Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक जीवों मे कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े आहारकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे आहारकशरीर के देशबंधक जीव संख्यातगुणे हैं, उनसे वैक्रियशरीर के सर्वबंधक असंख्यातगुणे हैं, उनसे वैक्रियशरीर के देशबंधक जीव असंख्यातगुणे हैं, उनसे तैजस और कार्मण, इन दोनों शरीरों के अबंधक जीव अनन्तगुणे हैं, ये दोनों परस्पर तुल्य हैं, उनसे औदारिकशरीर के सर्वबंधक जीव अनन्तगुणे हैं, उनसे औदारिकशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं, उनसे औदारिकशरीर के देशबंधक असंख्यातगुणे हैं, उनसे तैजस और कार्मणशरीर के देशबंधक जीव विशेषाधिक हैं, उनसे वैक्रियशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं और उनसे आहारकशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक-८ - उद्देशक-१० सूत्र-४३०
राजगृह नगर में यावत् गौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा- भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं- (१) शील ही श्रेयस्कर हे; (२) श्रुत ही श्रेयस्कर है, (३) (शीलनिरपेक्ष) श्रुत श्रेयस्कर है, अथवा (श्रुतनिरपेक्ष) शील श्रेयस्कर है; अतः है भगवन् ! यह किस प्रकार सम्भव है ? गौतम । अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, वह मिथ्या है । गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूं, यावत् प्ररूपणा करता हूं। मैंने चार प्रकार के पुरुष कहे हैं। - एक व्यक्ति शीलसम्पन्न है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं है । एक व्यक्ति श्रुतसम्पन्न है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं है । एक व्यक्ति शीलसम्पन्न भी है और श्रतसम्पन्न भी है। एक व्यक्ति न शीलसम्पन्न है और न श्रुतसम्पन्न है।
इनमें से जो प्रथम प्रकार का पुरुष है, वह शीलवान् है, परन्तु श्रुतवान् नहीं । वह उपरत है, किन्तु धर्म को विशेषरूप से नहीं जानता । हे गौतम! उसको मैंने देश-आराधक कहा है। इनमें से जो दसरा पुरुष है, वह शीलवान नहीं, परन्तु श्रुतवान है । वह अनुपरत है, परन्तु धर्म को विशेषरूप से जानता है । है गौतम ! उसको मैंने देश-विराधक कहा है। इनमें से जो तृतीय पुरुष है, वह पुरुष शीलवान भी है और श्रुतवान भी है। वह उपरत है और धर्म का भी विज्ञाता है । हे गौतम ! उसको मैंने सर्व-आराधक कहा है। इनमें से जो चौथा पुरुष है, वह न तो शीलवान है और न श्रुतवान है । वह अनुपरत है, धर्म का भी विज्ञाता नहीं है । मैंने सर्व-विराधक कहा है। सूत्र-४३१
भगवन् ! आराधना कितने प्रकार की है ? गौतम! तीन प्रकार की- ज्ञानधारना, दर्शनाराधना, चारित्राराधना। भगवन् ! ज्ञानाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य | भगवन् ! दर्शनाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीनप्रकार की। इसी प्रकार चारित्राराधना भी तीनप्रकार की है।
भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, और जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाधराना होती है ? गौतम ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानराधना होती है, उसके दर्शनाराधना उत्कृष्ट या मध्यम होती है । जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, जघन्य या मध्यम ज्ञानाराधना होती है । भगवन् ! जीस जीव के उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है और जिस जीव के उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? गौतम ! उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और दर्शनाराधना के समान उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और उत्कृष्ट चारित्राराधना के विषय में भी कहना । भगवन् ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, क्या उसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, और जिसके उत्कृष्ट चारित्राधना होती है, उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? गौतम ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसके उत्कृष्ट, मध्यम या जघन्य चारित्राराधना होती है और जिसके उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, उसके नियमतः उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है।
भगवन् ! ज्ञान की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! कोई एक जीव उसी भव में सिद्ध होकर, कोई दो भव ग्रहण करके सिद्ध होकर यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है । कोई जीव कल्पोपपन्न, कोई देवलोकों में अथवा कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होता है ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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