Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक गया है, उसी प्रकार विस्रसापरिणत के विषय में कहना चाहिए कि अथवा एक द्रव्य चतुरस्रसंस्थानरूप से परिणत होता है, यावत् एक द्रव्य आयतसंस्थान रूप से परिणत होता है।
भगवन् ! तीन द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं, मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं ? गौतम! तीन द्रव्य या तो १. प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं, या २. एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है और दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं, या एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है और दो द्रव्य विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं और एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है, अथवा दो द्रव्य प्रयोग-परिणत होते हैं, और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है; अथवा एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है और दो द्रव्य विस्रसा-परिणत होते हैं, अथवा दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्रसा-परिणत होता है; या एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है। भगवन् ! यदि वे तीनों द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, तो क्या मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं अथवा वे कायप्रयोगपरिणत होते हैं ? गौतम ! वे या तो मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा कायप्रयोगपरिणत होते हैं । इस प्रकार एकसंयोगी, द्विकसंयोगी और त्रिकसंयोगी भंग कहना । भगवन् ! यदि तीन द्रव्य मनःप्रयोग-परिणत होते हैं, तो क्या वे सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, इत्यादि प्रश्न है । गौतम ! वे (त्रिद्रव्य) सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा यावत् असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा उनमें से एक द्रव्य सत्यमनः प्रयोगपरिणत होता है और दो द्रव्य मषामनःप्रयोगपरिणत होते हैंइत्यादि प्रकार से यहाँ भी द्विकसंयोगी भंग कहने। तीन द्रव्यों के प्रयोगपरिणत की तरह ही यहाँ भी पूर्ववत् मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत के भंग अथवा एक त्र्यंस संस्थानरूप से परिणत हो, एक समचतुरस्रसंस्थानरूप से परिणत हो और एक आयतसंस्थानरूप से परिणत हो तक कहना।
भगवन् ! चार द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं ? गौतम! वे या तो प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्र-परिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा एक द्रव्य प्रयोग-परिणत होता है, तीन मिश्रपरिणत होते हैं, या एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है और तीन विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं और दो मिश्रपरिणत होते हैं, या दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं और दो विस्रसा परिणत होते हैं; अथवा तीन द्रव्य प्रयोग-परिणत होते हैं और एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है; अथवा तीन द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं
और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है; अथवा एक द्रव्य मिश्र-परिणत होता है और तीन द्रव्य विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और दो द्रव्य विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा तीन द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है, अथवा एक प्रयोगपरिणत होता है, एक मिश्रपरिणत होता है और दो विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा एक प्रयोगपरिणत होता है, दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है, अथवा दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, एक मिश्रपरिणत होता है और एक विस्रसा-परिणत होता है । भगवन् ! यदि चार द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं तो क्या वे मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचन-प्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा कायप्रयोगपरिणत होते हैं ? गौतम ! ये सब पूर्ववत् कहना तथा इसी क्रम से पाँच, छह, सात, आठ, नौ, दस यावत् संख्यात, असंख्यात और अनन्त द्रव्यों के विषय में कहना । द्विकसंयोग से, त्रिक-संयोग से, यावत् दस के संयोग से, बारह के संयोग से, जहाँ जिसके जितने संयोगी भंग बनते हों, उतने सब भंग उपयोगपूर्वक कहना । ये सभी संयोगी भंग आगे नौवें शतक के बत्तीसवें उद्देशकमें जिस प्रकार हम कहेंगे, उसी प्रकार उपयोग लगाकर यहाँ भी कहना; यावत् अथवा अनन्त द्रव्य परिमण्डलसंस्थानरूप से परिणत होते हैं, यावत् अनन्त द्रव्य आयतसंस्थानरूप से परिणत होते हैं। सूत्र - ३८८
भगवन् ! प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत, इन तीनों प्रकार के पुद्गलों में कौन-से (पुद्गल), किन (पुद्गलों) से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! प्रयोगपरिणत पुद्गल सबसे थोड़े हैं,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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