याय हैं। भगवन् ! विभंगज्ञान के कितने पर्याय कहे गए हैं ? गौतम ! विभंगज्ञान के अनन्त पर्याय हैं। भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान के पर्यायों में किनके पर्याय, किनके पर्यायों से अल्प, यावत् (बहुत, तुल्य या) विशेषाधिक हैं ? गौतम ! मनःपर्यवज्ञान के पर्याय सबसे थोड़े हैं, उनसे अवधिज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे श्रुतज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे आभिनिबोधिकज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं और उनसे केवलज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं । भगवन् ! इन मतिअज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान के पर्यायों में किनके पर्याय, किनके पर्यायों से यावत् विशेषाधिक हैं । गौतम ! सबसे थोड़े विभंगज्ञान के पर्याय हैं, उनसे श्रुत-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं और उनसे मति-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं । भगवन् ! इन आभिनिबोधिकज्ञान-पर्याय यावत् केवलज्ञान-पर्यायों में तथा मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान के पर्यायों में किसके पर्याय, किसके पर्यायों से यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े मनः पर्यवज्ञान के पर्याय हैं, उनसे विभंगज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे अवधिज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे श्रुतअज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे श्रुतज्ञान के पर्याय विशेषाधिक हैं, उनसे मति-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे आभिनिबोधिकज्ञान के पर्याय विशेषाधिक हैं और केवलज्ञान के पर्याय उनसे अनन्तगुणे हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है। यों कहकर यावत् गौतमस्वामी विचरण करने लगे। शतक-८ - उद्देशक-३ सूत्र-३९७ भगवन् ! वृक्ष कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! वृक्ष तीन प्रकार के कहे गए हैं, संख्यात जीव वाले, असंख्यात जीव वाले और अनन्त जीव वाले। भगवन् ! संख्यातजीव वाले वृक्ष कौन-से हैं ? गौतम ! अनेकविध, जैसे-ताड़, तमाल, तक्कलि, तेतली इत्यादि, प्रज्ञापनासूत्र में कहे अनुसार नारिकेल पर्यन्त जानना । ये और इस प्रकार के जितने भी वृक्षविशेष हैं, वे सब संख्यातजीव वाले हैं। भगवन् ! असंख्यातजीव वाले वृक्ष कौन-से हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा-एकास्थिक और बहजीवक भगवन् ! एकास्थिक वृक्ष कौन-से हैं ? गौतम ! अनेक प्रकार के कहे गए हैं, जैसे-नीम, आम, जामुन आदि । इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र में कहे अनुसार बहुबीज वाले फलों तक कहना। मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 165

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