Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 186
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक भगवन् ! दर्शन की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! ज्ञानाराधना की तरह ही समझना चाहिए । भगवन् ! चारित्र की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है । गौतम ! ज्ञानाराधना की तरह ही उत्कृष्ट चारित्राराधना के विषय में कहना चाहिए । विशेष यह है कि कोई जीव कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होता है। भगवन् ! ज्ञान की मध्यम-आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखो का अन्त कर देता है ? गौतम ! कोई जीव दो भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखो का अन्त कर देता है ? गौतम ! कोई जीव दो भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखो का अन्त करता है; किन्तु तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करता । भगवन् ! दर्शन की मध्यम आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! ज्ञान की मध्यम आराधना की तरह यहां कहना चाहिए । पूर्वोक्त प्रकार से चारित्र की मध्यम आराधना के विषय में कहना।। भगवन् ! ज्ञान को जघन्य आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! कोई जीव तीसरा भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! कोई जीव तीसरा भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है; परन्तु सात-आठ भव से आगे अतिक्रमण नहीं करता । इसी प्रकार जघन्य दर्शनाराधना और जघन्य चारित्राराधना को भी कहना। सूत्र-४३२ भगवन् ! पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का वर्णपरिणाम, गन्धपरिणाभ, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम और संस्थानपरिणाम । भगवन् ! वर्णपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का-कृष्ण वर्णपरिणाम यावत् शुक्ल वर्णपरिणाम । इसी प्रकार गन्धपरिणाम दो प्रकार का, रसपरिणाम पांच प्रकार का और स्पर्शपरिणाम आठ प्रकार का जानना । भगवन् ! संस्थानपरिणाम कितने प्रकार का है? गौतम! पांच प्रकार का-परिमण्डलसंस्थानपरिणाम्, यावत् आयतसंस्थानपरिणाम । सूत्र-४३३ भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश द्रव्य है, द्रव्यदेश है, बहुत द्रव्य हैं, बहुत द्रव्य-देश हैं ? एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश है, एक द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं, बहुत द्रव्य और द्रव्यदेश है, या बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं ? गौतम ! वह कथञ्चित् एक द्रव्य है, कथञ्चित् एक द्रव्यदेश है, किन्तु वह बुहत द्रव्य नहीं, न बहुत द्रव्यदेश है, एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश भी नहीं, यावत् बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश भी नहीं । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश क्या एक द्रव्य हैं, अथवा एक द्रव्यप्रदेश हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! कथंचित् द्रव्य हैं, कथञ्चित् द्रव्यदेश हैं, कथंचित् बहुतद्रव्य हैं, कथंचित् बहुत द्रव्यदेश हैं और कथंचित् एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश हैं; परन्तु एक द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश नहीं, बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश नहीं, बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश नहीं। भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश के संबंध में प्रश्न हैं ? गौतम ! १. कथञ्चित् एक द्रव्य हैं, २. कथञ्चित् एक द्रव्यदेश हैं; यावत् ७ कथञ्चित् बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश हैं किन्तु बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं यह आठवां भंग नहीं कहें। भगवन ! पद्लास्तिकाय के चार प्रदेश विषयक प्रश्न ? गौतम ! १.कथञ्चित् एक द्रव्य हैं, २. कथञ्चित् एक द्रव्यदेश हैं, यावत् ८. कथञ्चित् बहुत द्रव्य हैं और बहुत द्रव्यदेश हैं । चार प्रदेशों के समान पांच, छह, सात यावत् असंख्यप्रदेशों तक के विषय में कहना । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के अनन्तप्रदेश विषयक प्रश्न ? गौतम ! पूर्ववत् कथंचित् बहुत द्रव्य हैं, और बहुत द्रव्यदेश हैं; तक आठों ही भंग कहने चाहिए। सूत्र-४३४ भगवन् ! लोकाकाश के कितने प्रदेश हैं ? गौतम ! लोकाकाश के असंख्येय प्रदेश हैं । भगवन् ! एक-एक जीव के कितने-कितने जीवप्रदेश हैं ? गौतम ! लोकाकाश के जितने प्रदेश कहे गए हैं, उतने ही एक-एक जीव के जीवप्रदेश हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 186

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