Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक
भगवन् ! अनन्तजीव वाले वृक्ष कौन-से हैं ? गौतम ! अनेक प्रकार के हैं, जैसे-आलु, मूला, शृंगबेर आदि । भगवतीसूत्र के सप्तम शतक के तृतीय उद्देशक में कहे अनुसार सिउंढी, मुसुंढी तक जानना । ये और जितने भी इस प्रकार के अन्य वृक्ष हैं, उन्हें भी जान लेना । यह हुआ उन अनन्तजीव वाले वृक्षों का कथन । सूत्र - ३९८
भगवन् ! कछुआ, कछुओं की श्रेणी, गोधा, गोधा की श्रेणी, गाय, गायों की पंक्ति, मनुष्य, मनुष्यों की पंक्ति, भैंसा, भैंसों की पंक्ति, इन सबके दो या तीन अथवा संख्यात खण्ड किये जाएं तो उनके बीच का भाग क्या जीवप्रदेशों में स्पृष्ट होता है ? हाँ, गौतम ! वह स्पृष्ट होता है।
भगवन! कोई परुष उन कछए आदि के खण्डों के बीच के भाग को हाथ से. पैर से. अंगलि से. शलाका से. काष्ठ से या लकड़ी के छोटे-से टुकड़े से थोड़ा स्पर्श करे, विशेष स्पर्श करे, थोड़ा या विशेष खींचे, या किसी तीक्ष्ण से थोड़ा छेदे, अथवा विशेष छेदे, अथवा अग्निकाय से उसे जलाए तो क्या उन जीवप्रदेशों को थोड़ी या अधिक बाधा उत्पन्न कर पाता है, अथवा उसके किसी भी अवयव का छेद कर पाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि उन जीवप्रदेशों पर शस्त्र (आदि) का प्रभाव नहीं होता। सूत्र-३९९
___ भगवन् ! पृथ्वीयाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ-रत्नप्रभापृथ्वी यावत् अधःसप्तमा पृथ्वी और ईषत्प्राग्भारा । भगवन् ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी चरम है, अथवा अचरम ? यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का चरमपद । वैमानिक तक कहना। गौतम! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-८ - उद्देशक-४ सूत्र-४००
राजगृह नगर में यावत् गौतमस्वामी ने पूछा-भगवन् ! क्रियाएं कितनी हैं ? गौतम ! पाँच-कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का समग्र क्रियापद-मायाप्रत्ययिकी क्रियाएं विशेषाधिक हैं - यहाँ तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-८ - उद्देशक-५ सूत्र - ४०१
राजगृह नगर के यावत् गौतमस्वामी ने पूछा-भगवन् ! आजीविकों ने स्थविर भगवंतों से पूछा कि सामायिक करके श्रमणोपाश्रय में बैठे हुए किसी श्रावक के भाण्ड-वस्त्र आदि सामान को कोई अपहरण कर ले जाए, वह उस भाण्ड-वस्त्रादि सामान का अन्वेषण करे तो क्या वह अपने सामान का अन्वेषण करता है या पराये सामान का ? गौतम! वह अपने ही सामान का अन्वेषण करता है, पराये सामान का नहीं। सूत्र-४०२
भगवन् ! उन शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास को स्वीकार किये हुए श्रावक का वह अपहृत भाण्ड उसके लिए तो अभाण्ड हो जाता है ? हाँ, गौतम ! वह भाण्ड उसके लिए अभाण्ड हो जाता है। भगवन् ! तब आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरे के भाण्ड का नहीं? गौतम ! सामायिक आदि करने वाले उस श्रावक के मन में हिरण्य मेरा नहीं है, सुवर्ण मेरा नहीं है, कांस्य मेरा नहीं है, वस्त्र मेरे नहीं हैं तथा विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, शिलाप्रवाल एवं रक्तरत्न इत्यादि विद्यमान सारभूत द्रव्य मेरा नहीं है। किन्तु ममत्वभाव का उसने प्रत्याख्यान नहीं किया है। इसी कारण हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ।
भगवन् ! सामायिक करके श्रमणोपाश्रय में बैठे हुए श्रावक की पत्नी के साथ कोई लम्पट व्यभिचार करता है, तो क्या वह (व्यभिचारी) श्रावक की पत्नी को भोगता है, या दूसरे की स्त्री को भोगता है ? गौतम ! वह उस श्रावक की पत्नी को भोगता है. दसरे की स्त्री को नहीं । भगवन ! शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास कर लेने से क्या उस श्रावक की वह जाया अजाया हो जाती है ? हाँ, गौतम ! हो जाती है । भगवन् तब आप ऐसा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 166