Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक
शतक-९ सूत्र -४३८
____१. जम्बूद्वीप, २. ज्योतिष, ३. से ३० तक (अट्ठाईस) अन्तर्वीप, ३१. अश्रुत्वा ३२. गांगेय, ३३. कुण्डग्राम, ३४. पुरुष । नौवें शतक में चौंतीस उद्देशक हैं।
शतक-९ - उद्देशक-१ सूत्र -४३९
उस काल और उस समय में मिथिला नगरी थी । वहाँ माणिभद्र चैत्य था । महावीर स्वामी का समवसरण हुआ । परिषद् निकली । (भगवान् ने)-धर्मोपदेश दिया, यावत् भगवान् गौतम ने पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछा-भगवन् ! जम्बूद्वीप कहाँ है ? (उसका) संस्थान किस प्रकार है ? गौतम ! इस विषय में जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति में कहे अनुसार-जम्बूद्वीप में पूर्व-पश्चिम समुद्र गामी कुल मिलाकर चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ हैं, ऐसा कहा गया है तक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-९ - उद्देशक-२ सूत्र-४४०
राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने पूछा-भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं, और करेंगे ? जीवाभिगमसूत्रानुसार कहेना। सूत्र-४४१, ४४२
एक लाख तेतीस हजार नौ सौ पचास कोड़ाकोड़ी तारों के समूह । शोभित हए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे तक जानना चाहिए। सूत्र -४४३
भगवन् ! लवणसमुद्र में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं और करेंगे? गौतम ! जीवाभिगमसूत्रानुसार तारों के वर्णन तक जानना।
घातकीखण्ड, कालोदधि, पुष्करवरद्वीप, आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध और मनुष्यक्षेत्र; इन सब में जीवाभिगमसूत्र के अनुसार- एक चन्द्र का परिवार कोटाकोटी तारागण (सहित) होता है। तक जानना चाहिए।
भगवन् ! पुष्करार्द्ध समुद्र में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करेंगे ? समस्त द्वीपों और समुद्रों में ज्योतिष्क देवों का जो वर्णन किया गया है, उसी प्रकार स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे तक कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है; भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-९- उद्देशक-३ से ३० सूत्र -४४४
राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा-भगवन् ! दक्षिण दिशा का एकोरुक मनुष्यों का एकोरुकद्वीप नामक द्वीप कहाँ बताया गया है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में एकोरुक नामक द्वीप है ।) जीवाभिगमसूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति के अनुसार इसी क्रम के शुद्धदन्तद्वीप तक (जान लेना ।) हे आयुष्यमन् श्रमण ! इन द्वीपों के मनुष्य देवगतिगामी कहे गए हैं । इस प्रकार अपनी-अपनी लम्बाई-चौड़ाई के अनुसार इन अट्ठाईस अन्तर्वीपो का वर्णन कहना । विशेष यह है कि यहाँ एक-एक द्वीप के नाम से एक-एक उद्देशक कहना । इस प्रकार इन अट्ठाईस अन्तर्वीपो के अट्ठाईस उद्देशक होते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-९ - उद्देशक-३१ सूत्र -४४५
राजगृह नगर में यावत् (गौतमस्वामी ने) इस प्रकार पूछा-भगवन् ! केवली, केवली के श्रावक, केवली की श्राविका, केवली के उपासक, केवली की उपासिका, केवलिपाक्षिक, केवलि-पाक्षिक के श्रावक, केवलि-पाक्षिक की
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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