Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 170
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक कहने चाहिए । यावत् वह निर्ग्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं; ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए किसी निर्ग्रन्थ द्वारा किसी अकृत्यस्थान का प्रतिसेवन हो गया हो और तत्काल उसके मन में यह विचार स्फुरित हो कि पहले मैं यहीं इस अकृत्य की आलोचनादि करूँ; इत्यादि सारा वर्णन पूर्ववत् । यहाँ भी पूर्ववत् आठ आलापक कहना, यावत् वह आराधक है, विराधक नहीं। गृहस्थ के घर में आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट किसी निर्ग्रन्थी (साध्वी) ने किसी अकृत्यस्थान का प्रतिसेवन कर लिया, किन्तु तत्काल उसको ऐसा विचार स्फुरित हुआ कि मैं स्वयमेव पहले यहीं इस अकृत्यस्थान की आलोचना कर लूँ, यावत् प्रायश्चित्तरूप तपःकर्म स्वीकार कर लूँ । तत्पश्चात् प्रवर्तिनी के पास आलोचना कर लूँगी यावत तपःकर्म स्वीकार कर लँगी । ऐसा विचार कर उस साध्वी ने प्रवर्तिनी के पास जाने के लिए प्रस्थान किया. प्रवर्तिनी के पास पहुंचने से पूर्व ही वह प्रवर्तिनी मूक हो गई, तो हे भगवन् ! वह साध्वी आराधिका है या विराधिका ? गौतम ! वह साध्वी आराधिका है, विराधिका नहीं । जिस प्रकार संप्रस्थित निर्ग्रन्थ के तीन पाठ हैं उसी प्रकार सम्प्रस्थित साध्वी के भी तीन पाठ कहने चाहिए और वह साध्वी आराधिका है, विराधिका नहीं। भगवन् ! किस कारण से आप कहते हैं, वे आराधक है, विराधक नहीं? गौतम ! जैसे कोई पुरुष एक बड़े ऊन के बाल के या हाथी के रोम के अथवा सण के रेशे के या कपास के रेशे के अथवा तृण के अग्रभाग के दो, तीन या संख्यात टुकड़े करके अग्निकाय में डाले तो हे गौतम ! काटे जाते हए वे (टुकड़े) काटे गए, अग्नि में डाले जाते हए को डाले गए या जलते हुए को जल गए, इस प्रकार कहा जा सकता है ? हाँ, भगवन् ! काटे जाते हुए काटे गए अग्नि में डाले जाते हुए डाले गए और जलते हुए जल गए; यों कहा जा सकता है। भगवान का कथन-अथवा जैसे कोई पुरुष बिलकुल नये, या धोये हुए, अथवा तंत्र से तुरंत ऊतरे हए वस्त्र को मजीठ के पात्र में डाले तो हे गौतम ! उठाते हए वह वस्त्र उठाया गया, डालते हुए डाला गया, अथवा रंगते हुए रंगा गया, यों कहा जा सकता है ? (गौतम स्वामी-) हाँ, भगवन् ! उठाते हुए वह वस्त्र उठाया गया, यावत् रंगते हुए रंगा गया, इस प्रकार कहा जा सकता है । (भगवान-) इसी कारण से हे गौतम ! यों कहा जाता है कि (आराधना के लिए उद्यत साध्वी) आराधक है, विराधक नहीं है। सूत्र-४०८ भगवन् ! जलते हए दीपक में क्या जलता है ? दीपक जलता है ? दीपयष्टि जलती है ? बत्ती जलती है? तेल जलता है ? दीपचम्पक जलता है, या ज्योति जलती है ? गौतम ! दीपक नहीं जलता, यावत् दीपचम्पक नहीं जलता, किन्तु ज्योति जलती है । भगवन् ! जलते हुए घर में क्या घर जलता है ? भींतें जलती हैं ? टाटी जलती है? धारण जलते हैं ? बलहरण जलता है ? बाँस जलते हैं ? मल्ल जलते हैं ? वर्ग जलते हैं ? छित्वर जलते हैं ? छादन जलता है, या ज्योति जलती है ? गौतम ! घर नहीं जलता, यावत् छादन नहीं जलता, किन्तु ज्योति जलती है। सूत्र -४०९ भगवन् ! एक जीव एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला, कदाचित् पाँच क्रिया वाला होता है और कदाचित् अक्रिय भी होता है भगवन् ! एक नैरयिक जीव, दूसरे के एक औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम वह कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पाँच क्रिया वाला होता है । भगवन् ! एक असुरकुमार, एक औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम ! पहले कहे अनुसार होता है । इसी प्रकार वैमानिक देवों तक कहना । परन्तु मनुष्य का कथन औधिक जीव की तरह जानना । भगवन् ! एक जीव औदारिक शरीरों की अपेक्षा कितनी क्रियावाला होता है ? गौतम ! वह कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पाँच क्रिया वाला तथा कदाचित् अक्रिय भी होता है । भगवन् ! एक नैरयिक जीव, औदारिकशरीरों की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम ! प्रथम दण्डक के समान यह दण्डक भी वैमानिक पर्यन्त कहना; परन्तु मनुष्य का कथन सामान्य जीवों की तरह जानना। भगवन् ! बहुत-से जीव, दूसरे के एक औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं ? गौतम ! वे मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 170

Loading...

Page Navigation
1 ... 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250