Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक प्रधान, अकार्य करने में नित्य उद्यत, गुरुजनों के आदेशपालन और विनय से रहित, विकलरूप वाले, बढ़े हुए नख, केश, दाढ़ी, मूंछ और रोम वाले, कालेकलूटे, अत्यन्त कठोर श्यामवर्ण के बिखरे हुए बालों वाले, पीले और सफेद केशों वाले, दुर्दर्शनीय रूप वाले, संकुचित और वलीतरंगों से परिवेष्टित, टेढ़े-मेढ़े अंगोपांग वाले, इसलिए जरापरिणत वृद्धपुरुषों के समान प्रविरल टूटे और सड़े हुए दाँतों वाले, उद्भट घट के समान भयंकर मुख वाले, विषम नेत्रों वाले, टेढ़ी नाक वाले तथा टेढ़े-मेढ़े एवं भुर्रियों से विकृत हुए भयंकर मुख वाले, एक प्रकार की भयंकर खुजली वाले, कठोर एवं तीक्ष्ण नखों से खुजलाने के कारण विकृत बने हए, दाद, एक प्रकार के कोढ़, सिध्म वाले, फटी हुई कठोर चमड़ी वाले, विचित्र अंग वाले, ऊंट आदि-सी गति वाले, शरीर के जोड़ों के विषम बंधन वाले, ऊंची-नीची विषम हड्डियों एवं पसलियों से युक्त, कुगठनयुक्त, कुसंहनन वाले, कुप्रमाणयुक्त, विषमसंस्थानयुक्त, कुरूप, कुस्थान में बढ़े हुए शरीर वाले, कुशय्या वाले, कुभोजन करने वाले, विविध व्याधियों से पीड़ित, स्खलित गति वाले, उत्साहरहित, सत्त्वरहित, विकत चेष्टा वाले, तेजोहीन, बारबार शीत, उष्ण, तीक्ष्ण और कठोर बात से व्याप्त, मलिन अंग वाले, अत्यन्त क्रोध, मान, माया और लोभ से युक्त अशुभ दुःख के भागी, प्रायः धर्मसंज्ञा और सम्यक्त्व से परिभ्रष्ट होंगे। उनकी अवगाहना उत्कृष्ट एक रत्निप्रमाण होगी। उनका आयुष्य सोलह वर्ष का और अधिक-से-अधिक बीस वर्ष का होगा । वे बहुत से पुत्र-पौत्रादि परिवार वाले होंगे और उन पर उनका अत्यन्त स्नेह होगा । इनके ७२ कुटुम्ब बीजभूत तथा बीजमात्र होंगे। ये गंगा और सिन्धु महानदियों के बिलों में और वैताढ्यपर्वत की गुफाओं में निवास करेंगे।
भगवन् ! (उस दुःषमदुःषमकाल के) मनुष्य किस प्रकार का आहार करेंगे? गौतम ! उस काल और उस समय में गंगा और सिन्धु महानदियाँ रथ के मार्गप्रमाण विस्तार वाली होंगी । रथ की धूरी के प्रवेश करने के छिद्र जितने भागमें आ सके उतना पानी बहेगा । वह पानी भी अनेक मत्स्य, कछुए आदि से भरा होगा और उसमें भी पानी बहुत नहीं होगा । वे बिलवासी मनुष्य सूर्योदय के समय एक मुहूर्त और सूर्यास्त के समय एक मुहूर्त बिलों से बाहर नीकलेंगे । बिलों से बाहर नीकलकर वे गंगा और सिन्धु नदियों में से मछलियों और कछुओं आदि को पकड़ कर जमीन में गाड़ेंगे । इस प्रकार गाड़े हुए मत्स्य-कच्छपादि ठंड और धूप से सूख जाएंगे। इस प्रकार शीत और आतप से पके हुए मतस्य-कच्छपादि से इक्कीस हजार वर्ष तक जीविका चलाते हुए वे विहरण करेंगे।
भगवन् ! वे शीलरहित, गुणरहित, मर्यादाहीन, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास से रहित, प्रायः मांसाहारी, मत्स्याहारी, क्षुद्राहारी एवं कुणिमाहारी मनुष्य मृत्यु के समय मरकर कहाँ जाएंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ? गौतम ! वे मनुष्य मरकर प्रायः नरक एवं तिर्यंच-योनियों में उत्पन्न होंगे । भगवन् ! निःशील यावत् कुणिमाहारी सिंह, व्याघ्र, वृक, द्वीपिक, रीछ, तरक्ष और गेंडा आदि मरकर कहाँ जाएंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे? गौतम ! वे प्रायः नरक और तिर्यंचयोनि में उत्पन्न होंगे । भगवन् ! निःशील आदि पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त ढंक, कंक, बिलक, मद्दुक, शिखी (आदि पक्षी मरकर कहाँ उत्पन्न होंगे?) गौतम ! प्रायः नरक एवं तिर्यंच योनियों में उत्पन्न होंगे । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-७ - उद्देशक-७ सूत्र-३६१
भगवन् ! उपयोगपूर्वक चलते-बैठते यावत् उपयोगपूर्वक करवट बदलते तथा उपयोगपूर्वक वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादपोंछन आदि ग्रहण करते और रखते हुए उस संवृत्त अनगार को क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उस संवृत्त अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी नहीं।
भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि उस संवृत्त अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, किन्तु साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती ? गौतम ! जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ व्यवच्छिन्न हो गए हैं, उसको ही ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, क्योंकि वही यथासूत्र प्रवृत्ति करता है । इस कारण हे गौतम ! उसको यावत् साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती। सूत्र-३६२
भगवन् ! काम रूपी है या अरूपी है ? आयुष्मन् श्रमण ! काम रूपी है, अरूपी नहीं है । भगवन् ! काम
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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