Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक बेल के भार, इन भारों को बेंत की लता, छाल, वस्त्रा, रज्जु, बेल, कुश और डाभ आदि से बांधने से आलापनबंध समुत्पन्न होता है । यह बंध जघन्यतः अन्तमुहूर्त तक और उत्कृष्टः संख्येय काल तक रहता है । भगवन् ! (आलीन) बंध किसे कहते है ? गौतम ! आलीनबंध चार प्रकार का है,-श्लेषणाबंध, उच्चयबंध, समुच्चयबंध और संहननबंध । भगवन् ! श्लेषणाबंध किसे कहते हैं ? गौतम !- जो भित्तियों का, आंगन के फर्श का, स्तम्भों का, प्रसादों का, काष्ठों का, चर्मों का, घड़ों का, वस्त्रों का और चटाइयों का चूना, कीचड़ श्लेष लाख, मोम आदि श्लेषण द्रव्यों से बंध सम्पन्न होता है, वह श्लेषणाबंध है । यह बंध जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल रहता है।
भगवन ! उच्चयबंध किसे कहते हैं ? गौतम! तणरशिक, काष्ठराशि. पत्रराशि. तषराशि. भसे का ढेर. गोबर का ढेर अथवा कूड़े-कचरे का ढेर, इन का ऊंचे ढेर रूप से जो बंध सम्पन्न होता है, उसे उच्चयबंध कहते हैं । यह बंध जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः संख्यातकाल तक रहता है । भगवन् ! समुच्चयबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! कआ, तालाब, नदी, द्रह, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गंजालिका, सरोवर, सरोवरों की पंक्ति, बडे सरोवरों की पंक्ति, बिलों की पंक्ति, देवकुल, सभा, प्रपा स्तूप, खाई, परिखा, प्राकार अङ्गालक, चरक, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रसाद, शरणस्थान, लयन, आपण, श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वरमार्ग, चतुर्मुख मार्ग और राजमार्ग आदि का चूना, मिट्टी, कीचड़ एवं श्लेष के द्वारा समुच्चयरूप से जो बंध होता है, उसे समुच्चयबंध कहते हैं । उसकी स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट संख्येयकाल की है।
भगवन् ! संहननबंध किसे कहते हैं ? गौतम संहननबंध दो प्रकार का है,-देशसंहननबंध और सर्वसंहननबंध । भगवन् ! देशसंहननबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! शकट, रथ, यान, युग्य वाहन, गिल्लि, थिल्लि, शिबिका, स्यन्दमानी, लोढ़ी, लोहे की कड़ाही, कुड़छी, आसन, शयन, स्तम्भ, भाण्ड, पात्र नाना उपकरण आदि पदार्थों के साथ जो सम्बन्ध सम्पन्न होता है, वह देशसंहननबंध है । वह जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः संख्येय काल तक रहता है । भगवन् ! सर्वसंहननबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! दूध और पानी आदि की तरह एकमेक हो जाना सर्वसंहननबंध कहलाता है।
भगवन् ! शरीरबंध किस प्रकार का है ? गौतम ! शरीरबंध दो प्रकार का है, पूर्वप्रयोगप्रत्ययिक और प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्यरिक । भगवन् ! पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! जहाँ-जहाँ जिन-जिन कारणों ने समुद्धात करते हुए नैरयिक जीवों और संसारस्थ सर्वजीवों के जीवप्रदेशों का जो बंध सम्पन्न होता है, वह पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकबंध है । यह है पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकबंध । भगवन् ! प्रत्युपन्नप्रयोगप्रत्ययिक किसे कहते हैं ? गौत केवलीसमुद्धात द्वारा समुद्धात करते हुए और उस समुद्धात से प्रतिनिवृत्त होते हुए बीच के मार्ग में रहे हुए केवलज्ञानी अनगार के तैजस और कार्मण शरीर का जो बंध सम्पन्न होता है, वह प्रत्युपन्नप्रयोगप्रत्ययिकबंध हैं । (प्र.) (तैजस और कार्मण शरीर के बंध का) क्या कारण है ? (उ.) उस समय प्रदेश एकत्रीकृत होते हैं, जिससे यह बंध होता है।
भगवन् ! शरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का- औदारिकशरीरप्रयोगबंध, वैक्रियशरीरप्रयोगबंघ, आहारकशरीरप्रयोगबंध, तैजसशरीरप्रयोगबंध और कर्मणशरीरप्रयोगबंध | भगवन् ! औदारिकशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध यावत् पचेन्द्रियऔदारिकशरीर-प्रयोग । भगवन् ! एकेन्द्रिय औदारिक-शरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध इत्यादि । इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के अवगाहना-संस्थानपद अनुसार औदारिकशरीर के भेद यहाँ भी अपर्याप्त गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर प्रयोगबंध तक कहना
भगवन् ! औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता, संयोगता और सद्रव्यता से, प्रमाद के कारण, कर्म, योग, भव और आयुष्य आदि हेतुओं की अपेक्षा से औदारिकशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है, भगवन् ! एकेन्द्रिय औदारिकशरीर-प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! पूर्ववत् यहाँ भी जानना । इसी प्रकार पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय औदारिकशरीर-प्रयोगबंध वनस्पतिकायिकएकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध यावत् चतुरिन्द्रिय औदारिकशरीर-प्रयोगबंध कहना | भगवन् ! तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय औदारिकशरीर-प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! पूर्ववत् जानाना । भगवन् ! मनुष्य
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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