Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक सूत्र - ३८४
भगवन् ! मिश्रपरिणत पुद्गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के एकेन्द्रिय-मिश्रपरिणत पुद्गल यावत् पंचेन्द्रिय-मिश्रपरिणत पुद्गल ।
भगवन् ! एकेन्द्रिय-मिश्रपुद्गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! प्रयोगपरिणत पुद्गलों के समान मिश्र-परिणत पुद्गलों के विषय में भी नौ दण्डक कहना । विशेषता यह है कि प्रयोग-परिणत के स्थान पर मिश्र-परिणत कहना । शेष वर्णन पूर्ववत् । यावत् जो पुद्गल पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक हैं; वे यावत् आयत-संस्थान रूप से भी परिणत हैं। सूत्र - ३८५
भगवन् ! विस्रसा-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के वर्णपरिणत, गन्धपरिणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत और संस्थानपरिणत । जो पुद्गल वर्णपरिणत हैं, वे पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथाकृष्णवर्ण के रूप में परिणत यावत् शुक्ल वर्ण के रूप में परिणत पुद्गल । जो गन्ध-परिणत-पुद्गल हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-सुरभिगन्ध-परिणत और दुरभिगन्ध-परिणत-पुद्गल । इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र अनुसार वर्णन करना चाहिए, यावत् जो पुद्गल संस्थान से आयत-संस्थान-परिणत हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्ण के रूप में भी परिणत हैं, यावत् रूक्ष-स्पर्शरूप में भी परिणत हैं। सूत्र-३८६
गौतम ! एक द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होता है, मिश्रपरिणत होता है अथवा विस्रसापरिणत होता है ? गौतम! एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, अथवा मिश्रपरिणत होता है, अथवा विस्रसापरिणत भी होता है।
भगवन् ! यदि एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह मनःप्रयोगपरिणत होता है, वचन-प्रयोग परिणत होता है, अथवा काय-प्रयोग-परिणत होता है ? गौतम ! वह मनःप्रयोग परिणत होता है, या वचन-प्रयोग-परिणत होता है, अथवा काय-प्रयोग-परिणत होता है । भगवन् ! यदि एक द्रव्य मनःप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह सत्य मनःप्रयोग-परिणत होता है, अथवा मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, या सत्य-मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, या असत्या-अमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! वह सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, अथवा मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, या सत्य-मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है या फिर असत्य-अमृषामनःप्रयोग-परिणत होता है। भगवन्! यदि एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह आरम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, अनारम्भ सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, सारम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, असमारम्भ-सत्यमनःप्रयोग-परिणत होता है, समारम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है अथवा असमारम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! वह आरम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, यावत् असमारम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है।
भगवन् ! यदि एक द्रव्य मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह आरम्भ-मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् असमारम्भ-मृषामनःप्रयोग परिणत ? गौतम ! जिस प्रकार सत्यमनःप्रयोगपरिणत के विषय में कहा है, उसी प्रकार मृषामनःप्रयोगपरिणत के विषय में भी कहना । इसी प्रकार सत्य-मृषामनःप्रयोगपरिणत के विषय में भी तथा असत्य-अमृषामनःप्रयोगपरिणत के विषय में भी कहना । भगवन् ! यदि एक द्रव्य वचनप्रयोग-परिणत होता है तो क्या वह सत्य-वचन-प्रयोगपरिणत होता है, मषा-वचनप्रयोगपरिणत होता है, सत्य-मृषा-वचन-प्रयोग-परिणत होता है अथवा असत्य-अमृषा-वचनप्रयोग-परिणत होता है ? गौतम ! मनःप्रयोगपरिणत के समान वचन-प्रयोग-परिणत के विषय में भी वह असमारम्भ वचन-प्रयोग-परिणत भी होता है तक कहना।
भगवन् ! यदि एक द्रव्य कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, औदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, वैक्रियशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है, आहारकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, आहारकमिश्र-कायप्रयोगपरिणत होता है अथवा कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! वह एक द्रव्य औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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