Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक
शतक-७ - उद्देशक-६ सूत्र - ३५५
राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! जो जीव नारकों में उत्पन्न होने योग्य हैं, क्या वह इस भव में रहता हुआ नारकायुष्य बाँधता है, वहाँ उत्पन्न होता हुआ नारकायुष्य बाँधता है या फिर (नरक में) उत्पन्न होने पर नारका-युष्य बाँधता है ? गौतम ! वह इस भव में रहता हुआ ही नारकायुष्य बाँधता लेता है, परन्तु नरक में उत्पन्न हुआ नारकायुष्य नहीं बाँधता और न नरक में उत्पन्न होने पर नारकायुष्य बाँधता है । इसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में कहना । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना।
भगवन् ! जो जीव नारकों में उत्पन्न होने वाला है, क्या वह इस भव में रहता हुआ नारकायुष्य का वेदन करता है, या वहाँ उत्पन्न होता हुआ नारकायुष्य का वेदन करता है, अथवा वहाँ उत्पन्न होने के पश्चात् नारकायुष्य का वेदन करता है ? गौतम ! वह इस भव में रहता हुआ नारकायुष्य का वेदन नहीं करता, किन्तु वहाँ उत्पन्न होता हुआ वह नारकायुष्य का वेदन करता है और उत्पन्न होने के पश्चात् भी नारकायुष्य का वेदन करता है । इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त चौबीस दण्डकों में कथन करना चाहिए
भगवन् ! जो जीव नारकों में उत्पन्न होने वाला है, क्या वह यहाँ रहता हुआ ही महावेदना वाला हो जाता है, या नरक में उत्पन्न होता हुआ महावेदना वाला होता है, अथवा नरक में उत्पन्न होने के पश्चात् महावेदना वाला होता है ? गौतम ! वह इस भव में रहा हुआ कदाचित् महावेदना वाला होता है, कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है । नरक में उत्पन्न होता हआ भी कदाचित महावेदना वाला और कदाचित अल्पवेदना वाला होता है; किन्तु जब नरक में उत्पन्न हो जाता है, तब वह एकान्तदुःखरूप वेदना वेदता है, कदाचित् सुखरूप (वेदना वेदता है)। भगवन् ! असुरकुमार सम्बन्धी प्रश्न-गौतम ! वह इस भव में रहा हआ कदाचित् महावेदना वाला और कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है; वहाँ उत्पन्न होता हुआ भी वह कदाचित् महावेदना वाला और कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है, किन्तु जब वह वहाँ उत्पन्न हो जाता है, तब एकान्तसुख रूप वेदता है, कदाचित् दुःखरूप वेदना वेदता है । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक कहना।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने योग्य जीव सम्बन्धी पृच्छा । गौतम ! वह जीव इस भव में रहा हुआ कदाचित् महावेदनायुक्त और कदाचित् अल्पवेदनायुक्त होता है, इसी प्रकार वहाँ उत्पन्न होता हुआ भी वह कदाचित् महावेदना और कदाचित् अल्पवेदना से युक्त होता है और जब वहाँ उत्पन्न हो जाता है, तत्पश्चात् वह विविध प्रकार से वेदना वेदता है। इसी प्रकार मनुष्य पर्यन्त कहना । असुरकुमारों के समान वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए भी कहना। सूत्र -३५६
भगवन् ! क्या जीव आभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं या अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं ? गौतम ! जीव आभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले नहीं हैं, किन्तु अनाभोगनिवर्तित आयुष्य वाले हैं । इसी प्रकार नैरयिकों के (आयुष्य के) विषय में भी कहना चाहिए । वैमानिकों पर्यन्त इसी तरह कहना चाहिए। सूत्र - ३५७
भगवन् ! क्या जीवों के कर्कश वेदनीय कर्म करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं । भगवन् ! जीव कर्कश-वेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणातिपात से यावत् मिथ्यादर्शनशल्य से बाँधते हैं। क्या नैरयिक जीव कर्कशवेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! पहले कहे अनुसार बाँधते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना।
भगवन् ! क्या जीव अकर्कशवेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं । भगवन् ! जीव अकर्कश-वेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणातिपातविरमण से यावत् परिग्रह-विरमण से, इसी तरह क्रोध-विवेक से यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविवेक से बाँधते हैं । भगवन् ! क्या नैरयिक जीव अकर्कशवेदनीय कर्म बाँधते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना । मनुष्यों के विषय में इतना विशेष है कि औधिक जीवों के समान
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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