Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक क्यों कहते हैं कि वह लम्पट उसकी जाया को भोगता है, अजाया को नहीं भोगता । गौतम ! शील-व्रतादि को अंगीकार करने वाले उस श्रावक के मन में ऐसे परिणाम होते हैं कि माता मेरी नहीं है, पिता मेरे नहीं है, भाई मेरा नहीं है, बहन मेरी नहीं है, भार्या मेरी नहीं है, पुत्र मेरे नहीं हैं, पुत्री मेरी नहीं है, पुत्रवधू मेरी नहीं है; किन्तु इन सबके प्रति उसका प्रेम बन्धन टूटा नहीं है । इस कारण हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ।
भगवन् ! जिस श्रमणोपासक ने (पहले) स्थूल प्राणातिपात का प्रत्याख्यान नहीं किया, वह पीछे उसका प्रत्याख्यान करता हुआ क्या करता है ? गौतम ! अतीत काल में किए हुए प्राणातिपात का प्रतिक्रमण करता है तथा वर्तमानकालीन प्राणातिपात का संवर करता है एवं अनागत प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता है।
भगवन ! अतीतकालीन प्राणातिपात आदि का प्रतिक्रमण करता हआ श्रमणोपासक. क्या १.त्रिविध-त्रिविध (तीन करण, तीन योग से), २. त्रिविध-द्विविध, ३. त्रिविध-एकविध, ४. द्विविध-त्रिविध, ५. द्विविध-द्विविध, ६. द्विविधएकविध, ७. एकविध-विविध, ८. एकविध-द्विविध, ९. एकविध-एकविध प्रतिक्रमण करता है ? गौतम ! वह त्रिविधत्रिविध प्रतिक्रमण करता है, अथवा यावत् एकविध-एकविध प्रतिक्रमण करता है।
१. जब वह त्रिविध-त्रिविध प्रतिक्रमण करता है, तब मन से, वचन से और काया से । १. स्वयं करता नहीं, दूसरे से करवाता नहीं और करते हुए का अनुमोदन करता नहीं । २. जब त्रिविध-द्विविध प्रतिक्रमण करता है तब मन से और वचन से; करता नहीं, करवाता नहीं और अनुमोदन नहीं करता, ३. अथवा वह मन से और काया से करता नहीं, कराता नहीं और अनुमोदन नहीं करता, ४. या वह वचन से और काया से करता, कराता और अनुमोदन करता नहीं, जब त्रिविध-एकविध प्रतिक्रमण करता है, तब ५. मन से करता नहीं, न करवाता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, ६. अथवा वचन से नहीं करता, नहीं करवाता और अनुमोदन नहीं करता, ७. अथवा काया से नहीं करता, नहीं कराता
और अनुमोदन नहीं करता । जब द्विविध-त्रिविध प्रतिक्रमण करता है, तब ८. मन, वचन और काया से करता नहीं, करवाता नहीं, ९. अथवा मन-वचन-काया से करता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, १०. अथवा करवाता नहीं, अनुमोदन करता नहीं।
जब द्विविध-द्विविध प्रतिक्रमण करता है, तब ११. मन और वचन से करता नहीं, करवाता नहीं, १२. अथवा मन और काया से करता नहीं, करवाता नहीं, १३. अथवा वचन और काया से करता नहीं, करवाता नहीं, १४. अथवा मन और वचन से, करता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, १५. अथवा मन और काया से, करता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, १६. वचन और काया से करता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, १७. मन और वचन से करवाता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, १८. मन और काया से करवाता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, १९. अथवा वचन और काया से करवाता नहीं, अनुमोदन करता नहीं।
जब द्विविध-एकविध प्रतिक्रमण करता है, तब २०. मन से करता नहीं, करवाता नहीं, २१. वचन से करता नहीं, करवाता नहीं, २२. काया से करता नहीं, करवाता नहीं, २३. मन से करता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, २४. वचन से करता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, २५. काया से करता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, २६. मन से करवाता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, २७. वचन से करवाता नहीं, अनुमोदन करता नहीं, २८. अथवा काया से करवाता नहीं, अनुमोदन करता नहीं । जब एकविध-त्रिविध प्रतिक्रमण करता है, तब २९. करता नहीं, मन, वचन और काया से; ३०. मन, वचन और काया से करवाता नहीं, ३१. मन, वचन और काया से अनुमोदन करता नहीं।
जब एकविध-द्विविध प्रतिक्रमण करता है, तब ३२. मन और वचन से करता नहीं, ३३. मन और काया से करता नहीं, ३४. अथवा वचन और काया से करता नहीं, ३५. अथवा मन और वचन से करवाता नहीं, ३६. अथवा मन और काया से करवाता नहीं, ३७. अथवा वचन और काया से करवाता नहीं, ३८. अथवा मन और वचन से अनुमोदन करता नहीं, ३९. अथवा मन और काया से अनुमोदन करता नहीं, ४०. अथवा वचन और काया से अनुमोदन करता नहीं । जब एकविध-एकविध प्रतिक्रमण करता है, तब ४१. मन से स्वयं करता नहीं, ४२. अथवा वचन से करता नहीं, ४३. अथवा काया से करता नहीं, ४४. अथवा मन से करवाता नहीं, ४५. अथवा वचन से करवाता नहीं, ४६. अथवा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 167