Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न हुए। सूत्र-३७४
भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र और असुरेन्द्र असुरराज चमर, इन दोनों ने कूणिक राजा को किस कारण से सहायता दी ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र तो कूणिक राजा का पूर्वसंगतिक था और असुरेन्द्र असुरकुमार राजा चमर कूणिक राजा का पर्यायसंगतिक मित्र था। इसीलिए, हे गौतम ! उन्होंने कूणिक राजा को सहायता दी। सूत्र - ३७५
भगवन् ! बहुत-से लोग परस्पर ऐसा कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि-अनेक प्रकार के छोटे-बड़े संग्रामों में से किसी भी संग्राम में सामना करते हुए आहत हुए एवं घायल हुए बहुत-से मनुष्य मृत्यु के समय मरकर किसी भी
क में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। भगवन ! ऐसा कैसे हो सकता है? गौतम ! बहत-से मनुष्य, जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि संग्राम में मारे गए मनुष्य देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहने वाले मिथ्या कहते हैं। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ-गौतम ! उस काल और उस समय में वैशाली नामकी नगरी थी । उस वैशाली नगरी में वरुण नामक नागनप्तृक रहता था । वह धनाढ्य यावत् अपरिभूत व्यक्ति था । वह श्रमणोपासक था और जीवाजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता था, यावत् वह आहारादि द्वारा श्रमण निर्ग्रन्थों को प्रतिलाभित करता हुआ तथा निरन्तर छठ-छठ की तपस्या द्वारा अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरण करता था।
एक बार राजा के अभियोग से, गण के अभियोग से तथा बल के अभियोग से वरुण नागनप्तक को रथमूसलसंग्राम में जाने की आज्ञा दी गई। तब उसने षष्ठभक्त को बढ़ाकर अष्टभक्त तप कर लिया । तेले की तपस्या करके उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा- हे देवानुप्रियो ! चार घण्टों वाला अश्वरथ, सामग्रीयुक्त तैयार करके शीघ्र उपस्थित करो । साथ ही अश्व, हाथी, रथ और प्रवर योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित करो, यावत् वह सब सुसज्जित करके मेरी आज्ञा मुझे वापस सौंपो । तदनन्तर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसकी आज्ञा स्वीकार एवं शिरोधार्य करके यथाशीघ्र छत्रसहित एवं ध्वजासहित चार घण्टाओं वाला अश्वरथ, यावत् तैयार करके उपस्थित किया । साथ ही घोड़े, हाथी, रथ एवं प्रवर योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को यावत् सुसज्जित किया और सुसज्जित करके यावत् वरुण नागनप्तृक को उसकी आज्ञा वापिस सौंपी।।
तत्पश्चात् वह वरुण नागनप्तृक, जहाँ स्नानगृह था, वहाँ आया । यावत् कौतुक और मंगलरूप प्रायश्चित्त किया, सर्व अलंकारों से विभूषित हुआ, कवच पहना, कोरंटपुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र धारण किया, इत्यादि कणिक राजा की तरह कहना चाहिए । फिर अनेक गणनायकों, दतों और सन्धिपालों के साथ परिवत्त होकर वह स्नानगृह से बाहर नीकलकर बाहर की उपस्थानशाला में आया और सुसज्जित चातुर्घण्ट अश्वरथ पर आरूढ होकर अश्व, गज, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना के साथ, यावत् महान् सुभटों के समूह से परिवृत्त होकर जहाँ रथमूसल-संग्राम होने वाला था, वहाँ आया । रथमूसल-संग्राम में ऊतरा । उस समय रथमूसल-संग्राम में प्रवृत्त होने के साथ ही वरुण नागनप्तृक ने इस प्रकार का अभिग्रह किया मेरे लिए यही कल्प्य है कि रथमूसल संग्राम में युद्ध करते हुए जो मुझ पर पहले प्रहार करेगा, उसे ही मुझे मारना है, (अन्य) व्यक्तियों को नहीं । यह अभिग्रह करके वह रथमूसल-संग्राम में प्रवृत्त हो गया।
उसी समय रथमूसल-संग्राम में जूझते हुए वरुण नागनप्तृक के रथ के सामने प्रतिरथी के रूप में एक पुरुष शीघ्र ही आया, जो उसी के सदृश, उसी के समान त्वचा वाला था, उसी के समान उम्र का और उसी के समान अस्त्र - शस्त्रादि उपकरणों से युक्त था । तब उस पुरुष ने वरुण नागनप्तृक को इस प्रकार कहा- हे वरुण नागनप्तृक ! मुझ पर प्रहार कर, अरे वरुण नागनप्तृक ! मुझ पर वार कर। इस पर वरुण नागनप्तृक ने उस पुरुष से यों कहा- हे देवानुप्रिय ! जो मुझ पर प्रहार न करे, उस पर पहले प्रहार करने का मेरा कल्प (नियम) नहीं है। इसलिए तुम (चाहे तो) पहले मुझ पर प्रहार करो।
तदनन्तर वरुण नागनप्तृक के द्वारा ऐसा कहने पर उस पुरुष ने शीघ्र ही क्रोध से लाल-पीला होकर यावत्
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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