Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक मार देते हो । इसलिए पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते हुए, यावत् मारते हुए तुम त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो । इस पर वे अन्यतीर्थिक बोले-हे आर्यो ! तुम्हारे मत में जाता हुआ, नहीं गया कहलाता है; जो लाँघा जा रहा है, वह नहीं लाँघा गया कहलाता है, और राजगृह को प्राप्त करने की ईच्छा वाला पुरुष असम्प्राप्त कहलाता है। तत्पश्चात् उन स्थविर भगवंतों ने कहा-आर्यो ! हमारे मत में जाता हुआ नहीं गया नहीं कहलाता, व्यतिक्रम्यमाण अव्यतिक्रान्त नहीं कहलाता । इसी प्रकार राजगृह नगर को प्राप्त करने की इच्छा वाला व्यक्ति असंप्राप्त नहीं कहलाता। हमारे मत में तो, आर्यो! गच्छन् गत् व्यतिक्रम्यमाणः व्यतिक्रान्त और राजगृह नगर को प्राप्त करने की ईच्छा वाला व्यक्ति सम्प्राप्त कहलाता है । हे आर्यो ! तुम्हारे ही मत में गच्छन् 'अगतः, व्यतिक्रम्यमाण अव्यतिक्रान्त और राजगृह नगर को प्राप्त करने की ईच्छा वाला असम्प्राप्त कहलाता है। उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीर्थिकों को निरुत्तर करके उन्होंने गतिप्रपात नामक अध्ययन प्ररूपित किया। सूत्र-४११
भगवन् ! गतिप्रपात कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! गतिप्रपात पाँच प्रकार का है। यथा-प्रयोग गति, ततगति, बन्धन-छेदनगति, उपपातगति और विहायोगति । यहाँ से प्रारम्भ करके प्रज्ञापनासूत्र का सोलहवाँ समग्र प्रयोगपद यावत् यह वियोगगति का वर्णन हआ; यहाँ तक कथन करना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-८ - उद्देशक-८ सूत्र-४१२
राजगृह नगर में (गौतम स्वामी ने) यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! गुरुदेव की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे गए हैं? गौतम! तीन प्रत्यनीक कहे गए हैं, आचार्य प्रत्यनीक, उपाध्याय प्रत्यनीक और स्थविर प्रत्यनीक।
भगवन् ! गति की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक हैं ? गौतम ! तीन-इहलोकप्रत्यनीक, परलोकप्रत्यनीक और उभयलोकप्रत्यनीक । भगवन ! समूह की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक हैं ? गौतम ! तीन-कुलप्रत्यनीक, गणप्रत्यनीक और संघप्रत्यनीक।
भगवन् ! अनुकम्प्य (साधुओं) की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे गए हैं ? गौतम ! तीन-तपस्वीप्रत्यनीक, ग्लानप्रत्यनीक और शैक्ष-प्रत्यनीक । भगवन् ! श्रुत की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक हैं ? गौतम ! तीन-सूत्रप्रत्यनीक, अर्थप्रत्यनीक और तदुभयप्रत्यनीक । भगवन् ! भाव की अपेक्षा ? गौतम ! तीन-ज्ञानप्रत्यनीक, दर्शनप्रत्यनीक और चारित्रप्रत्यनीक। सूत्र-४१३
भगवन् ! व्यवहार कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! व्यवहार पाँच प्रकार का कहा गया है, आगम व्यवहार, श्रुतव्यवहार, आज्ञाव्यवहार, धारणाव्यवहार और जीतव्यवहार । इन पाँच प्रकार के व्यवहारों में से जिस साधु के पास आगम हो, उसे उस आगम से व्यवहार करना । जिसके पास आगम न हो, उसे श्रुत से व्यवहार चलाना। जहाँ श्रुत न हो वहाँ आज्ञा से उसे व्यवहार चलाना । यदि आज्ञा भी न हो तो जिस प्रकार की धारणा हो, उस धारणा से व्यवहार चलाना । कदाचित् धारणा न हो तो जिस प्रकार का जीत हो, उस जीत से व्यवहार चलाना। इस प्रकार इन पाँचों से व्यवहार चलाना । जिसके पास जिस-जिस प्रकार से आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत, इन में से जो व्यवहार हो, उसे उस उस प्रकार से व्यवहार चलाना चाहिए।
भगवन् ! आगमबलिक श्रमण निर्ग्रन्थ क्या कहते हैं ? (गौतम!) इस प्रकार इन पंचविध व्यवहारों में से जबजब और जहाँ-जहाँ जो व्यवहार सम्भव हो, तब-तब और वहाँ-वहाँ उससे, राग और द्वेष से रहित होकर सम्यक् प्रकार से व्यवहार करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ आज्ञा का आराधक होता है। सूत्र - ४१४
भगवन् ! बंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! बंध दो प्रकार का-ईर्यापथिकबंध और साम्परायिकबंध । भगवन ! ईर्यापथिककर्म क्या नैरयिक बाँधता है, या तिर्यंचयोनिक या तिर्यंचयोनिक स्त्री बाँधती है, अथवा मनुष्य, या मनुष्य
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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