Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक प्रद्वेष करने से, ज्ञान की अत्यन्त अशातना करने से, ज्ञान के अविसंवादन-योग से तथा ज्ञानवरणीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से । भगवन् ! दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! दर्शनप्रत्यनीकता से, इत्यादि ज्ञानवरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध, के समान दर्शनावरणीय कार्मणशरीरप्रयोगबंध के भी कारण जानना; अन्तर इतना ही है कि यहाँ दर्शन शब्द तथा यावत् दर्शनविसंवादन योग से तथा दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से कहना । भगवन् ! सातावेदनीयर्म-शरीरप्रयोगबंध किस कर्म से उदय से होता है? गौतम ! प्राणियों पर अनुकम्पा करने से, भूतों पर अनुकम्पा करने से इत्यादि, सातवें शतक में कहे अनुसार यहां भी प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को परिताप उत्पन्न न करने से तथा सातावेदनीय कर्मशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से तक कहना । भगवन् ! असातावेदनीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! दसरे जीवों को दःख पहंचाने से इत्यादि, सातवें शतक के अनुसार यहाँ भी, उन्हें परिताप उत्पन्न
तथा असातावेदनीय-कर्मशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से तक कहना। भगवन ! मोहनीयकर्मशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! तीव्र क्रोध से, तीव्र मान से, तीव्र माया से, तीव्र लोभ से, तीव्र दर्शनमोहनीय से और तीव्र चारित्रमोहनीय से तथा मोहनीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है।
भगवन् ! नैरयिकायुष्कार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! महारम्भ करने से, महापरिग्रह से, पञ्चेन्द्रिय जीवों का वध करने से और मांसाहार करने से तथा नैरयिकायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है। भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिकआयुष्यकार्मण-शरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता हे ? गौतम ! माया करने से, निकृति करने से, मिथ्या बोलने से, खोटा तौल और खोटा माप करने से तथा तिर्यञ्चयोनिकआयुष्य-कार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है । भगवन् ! मनुष्यायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! प्रकृति की भद्रता से, प्रकृति की विनीतता से, दयालुता से, अमत्सरभाव से तथा मनुष्यायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से । भगवन् ! देवायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सरागसंयम से, संयमासंयम से, बाल तपस्या से तथा अकामनिर्जरा से एवं देवायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगनाकर्म के उदय से होता है।
भगवन् ! शुभनामर्काणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! काया की, भावों की, भाषा की ऋजुता से तथा अविसंवादनयोग से एवं शुभनामकार्मणशरीरप्रयोगनाकर्म के उदय से | भगवन् ! अशुभनामकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! काया की भावों की, भाषा की वक्रता से तथा विसंवादनयोग से एवं अशुभनामकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से । भगवन् ! उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गोतम ! जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, शतमद, लाभमद
और ऐश्वर्यमद न करने से तथा उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से । भगवन् ! नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! जातिमद, यावत् ऐश्वर्यमद करने से तथा नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनाकर्म के उदय से होता है।
भगवन् ! अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! दानान्तराय से, लाभान्तराय से, भोगान्तराय से, उपभोगान्तराय से और वीर्यान्तराय से तथा अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्मके उदय से । भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध है अथवा सर्वबंध है ? गौतम ! वह देशबंध है, सर्वबंध नहीं है । इसी प्रकार अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध तक जानना । भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोबंध कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! यह दो प्रकार का है, के अनादि-सपर्यवसित और अनादिअपर्यवसित । तैजसशरीर प्रयोगबंध समान यहाँ भी कहना । इसी प्रकार अन्तरायकर्म तक रहना।
भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध का नअन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! अनादिअपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित का अन्तर नहीं होता । जिस प्रकार तैजसशरीरप्रयोगबंध के अन्तर के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। इसी प्रकार अन्तरायकाणशरीरप्रयोगबंध के अन्तर तक समझना।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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