Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक वेदन करेंगे ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि यावत् उसका वेदन नहीं करेंगे ? गौतम ! कर्म का वेदन करेंगे, नोकर्म की निर्जरा करेंगे । इस कारण से, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है । इसी तरह नैरयिकों के विषय में जान लेना । वैमानिक पर्यन्त इसी तरह कहना चाहिए।
भगवन् ! जो वेदना का समय है, क्या वही निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है, वही वेदना का समय है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! जिस समय में वेदते हैं, उस समय निर्जरा नहीं करते और जिस समय निर्जरा करते हैं, उस समय वेदन नहीं करते । अन्य समय में वेदन करते हैं और अन्य समय में निर्जरा करते हैं । वेदना का समय दूसरा है और निर्जरा का समय दूसरा है। इसी कारण हे गौतम ! मैं कहता हूँ कि...यावत् निर्जरा का जो समय है, वह वेदना का समय नहीं है।
भगवन् ! क्या नैरयिक जीवों का जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम! नैरयिक जीव जिस समय में वेदन करते हैं, उस समय में निर्जरा नहीं करते और जिस समय में निर्जरा करते हैं, उस समय में वेदन नहीं करते । अन्य समय में वे वेदन करते हैं और अन्य समय में निर्जरा करते हैं। उनके वेदना का समय दूसरा है और निर्जरा का समय दूसरा है । इस कारण से मैं ऐसा कहता हूँ कि यावत् जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना। सूत्र-३५०
भगवन् ! नैरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! अव्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव शाश्वत है और व्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव अशाश्वत हैं । इन कारण से हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना । यावत् इसी कारण मैं कहता हूँ वैमानिक देव कथंचित् शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत हैं । भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है।
शतक-७ - उद्देशक-४ सूत्र - ३५१
राजगृह नगर में यावत् भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा-भगवन् ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के हैं? गौतम ! छह प्रकार के-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एवं त्रस-कायिक। इस प्रकार यह समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रिया पर्यन्त कहना चाहिए हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। सूत्र-३५२
जीव के छह भेद, पृथ्वीकायिक आदि जीवों की स्थिति, भवस्थिति, सामान्यकायस्थिति, निर्लेपन, अनगार सम्बन्धी वर्णन सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रिया।
शतक-७ - उद्देशक-५ सूत्र - ३५३
राजगृह नगर में यावत् भगवान महावीर स्वामी से पूछा-हे भगवन् ! खेचर पंचेन्द्रियतिर्यंच जीवों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का । अण्डज, पोतज और सम्मूर्छिम । इस प्रकार जीवाजीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार यावत् उन विमानों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, हे गौतम ! वे विमान इतने महान् कहे गए हैं तक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है। सूत्र - ३५४
योनिसंग्रह लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग, उपयोग, उपपात, स्थिति, समुद्घात, च्यवन और जाति-कुलकोटि इतने विषय हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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