Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 180
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक जघन्यतः तीन समय कम दो क्षुल्लकभव ग्रहण काल और उत्कृष्टतः अनन्तकाल होता है । कालतः अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल है, क्षेत्रतः अनन्त लोक, असंख्येय पुद्गल-परावर्तन हैं | वे पुद्गल-परावर्तन आवलिका के असंख्यातवें भाग-प्रमाण हैं । देशबंध का अन्तर जघन्यतः समयाधिक क्षुल्लकभवग्रहणकाल और उत्कृष्टतः अनन्तकाल, यावत् ‘आवलिका के असंख्यातवें भाग-प्रमाण पुद्गल-परावर्तन है; पृथ्वीकायिक जीवों के प्रयोगबंधान्तर समान वनस्पतिकायिक जीवों को छोड़कर यावत् मनुष्यों के प्रयोगबंधान्तर तक समझना । वनस्पतिकायिक जीवों के सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः काल की अपेक्षा से तीन समय कम दो क्षुल्लकभगवग्रहण काल और उत्कृष्टतः असंख्येयकाल है, अथवा असंख्येय उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी है, क्षेत्रतः असंख्येय लोक है । इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जघन्यतः समयाधिक क्षुल्लकभवग्राहण का है और उत्कृष्टतः पृथ्वीकायिक स्थितिकाल है। भगवन् ! औदारिक शरीर के इन देशबंधक सर्वबंधक और अबंधक जीवों मे कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े औदारिकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं उनसे अबंधक जीव विशेषाधिक हैं और उनसे देशबंधक जीव असंख्यात गुणे हैं। सूत्र - ४२५ भगवन् ! वैक्रियशरीर-प्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का है । एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध और पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर-प्रयोगबंध । भगवन् ! यदि एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है, तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध है अथवा अवायुकायिक एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है ? गौतम ! इस प्रकार के अभिलाप द्वारा अवगाहनासंस्थानपद में वैक्रियशरीर के जिस प्रकार भेद कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी-अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिककल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध तक रहना चाहिए। भगवन् ! वैक्रियशरीर-प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है । गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता, यावत् आयुष्य अथवा लब्धि की अपेक्षा तथा वैक्रियशरीर-प्रयोगनामकर्म के उदय से होता है | भगवन् ! वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम सवीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता, यावत् आयुष्य और लब्धि की अपेक्षा में तथा वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगनाकर्म के उदय से होता है। भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सदद्रव्यता, यावत आयुष्य की अपेक्षा से तथा रत्नप्रभापथ्वीनैररि युष्य का अपेक्षा से तथा रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिक-पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगनाकर्म के उदय से होता है । इसी प्रकार अधःसप्तम नरकपृथ्वी तक रहना चाहिए। भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक- (पंचेन्द्रिय) वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता यावत् आयुष्य और लब्धि को लेकर तथा तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से वह होता है। भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम (पूर्ववत्) जानना भगवन् ! असुरकुमार भवनवासीदेव-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम! रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकों की तरह समझना । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक कहना चाहिए । इसी प्रकार वाणव्यन्तर तथा ज्योतिष्कदेवों के विषय में जाना। इसी प्रकार सौधर्मकल्पोपन्नक-वैमानिकदेवों से अच्युतकल्पोपन्नक-वैमानिकदेवों ग्रैवेयककल्पातीतवैमानिकदेवों तथा अनुत्तरोपपातिककल्पातीत-वैमानिकदेवों के विषय में भी जान लेना चाहिए । भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का देशबंध है, अथवा सर्वबंध है ? गौतम ! वह देशबंध भी है, सर्वबंध भी है । भगवन् ! वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध है अथवा सर्वबंध है ? गौतम ! पूर्ववत । भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक- वैक्रियशरीरप्रयोगबंध देशबंध है या सर्वबंध ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार अनुत्तरौपपातिककल्पातीत-वैमानिक देवों तक समझना। भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध, कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! इसका सर्वबंध जघन्यतः एक मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 180

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