Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक भगवन् ! जम्बूद्वीप में सूर्य कितने ऊंचे क्षेत्र को तपाते हैं, कितने नीचे क्षेत्र को तपाते हैं और कितने तीरछे क्षेत्र को तपाते हैं ? गौतम ! वे सौ योजन ऊंचे क्षेत्र को तप्त करते हैं, अठारह सौ योजन नीचे के क्षेत्र को तप्त करते हैं, और सैंतालीस हजार दो सौ तिरसठ योजन तथा एक योजन के साठ भागों में से इक्कीस भाग तीरछे क्षेत्र को तप्त करते हैं भगवन् ! मानुषोत्तरपर्वत के अन्दर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप देव हैं, वे क्या ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! जीवाभिगमसूत्र अनुसार कहना । इन्द्रस्थान कितने काल तक उपपात-विरहित कहा गया है ? तक कहना चाहिए । गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः छह मास । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-८ - उद्देशक-९ सूत्र-४२२
भगवन् ! बंध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! बंध दो प्रकर का कहा गया है, प्रयोगबंध और विस्त्रसाबंध। सूत्र -४२३
भगवन् ! विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है । यथा-सादिक विस्त्रसाबंध और अनादिक विस्त्राबंध ।
भगवन् ! अनादिक-विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकारकाधर्मास्तिकायका अन्योन्यअनादिक-विस्त्रसाबंध, अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक-विस्त्रसाबंध और आकाशास्तिकाय का अन्योन्यअनादिक-विस्त्रसाबंध | भगवन् ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक-विस्त्रसाबंध क्या देशबंध है या सर्वबंध है ? गौतम ! वह देशबंध है, सर्वबंध नहीं । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय के अ विस्त्रसाबंद के विषय में समझना । भगवन् ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक विस्त्रसाबंध कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सर्वकाल रहता है। अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक-विस्त्रसाबंध भी सर्वकाल रहता है।
भगवन् ! सादिक-विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! वह तीन प्रकार का कहा गया है। जैसे-बन्धनप्रत्यनीक, भाजनप्रत्यययिक और परिणामप्रत्ययिक।
भगवन् ! बंधन-प्रत्ययिक-सादि-विस्त्रसाबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! परमाणु, द्विप्रदेशक, त्रिप्रदेशिक, यावत् दशप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक पुद्गल-स्कन्धों का विमात्रा में स्निगधता से, विमात्रा में रुक्षता से तथा विमात्रा में स्निग्धता-रूक्षता से बंधन-प्रत्ययिक बंध समुत्पन्न होता है । वह जघनज्यतः एक समय और उत्कृष्टः असंख्येय काल तक रहता है। भगवन् ! भाजनप्रत्ययिक-सादि-विस्त्रसाबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! पुरानी सुरा, पुराने गुड़, और पुराने चावलों का भाजन-प्रत्ययिक-आदि-विस्त्रसाबंध समुत्पन्न होता है । यह जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टः संख्यात काल तक रहता है । भगवन् ! परिणामप्रत्ययिक-सादि-विस्त्रसाबंध किसे कहते है ? गौतम (तृतीय शतक) में जो बादलों का, अभ्रवृक्षों का यावत् अमोघों आदि के नाम कहे गए हैं, उन सबका परिणामप्रत्ययिकबंध समुत्पन्न होता है। वह बन्ध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः छह मास तक रहता है। सूत्र-४२४
भगवन् ! प्रयोगबंध किस प्रकार का है ? गौतम ! प्रयोगबंध तीन प्रकार का कहा गया है । वह इस प्रकारअनादिअपर्यवसित, सादि-अपर्यवसित अथाव सादि सपर्यवसित । इनमें से जो अनादि-अपर्यवसित है, जह जीव के आठ मध्यप्रदेशों का होता है। उन आठ प्रदेशों में भी तीन-तीन प्रदेशों का जो बंध होता है, वह अनादि-अपर्यवसित बंध है। शेष सभी प्रदेशो का सादि बंध है । इन तीनो में से जो सादि-अपर्यवसित बंध है, वह सिद्धों का होता है तथा इनमें से जो सादि-सपर्यवसित बंध है, वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा आलापनबंध, आल्लिकापन बंध, शरीरबंध और शरीरप्रयोगबंध ।
भगवन् ! आलापनबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! तृण के भार, काष्ठ के भार, पत्तो के भार, पलाल के भार और
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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